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चम्बल की बेटियां, बेटों से कम नहीं, पूजा ओझा ने सोना जीतकर दिखाया दम, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

भिंड की बेटी पूजा ओझा ने चम्बल की पहचान में चार चंद लग दिए हैं. जिस चम्बल की धरा पर कभी बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया जाता था. उसी चम्बल की बेटी ने पेरा केनो नेशनल चैंपियनशिप में फिर दो गोल्ड मेडल जीते हैं. उन्हें इसी महीने राष्ट्रपति मुर्मू ने भी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है. दो बड़ी उपलब्धियों के बाद पूजा अपने घर पहुंची तो ETV भारत संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव ने उनसे खास बातचीत की. देखें रिपोर्ट...

hind Paracano National Championship Winne
भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल
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Published : Dec 23, 2022, 10:52 PM IST

भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल

भिंड। कभी दस्यु पीड़ित रहा मध्यप्रदेश का चम्बल इलाका कन्या भ्रूण हत्या के लिए भी बदनाम रहा. एक दौर ऐसा भी था जब अंचल में बेटियों को इस दुनिया में ही नही आने दिया जाता था और अगर कोई बेटी जन्म ले भी ले तो नवजात के मुंह में तंबाकू रखकर उसे मार दिया जाता था. ये हालात करीब 2 दशक पहले तक सबसे ज्यादा भिंड-मुरैना इलाके में देखने को मिलते थे, लेकिन आज वक्त और सोच दोनों में बदलाव आया. जिन बच्चियों को लोग इस संसार में नहीं आने देना चाहते थे वही बेटियां अब भिंड और देश का नाम गौरवान्वित कर रही हैं.

hind Paracano National Championship Winne
भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल

भारत का लहराया परचम: भिंड की बेटी पूजा ओझा ने तो दिव्यांग होने के बावजूद वाटर स्पोर्ट्स में कई मुकाम हांसिल किए हैं. देश के लिए विश्व पटल पर मेडल जीत कर भारत का परचम लहराया है. इसी मेहनत का फल भी इन्हें मिला कि 3 दिसंबर को देश की राष्ट्रपति ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है.

56 खिलाड़ियों को पछाड़ा: पूजा ओझा ने भिंड वापसी से पहले भोपाल में 18-21 दिसंबर को आयोजित हुई पेराकेनो नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और बेहतरीन प्रदर्शन कर एक बार फिर असल स्थान प्राप्त किया. इस प्रतिस्पर्धा में देश भर से 57 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था, लेकिन उन्हें हराकर पूजा ने दो गोल्ड मेडल हासिल किए हैं.

भिंड की बेटी होने पर गर्व: ETV भारत से बातचीत में पूजा ने कहा कि मुझे इस बात का गर्व है कि हम भिंड जिले की बेटी हैं. मैंने अपने जिले का और देश का नाम रोशन किया है. राष्ट्रपति जी से सम्मानित हुई हूं. इस सफलता के पीछे था मेरे माता पिता और मेरे कोच का बहुत बड़ा हाथ है इतने सम्मान के बाद मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है. लोग कहते हैं कि, दिव्यांग कुछ नहीं कर पाते हैं लेकिन मैं कहती हूं कि, दिव्यांग सब कुछ कर सकते हैं बस मनोबल मजबूत होना चाहिए. कुछ करने की दृण शक्ति होना चाहिए.

hind Paracano National Championship Winne
भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल

भिंड में कोच का अभाव, भोपाल में की ट्रेनिंग: जब पूजा से पूछा गया क्या आपका सफ़र भिंड से शुरू हुआ यहीं गौरी सरोवर में अपने प्रैक्टिस की अब जब दो गोल्ड मेडल जीते हैं तो इसकी तैयारी कैसे की इस बात का जवाब देते हुए पूजा ओझा ने कहा कि अभी भिंड में प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. यहां कोच नहीं होने से थोड़ी समस्या थी. इसलिए उन्होंने भोपाल में रह कर ट्रेनिंग की. वहां खुद आने जाने की व्यवस्था की. अपने लिए खाना बनाया. कोच मयंक ठाकुर का बहुत सपोर्ट रहा जिनकी मेहनत की वजह से आज ये गोल्ड मेडल मैंने हासिल किए हैं. जब इन दोनों मेडल को देखती हूं तो अपनी पूरी मेहनत सफल लगती है पूजा कहते हैं कि इस बार कोई नैशनल चैंपियनशिप का अनुभव अपने आप में ख़ास था पूरे देश के 57 खिलाड़ी आयी जिनमें कई खिलाड़ी नए थे भारत में हुई यह अब तक की बेहतरीन नेशनल चैंपियनशिप रही.

राष्ट्रपति से सम्मान पाना स्वप्न जैसा: देश की राष्ट्रपति से सम्मान पाना अपने आप में बहुत बड़ी बात किसी भी भारतीय के लिए होती है. ऐसे में जब पूजा को यह सम्मान मिला तो उसका अनुभव कैसा रहा इस बारे में जब उनसे चर्चा की गई तो पूजा ने कहा कि यह उनके लिए एक सपने जैसा था. एक समय था जब मैं टेलिविजन पर कई दिव्यांग विभूतियों को राष्ट्रपति से सम्मानित होते देखती थी तो मन में यह भाव आता था के कास इस तरह उन्हें भी सम्मान मिले और जब उन्हें इस बात की सूचना मिली के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए उन्हें नॉमिनेट किया गया है. तो यह आसमान छूने जैसा था, वहां हर चीज एक प्रोटोकॉल के तहत हो रही थी. राष्ट्रपति जी से रूबरू होना किसी सपने की दुनिया जीना जैसा था. मेरा वह सपना पूरा हुआ. इसके अलावा वहां बड़ी बड़ी विभूतियों से मिलने का मौका मिला. कोई दो बार का अवार्डी था तो कोई तीन बार का. ये अपने आप में एक बड़ा सुखद अनुभव रहा.

दिव्यांगता को कमजोरी ना समझें: पूजा ने भिंड जिले और चंबल क्षेत्र के अन्य दिव्यांगों को भी मोटिवेशन देने के लिए अपील की उन्होंने कहा कि, कोई भी दिव्यांग अपने आप को छोटा ना समझे, मेरे लिए जिस तरह यहां तक पहुंचना बड़ी बात है, लेकिन असंभव नहीं था ठीक उसी तरह कोई भी दिव्यांग आगे राष्ट्रपति से सम्मानित हो सकता है. बस उन्हें जरूरत है के वे अपने आत्मबल और इच्छा शक्ति को जगाएं और मेहनत कर आगे बढ़ें.

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अभी और मेहनत बाकी ओलंपिक की तैयारी: पूजा ओझा का सफर लगातार जारी है, इतने पदक जीतने के बाद जिम्मेदारी और बढ़ गई है. वे अगले साल होने वाले एशियन गेम्स और फिर 2024 के पेराओलंपिक गेम्स की तैयारी में जुटी हुई हैं. चाहती हैं कि अपने माता पिता और अपने क्षेत्र की पहचान को एक मिसाल बनायें जिससे भिंड में कई और पूजा जैसी बेटियाँ ज़िले का नाम रौशन करें.

भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल

भिंड। कभी दस्यु पीड़ित रहा मध्यप्रदेश का चम्बल इलाका कन्या भ्रूण हत्या के लिए भी बदनाम रहा. एक दौर ऐसा भी था जब अंचल में बेटियों को इस दुनिया में ही नही आने दिया जाता था और अगर कोई बेटी जन्म ले भी ले तो नवजात के मुंह में तंबाकू रखकर उसे मार दिया जाता था. ये हालात करीब 2 दशक पहले तक सबसे ज्यादा भिंड-मुरैना इलाके में देखने को मिलते थे, लेकिन आज वक्त और सोच दोनों में बदलाव आया. जिन बच्चियों को लोग इस संसार में नहीं आने देना चाहते थे वही बेटियां अब भिंड और देश का नाम गौरवान्वित कर रही हैं.

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भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल

भारत का लहराया परचम: भिंड की बेटी पूजा ओझा ने तो दिव्यांग होने के बावजूद वाटर स्पोर्ट्स में कई मुकाम हांसिल किए हैं. देश के लिए विश्व पटल पर मेडल जीत कर भारत का परचम लहराया है. इसी मेहनत का फल भी इन्हें मिला कि 3 दिसंबर को देश की राष्ट्रपति ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है.

56 खिलाड़ियों को पछाड़ा: पूजा ओझा ने भिंड वापसी से पहले भोपाल में 18-21 दिसंबर को आयोजित हुई पेराकेनो नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और बेहतरीन प्रदर्शन कर एक बार फिर असल स्थान प्राप्त किया. इस प्रतिस्पर्धा में देश भर से 57 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था, लेकिन उन्हें हराकर पूजा ने दो गोल्ड मेडल हासिल किए हैं.

भिंड की बेटी होने पर गर्व: ETV भारत से बातचीत में पूजा ने कहा कि मुझे इस बात का गर्व है कि हम भिंड जिले की बेटी हैं. मैंने अपने जिले का और देश का नाम रोशन किया है. राष्ट्रपति जी से सम्मानित हुई हूं. इस सफलता के पीछे था मेरे माता पिता और मेरे कोच का बहुत बड़ा हाथ है इतने सम्मान के बाद मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है. लोग कहते हैं कि, दिव्यांग कुछ नहीं कर पाते हैं लेकिन मैं कहती हूं कि, दिव्यांग सब कुछ कर सकते हैं बस मनोबल मजबूत होना चाहिए. कुछ करने की दृण शक्ति होना चाहिए.

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भिंड नेशनल चैंपियनशिप में पूजा ओझा जीती गोल्ड मेडल

भिंड में कोच का अभाव, भोपाल में की ट्रेनिंग: जब पूजा से पूछा गया क्या आपका सफ़र भिंड से शुरू हुआ यहीं गौरी सरोवर में अपने प्रैक्टिस की अब जब दो गोल्ड मेडल जीते हैं तो इसकी तैयारी कैसे की इस बात का जवाब देते हुए पूजा ओझा ने कहा कि अभी भिंड में प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. यहां कोच नहीं होने से थोड़ी समस्या थी. इसलिए उन्होंने भोपाल में रह कर ट्रेनिंग की. वहां खुद आने जाने की व्यवस्था की. अपने लिए खाना बनाया. कोच मयंक ठाकुर का बहुत सपोर्ट रहा जिनकी मेहनत की वजह से आज ये गोल्ड मेडल मैंने हासिल किए हैं. जब इन दोनों मेडल को देखती हूं तो अपनी पूरी मेहनत सफल लगती है पूजा कहते हैं कि इस बार कोई नैशनल चैंपियनशिप का अनुभव अपने आप में ख़ास था पूरे देश के 57 खिलाड़ी आयी जिनमें कई खिलाड़ी नए थे भारत में हुई यह अब तक की बेहतरीन नेशनल चैंपियनशिप रही.

राष्ट्रपति से सम्मान पाना स्वप्न जैसा: देश की राष्ट्रपति से सम्मान पाना अपने आप में बहुत बड़ी बात किसी भी भारतीय के लिए होती है. ऐसे में जब पूजा को यह सम्मान मिला तो उसका अनुभव कैसा रहा इस बारे में जब उनसे चर्चा की गई तो पूजा ने कहा कि यह उनके लिए एक सपने जैसा था. एक समय था जब मैं टेलिविजन पर कई दिव्यांग विभूतियों को राष्ट्रपति से सम्मानित होते देखती थी तो मन में यह भाव आता था के कास इस तरह उन्हें भी सम्मान मिले और जब उन्हें इस बात की सूचना मिली के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए उन्हें नॉमिनेट किया गया है. तो यह आसमान छूने जैसा था, वहां हर चीज एक प्रोटोकॉल के तहत हो रही थी. राष्ट्रपति जी से रूबरू होना किसी सपने की दुनिया जीना जैसा था. मेरा वह सपना पूरा हुआ. इसके अलावा वहां बड़ी बड़ी विभूतियों से मिलने का मौका मिला. कोई दो बार का अवार्डी था तो कोई तीन बार का. ये अपने आप में एक बड़ा सुखद अनुभव रहा.

दिव्यांगता को कमजोरी ना समझें: पूजा ने भिंड जिले और चंबल क्षेत्र के अन्य दिव्यांगों को भी मोटिवेशन देने के लिए अपील की उन्होंने कहा कि, कोई भी दिव्यांग अपने आप को छोटा ना समझे, मेरे लिए जिस तरह यहां तक पहुंचना बड़ी बात है, लेकिन असंभव नहीं था ठीक उसी तरह कोई भी दिव्यांग आगे राष्ट्रपति से सम्मानित हो सकता है. बस उन्हें जरूरत है के वे अपने आत्मबल और इच्छा शक्ति को जगाएं और मेहनत कर आगे बढ़ें.

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अभी और मेहनत बाकी ओलंपिक की तैयारी: पूजा ओझा का सफर लगातार जारी है, इतने पदक जीतने के बाद जिम्मेदारी और बढ़ गई है. वे अगले साल होने वाले एशियन गेम्स और फिर 2024 के पेराओलंपिक गेम्स की तैयारी में जुटी हुई हैं. चाहती हैं कि अपने माता पिता और अपने क्षेत्र की पहचान को एक मिसाल बनायें जिससे भिंड में कई और पूजा जैसी बेटियाँ ज़िले का नाम रौशन करें.

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