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117 साल के स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद का देहांत, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में ले चुके थे हिस्सा

सीमडेगा जिले में बुधवार को गुमनाम की जिंदगी जी रहे स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद का देहांत हो गया. आदिवासी रीति रिवाजों से स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद का अंतिम संस्कार किया. बता दें कि 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की लड़ाई में अनसेलेम समद शामिल हुए थे.

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Published : Jul 23, 2020, 6:36 PM IST

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स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद

सिमडेगा: जलडेगा के कारीमाटी निवासी स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद अब इस दुनिया में नहीं रहे. अनसेलेम समद का जन्म गांव में ही सन् 1903 में हुआ था और उनकी मृत्यु 22 जुलाई 2020 को हुई.


स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद का निधन
बता दें कि 117 साल जी चुके अनसेलेम समद का जीवन काफी संघर्षों से भरा हुआ था. अनसेलेम समद स्वतंत्रता सेनानी के साथ जयपाल सिंह झारखंड आंदोलनकारी भी थे. इन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की लड़ाई में शामिल होकर अंग्रजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया था.

नहीं मिला कोई सम्मान
इसके बाबजूद भी वे गुमनाम की जिंदगी जी रहे थे. परिवार वाले कहते हैं कि अनसेलेम समद को सरकार से न तो कोई सम्मान मिला न ही पहचान मिली. लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी तकलीफ नहीं था. वे सदा जीवन उच्च विचार की जिंदगी जीते थे.


इसे भी पढ़ें-जमीन विवाद में 20 वर्षीय युवक की हत्या, विधायक ने पीड़ित परिजनों से की मुलाकात


आदिवासी रीति रिवाज से हुआ अंतिम संस्कार
विदित हो कि एनी होरो, सुशील कुमार बागे, विलियम लुगुन, एनोस एक्का सहित कई बड़े लोग अनसेलेम समद से मिलने आते थे. मृत्यु के बाद गांव के मुंडारी पाहन ने उनके सिर पर पगड़ी पहनाई. वहीं गांव वालों ने आदिवासी रीति रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार किया.

सिमडेगा: जलडेगा के कारीमाटी निवासी स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद अब इस दुनिया में नहीं रहे. अनसेलेम समद का जन्म गांव में ही सन् 1903 में हुआ था और उनकी मृत्यु 22 जुलाई 2020 को हुई.


स्वतंत्रता सेनानी अनसेलेम समद का निधन
बता दें कि 117 साल जी चुके अनसेलेम समद का जीवन काफी संघर्षों से भरा हुआ था. अनसेलेम समद स्वतंत्रता सेनानी के साथ जयपाल सिंह झारखंड आंदोलनकारी भी थे. इन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की लड़ाई में शामिल होकर अंग्रजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया था.

नहीं मिला कोई सम्मान
इसके बाबजूद भी वे गुमनाम की जिंदगी जी रहे थे. परिवार वाले कहते हैं कि अनसेलेम समद को सरकार से न तो कोई सम्मान मिला न ही पहचान मिली. लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी तकलीफ नहीं था. वे सदा जीवन उच्च विचार की जिंदगी जीते थे.


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आदिवासी रीति रिवाज से हुआ अंतिम संस्कार
विदित हो कि एनी होरो, सुशील कुमार बागे, विलियम लुगुन, एनोस एक्का सहित कई बड़े लोग अनसेलेम समद से मिलने आते थे. मृत्यु के बाद गांव के मुंडारी पाहन ने उनके सिर पर पगड़ी पहनाई. वहीं गांव वालों ने आदिवासी रीति रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार किया.

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