नई दिल्ली: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot government of Rajasthan) ने पुरानी पेंशन (old pension scheme) फिर से लागू करने का शिगूफा छोड़ा तो कांग्रेस नेता, केंद्र सरकार व बीजेपी शासित राज्यों में इसे लागू करने की चुनौती देने लगे हैं. ऐसे में जबकि यूपी विधानसभा चुनाव के कुछ चरण और मणिपुर में चुनाव बाकी है, बीजेपी ने मुद्दे पर चुप्पी साध ली है.
राजस्थान की गहलोत सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने की घोषणा कर सभी राज्य सरकारों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. केंद्र सरकार भी इसे लेकर पशोपेश में है क्योंकि कांग्रेस नेता दबाव डाल रहे हैं कि केंद्र भी इस योजना को दोबारा लागू करे. कांग्रेस नेता अजय माकन ने तो साफ शब्दों में कहा कि केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों को पुरानी पेंशन योजना लागू करनी चाहिए. क्योंकि नई पेंशन योजना के तहत पेंशन के पैसे मार्केट में लगाए जाते हैं, जो सरासर गलत है.
ऐसे में राजस्थान सरकार द्वारा की गई घोषणा ने केंद्र की नींद उड़ा दी है. वह भी ऐसे समय में जब 2 राज्यों के चुनाव अभी बाकी हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेता इस मुद्दे पर कोई भी सीधा जवाब देने से बच रहे हैं और पार्टी ने चुप्पी साध ली है. 2005 अप्रैल में एनडीए के शासनकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नई पेंशन स्कीम लागू की थी, जिसके हिसाब से पुरानी स्कीम को बंद कर दिया गया. जबकि पुरानी पेंशन स्कीम में जो 2004 तक लागू थी, उसमें कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित राशि पेंशन के तौर पर मिलती थी. मगर नई स्कीम में कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए का 10 प्रतिशत काटा जाता है.
नई स्कीम शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए पूरी तरह सुरक्षित भी नहीं है. साथ ही इसमें टैक्स भी काटे जाते हैं और कर्मचारियों को 40 प्रतिशत निवेश करना होता है. पुरानी स्कीम लागू करने की मांग यूपी चुनाव के दौरान उठाई गई और समय-समय पर देश भर में सरकारी कर्मचारी इसकी मांग उठाते रहते हैं. मगर जिस तरह से डंके की चोट पर राजस्थान सरकार ने इसे लागू करने का फैसला किया है, उसे देखते हुए ये लगता है कि आने वाले कई राज्यों और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ये एक बड़ा मुद्दा बन सकता है.
हालांकि, उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह मुद्दा सबसे पहले अखिलेश यादव ने उठाया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे पुरानी पेंशन-व्यवस्था को बहाल कर सकते हैं. इसका ऐलान उन्होंने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके किया. अखिलेश यादव के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी इसकी घोषणा की और एक रैली में कहा कि उनकी सरकार बनी तो ऐसे सभी मामलों को निपटाने के लिए एक आयोग का गठन करेंगी.
मगर राजस्थान की सरकार ने इसे लागू करने की घोषणा करके सबसे ज्यादा दबाव भारतीय जनता पार्टी पर बढ़ा दिया है. जो उत्तर प्रदेश के बाकी चरण के चुनाव में भी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है. हालांकि इसका जिक्र उत्तर प्रदेश के चुनावी घोषणा पत्र में भी किया गया है लेकिन पार्टी इस मुद्दे को ज्यादा तरजीह नहीं दे रही है. मगर अब पार्टी के नेता दबी जुबान में कह रहे हैं कि उनके उत्तर प्रदेश के संकल्प पत्र में यह बात पहले से कही गई है कि यदि उनकी पार्टी दोबारा सत्ता में आती है तो पुरानी पेंशन स्कीम लाई जा सकती है.
केंद्रीय कृषि एवं कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने राजस्थान की गहलोत सरकार द्वारा जारी किए गए बजट को आमजन की उम्मीदों को तोड़ने वाला और झूठ का पिटारा बताया. उन्होंने कहा कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किया गया बजट बेकार है. उन्होंने कहा कि पहले के 3 वर्षों की घोषणाओं को भी धरातल पर लागू करने में विफल कांग्रेस सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कोई ठोस निर्णय नहीं लिया.
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केंद्रीय कृषि एवं कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केवल काल्पनिक बजट भाषण पढ़ने में ही रिकॉर्ड बनाया है. अब नई घोषणा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष के बजट का अंतर 13000 करोड़ रुपए का है. जबकि राज्य सरकार द्वारा की गई घोषणाओं से प्रतीत होता है कि उसमें काफी ज्यादा धनराशि खर्च होगी.