सरायकेला: भारतवर्ष में गाय को माता का स्थान प्राप्त है. भारत के कई प्राचीन ग्रंथों में अनेक स्थानों पर पढ़ने को मिलता है कि गोबर में मां लक्ष्मी का वास होता है, यह कथन मात्र शास्त्र वचन नहीं है, अब यह कथन एक वैज्ञानिक सत्य भी साबित हो रहा है. भारतीय प्राचीन ग्रंथों के रचनाओं में दूरदर्शी वैज्ञानिकों ने शोध के बाद जो तथ्य और उदाहरण पेश किए वह पीढ़ी दर पीढ़ी आज कुछ वैज्ञानिक ज्ञान और अनुभव का लाभ प्राप्त कर पा रहे हैं. प्राचीन ग्रंथों में प्राकृतिक पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए एक स्वस्थ जीवन बिताने के कई बातों को समझाया गया था. जिस का भरपूर प्रयोग आज 21वीं सदी में भी लोग कर रहे हैं. इसी शोध के तहत पंचगव्य आज एक ऐसा वैज्ञानिक तकनीक बनकर उभर कर सामने आ रहा है, जिसमें कई प्रयोग और शोध चल रहे हैं. अब इन शोध और प्रयोग को लोग अपने जीवन में उतार कर इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं, साथ ही आर्थिक विकास में भी पंचगव्य तकनीक आज मददगार साबित हो रहा है.
उन्नत भारत अभियान और राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के प्रयास से महिला बन रहीं स्वावलंबी आईआईटी दिल्ली की ओर से संचालित उन्नत भारत अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की परिकल्पना के साथ लोगों को विकसित किए जाने के साथ-साथ उन्हें रोजगार से जोड़ने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. सरायकेला जिले में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की ओर से उन्नत भारत अभियान के तहत सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों के 5 गांव को गोद लेकर वहां विकास की परिकल्पना तैयार की जा रही है. इसी अभियान के तहत राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के सहयोग से इन क्षेत्रों में महिला स्वावलंबन कुटीर उद्योग के साथ-साथ अल्प लागत में गाय से आधारित ग्राम विकास परिकल्पना को मूर्त रूप देते हुए, महिलाओं को विशेष ट्रेनिंग प्रदान कर स्वावलंबी बनाने की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं.
पंचगव्य पर आधारित 100 से भी अधिक प्रोडक्ट बनाकर महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर उन्नत भारत अभियान के तहत कृषि आधारित कुटीर उद्योग के परिकल्पना को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से गौ-सेवा के तहत गांव की संस्कृति शहरों में जाए और शहरों की समृद्धि गांव तक आए. इसी उद्देश्य से पंचगव्य पर आधारित 100 से भी अधिक उत्पादों का निर्माण इन महिला समूह को ट्रेनिंग के माध्यम से प्रदान किया जा रहा है, ताकि वो आय प्राप्त कर सके. मुख्य रूप से पंचगव्य तकनीक (दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर) का अधिक से अधिक प्रयोग कर उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है. जो रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग में लाए जाते हैं, इस कार्यक्रम के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ लोकल फॉर वोकल परिकल्पना को भी साकार किया जा रहा है. अभियान को मुख्य रूप से एनआईटी उन्नत भारत अभियान के झारखंड संयोजक प्रोफेसर रंजीत कुमार के अलावा गौ-सेवा अखिल भारतीय प्रशिक्षण प्रमुख राघवन का भरपूर सहयोग मिल रहा है. इसका नतीजा है कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को गांव आधारित कृषि और व्यवसाय से जोड़ने का लगातार प्रयास किया जा रहा है.
देशभर में 65 हजार लोगों को मिल चुका है प्रशिक्षणगौ-सेवा अखिल भारतीय प्रशिक्षण प्रमुख राघवन की ओर से एक एकड़ जमीन, दो गाय और एक परिवार को कृषि से जोड़कर आधारित फार्मूले पर कार्य करने के बाद प्रतिमाह 20 से 25 हजार आमदनी प्रदान करने के उद्देश्य से प्रशिक्षण कार्यक्रम लगातार चलाए जा रहे हैं. प्रशिक्षण प्रमुख राघवन की ओर से बीते 20 साल में गौ आधारित कृषि कुटीर उद्योग प्रशिक्षण के तहत अब तक देशभर में 65 हजार लोगों को ट्रेनिंग प्रदान किया जा चुका है. इसके अलावा कोरोना काल में इनकी ओर से 132 ऑनलाइन ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए गए हैं, जो निरंतर जारी है.
पंचगव्य पर आधारित 100 से भी अधिक प्रोडक्ट उपलब्ध पंचगव्य पर आधारित कुटीर उद्योग स्थापित किए जाने के उद्देश्य से 100 से भी अधिक प्रोडक्ट बनाए जाते हैं, जो पूरी तरह भारतीय तकनीक पर आधारित होता है. इससे स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं निश्चित आय कर सकती हैं, इन प्रोडक्ट में मुख्य रूप से कृषि, स्वास्थ्य, उपचार से जुड़े उत्पाद शामिल हैं. इसके अलावा रोजमर्रा के जरूरत में आने वाले इन उत्पाद में मुख्य रूप से शामिल हैं जो पंचगव्य से तैयार किए जा रहे हैं.
पंचगव्य तकनीक से इन सभी प्रोडक्ट का निर्माण किया जा रहा है, इतना ही नहीं उन्नत भारत अभियान के तहत एनआईटी कॉलेज की ओर से सोशल मीडिया समेत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इन प्रोडक्ट की बिक्री भी की जा रही है, साथ ही साथ सोशल मीडिया के माध्यम से इनका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, इसके अलावा इन प्रोडक्ट से जुड़े स्वास्थ्यवर्धक लाभ की जानकारियां भी प्रदान की जा रही है.
रेडिएशन रोकने में कारगर साबित हो रहा गौमय एंटी रेडिएशन चिपपंचगव्य तकनीक पर आधारित कोई प्रोडक्ट टेक्नोलॉजी पर भी आधारित हैं. शोध में इस बात का पता चला है कि पंचगव्य और गौमय से तैयार चिप एंटी रेडिएशन का काम करती है. गौमय से तैयार एंटी रेडिएशन चिप मोबाइल से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन को कम करने में सहायक है. इसके अलावा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और गैजेट्स जिनका हम प्रयोग दैनिक जीवन में करते हैं उनकी आवश्यकता से अधिक रेडिएशन को भी इस चिप के माध्यम से कंट्रोल किया जा सकता है, जिसके कई प्रत्यक्ष प्रमाण है. शोध से इस बात का पता चला है कि गाय के गोबर में हिट और वेब दोनों प्रकार के रेडिएशन रोकने की क्षमता मौजूद है.
शुद्ध देसी नस्ल की गाय के गोबर में है केवल क्षमता गौ-सेवा अखिल भारतीय प्रशिक्षण प्रमुख राघवन बताते हैं कि आज भारत में तकरीबन 10 करोड़ गाय हैं, जिनमें से 8 करोड़ यानी 80% से भी अधिक विदेशी नस्ल की गाय मौजूद हैं. जिनके पंचगव्य में यह सारी क्षमताएं नहीं है. नतीजतन उन गायों के गोबर समेत पंचगव्य का प्रयोग सफल नहीं माना जा सकता. इसके ठीक विपरीत केवल और केवल देसी नस्ल की गाय में कई ऐसे गुण मौजूद हैं जो आज हम मेडिसिन सप्लीमेंट के रूप में ग्रहण कर रहे हैं. विदेशी नस्ल की गाय के गोबर में कोई गुण मौजूद नहीं होने के कारण इनके प्रयोग की सलाह भी नहीं दी जाती है.
मेडिकल साइंस भी मान रहा पंचगव्य तकनीक हो रहा कारगर आज पंचगव्य तकनीक का प्रयोग स्वास्थ्य और उपचार के तौर पर किया जा रहा है, जिसके कई बेहतरीन परिणाम सामने आ रहे हैं. इधर वैज्ञानिक शोध पर आधारित मेडिकल साइंस भी अब पंचगव्य तकनीक को कारगर मान रहा है, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी डॉ मृत्युंजय सिंह ने बताया कि पंचगव्य तकनीक का प्रयोग कई बीमारियों में लाभकारी साबित हुआ है, ऐसे में इससे जुड़े गुणकारी तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के काल में अब समय आ गया है कि लोग पंचगव्य- गोबर और गोमूत्र के महत्व को समझने का प्रयास कर इसे अधिक से अधिक उपयोग में लाएं. साथ ही प्राचीन मान्यता प्राप्त प्राकृतिक स्रोत से जुड़े पंचगव्य उत्पाद को बढ़ावा दें, ताकि भारत को एक बार फिर सोने की चिड़िया बनाया जा सके.