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देश की दुर्दशा ने स्वतंत्रता सेनानियों को किया खामोश! मानवीय मूल्यों में आ रही गिरावट से हैं चिंतित

स्वतंत्रता सेनानी अखोरी बालेश्वर सिन्हा आजादी के 70 साल बाद भी देश के मौजूदा हालात देखकर दुखी हैं. उनका कहना है कि आजादी के 72 साल बाद भी आज देश के लोग दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पा रहे हैं, वही जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद ने गहरी पैठ जमा ली है.

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अखोरीबालेश्वर सिन्हा, स्वतंत्रता सेनानी
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Published : Jan 25, 2020, 10:47 AM IST

सरायकेला: आजादी के 70 साल बाद भी देश के मौजूदा हालात में आ रही गिरावट देखकर स्वतंत्रता सेनानी दुखी और खामोश हैं. आज समाज और राष्ट्र में अशिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लूटपाट, पैरवी, घूसखोरी का बोलबाला है, जिस से आम आदमी परेशान है तो वही यह सब देख स्वतंत्रता सेनानी चिंतित हैं.

देखें पूरी खबर

वर्तमान हालात देखकर होता है दुख
सरायकेला के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी अखोरी बालेश्वर सिन्हा की उम्र 86 वर्ष है. देश के वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो सिहर उठते हैं. वे कहते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के बाद सोचा था कि देश में राम राज्य कायम हो जाएगा, भारत समृद्ध, खुशहाल और भ्रष्टाचार मुक्त होग. आंदोलन में हर वर्ग के लोगों का निस्वार्थ भाव से आजादी के लड़ाई में योगदान था. लेकिन आज देश की वर्तमान हालात देखकर मन दुखी हो जाता है. आजादी के 72 साल बाद भी आज देश के लोग दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पा रहे हैं, वही जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद ने गहरी पैठ जमा ली है.

ये भी पढ़ें- जीएम एलसी त्रिवेदी ने किया कोडरमा-बरकाकाना रेलखंड का निरीक्षण, कहा- कम होगी पटना से रांची की दूरी

जेल भी जा चुके हैं अखोरी बालेश्वर सिन्हा
बिहार के बक्सर में जन्मे अखोरी बालेश्वर सिन्हा पहली बार 1945 में बिहार के बक्सर में स्वाधीनता संग्राम में जेल गए. जहां आजादी की लड़ाई लड़ते इन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था. अखोरी बालेश्वर सिन्हा के बड़े भाई रामनरेश सिन्हा जो पेशे से वकील थे. वह आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे और आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे. जिन से प्रभावित होकर अखोरी बालेश्वर सिन्हा ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सहभागिता दी. बड़े भाई के साथ मिलकर उन्होंने 1942 के आंदोलन में अहम भूमिका लगाई निभाई जिसमें बक्सर कचहरी में आग लगाने, टेलीफोन का तार काटने, रेल लाइन उखाड़ने आदि आंदोलन किए, महात्मा गांधी के नारे करो या मरो के आह्वान पर इन्होंने आजादी की लड़ाई तेज की नतीजतन इन्हें जेल जाना पड़ा.

ये भी पढ़ें- ग्लेन जोसेफ गॉलस्टेन बने विधानसभा के मनोनीत सदस्य, विधानसभा अध्यक्ष ने कार्यालय में दिलाई शपथ

आजादी की लड़ाई में थे सक्रिय
आज 86 बसंत देख चुके अखोरी बालेश्वर सिन्हा अपने घर में गुमसुम अकेले रहते हैं. लेकिन एक दौर था जब गुलाम भारत में यह आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे. लेकिन आज देश की दुर्दशा देख इनका मन छोटा हो चुका है. इनका मानना है कि देश आज गलत दिशा में जा रहा है, जबकि आज नेता चरित्रहीन और बिकाऊ हो गए हैं. लोग निजी स्वार्थ के लिए राष्ट्र की आहुति देने तक तैयार हैं. देश गलत रास्ते पर चल निकला है ,जो की चिंता का विषय है. इनका मानना है कि पहले के नेताओं में ईमानदारी और चरित्र बेदाग रहता था जो आज विपरीत है.

स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहने के बाद टाटा स्टील में मिली नौकरी
स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहने के बाद जब 1947 को देश आजाद हो गया तो अखोरी बालेश्वर सिन्हा औद्योगिक नगरी जमशेदपुर पहुंचे जहां इन्होंने टिस्को (अब टाटा स्टील) में नौकरी की. अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने लगे. स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा करने को लेकर वर्ष 2009 में इन्हें दिल्ली में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया.

सरायकेला: आजादी के 70 साल बाद भी देश के मौजूदा हालात में आ रही गिरावट देखकर स्वतंत्रता सेनानी दुखी और खामोश हैं. आज समाज और राष्ट्र में अशिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लूटपाट, पैरवी, घूसखोरी का बोलबाला है, जिस से आम आदमी परेशान है तो वही यह सब देख स्वतंत्रता सेनानी चिंतित हैं.

देखें पूरी खबर

वर्तमान हालात देखकर होता है दुख
सरायकेला के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी अखोरी बालेश्वर सिन्हा की उम्र 86 वर्ष है. देश के वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो सिहर उठते हैं. वे कहते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के बाद सोचा था कि देश में राम राज्य कायम हो जाएगा, भारत समृद्ध, खुशहाल और भ्रष्टाचार मुक्त होग. आंदोलन में हर वर्ग के लोगों का निस्वार्थ भाव से आजादी के लड़ाई में योगदान था. लेकिन आज देश की वर्तमान हालात देखकर मन दुखी हो जाता है. आजादी के 72 साल बाद भी आज देश के लोग दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पा रहे हैं, वही जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद ने गहरी पैठ जमा ली है.

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जेल भी जा चुके हैं अखोरी बालेश्वर सिन्हा
बिहार के बक्सर में जन्मे अखोरी बालेश्वर सिन्हा पहली बार 1945 में बिहार के बक्सर में स्वाधीनता संग्राम में जेल गए. जहां आजादी की लड़ाई लड़ते इन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था. अखोरी बालेश्वर सिन्हा के बड़े भाई रामनरेश सिन्हा जो पेशे से वकील थे. वह आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे और आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे. जिन से प्रभावित होकर अखोरी बालेश्वर सिन्हा ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सहभागिता दी. बड़े भाई के साथ मिलकर उन्होंने 1942 के आंदोलन में अहम भूमिका लगाई निभाई जिसमें बक्सर कचहरी में आग लगाने, टेलीफोन का तार काटने, रेल लाइन उखाड़ने आदि आंदोलन किए, महात्मा गांधी के नारे करो या मरो के आह्वान पर इन्होंने आजादी की लड़ाई तेज की नतीजतन इन्हें जेल जाना पड़ा.

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आजादी की लड़ाई में थे सक्रिय
आज 86 बसंत देख चुके अखोरी बालेश्वर सिन्हा अपने घर में गुमसुम अकेले रहते हैं. लेकिन एक दौर था जब गुलाम भारत में यह आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे. लेकिन आज देश की दुर्दशा देख इनका मन छोटा हो चुका है. इनका मानना है कि देश आज गलत दिशा में जा रहा है, जबकि आज नेता चरित्रहीन और बिकाऊ हो गए हैं. लोग निजी स्वार्थ के लिए राष्ट्र की आहुति देने तक तैयार हैं. देश गलत रास्ते पर चल निकला है ,जो की चिंता का विषय है. इनका मानना है कि पहले के नेताओं में ईमानदारी और चरित्र बेदाग रहता था जो आज विपरीत है.

स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहने के बाद टाटा स्टील में मिली नौकरी
स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहने के बाद जब 1947 को देश आजाद हो गया तो अखोरी बालेश्वर सिन्हा औद्योगिक नगरी जमशेदपुर पहुंचे जहां इन्होंने टिस्को (अब टाटा स्टील) में नौकरी की. अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने लगे. स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा करने को लेकर वर्ष 2009 में इन्हें दिल्ली में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया.

Intro:आजादी के आज 70 साल बाद भी देश के मौजूदा हालात में आ रही गिरावट देखकर स्वतंत्रता सेनानी दुखी और खामोश है. आज समाज और राष्ट्र में अशिक्षा ,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लूटपाट, पैरवी, घूसखोरी का बोलबाला है, जिस से आम आदमी परेशान है तो वही यह सब देख स्वतंत्रता सेनानी चिंतित हैंBody:स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के बाद सोचा था कि देश में राम राज्य कायम हो जाएगा, भारत समृद्ध खुशहाल और भ्रष्टाचार मुक्त होगा आंदोलन में हर वर्ग के लोगों का निस्वार्थ भाव से आजादी के लड़ाई में योगदान था. लेकिन आज देश की वर्तमान हालात देखकर मन दुखी हो जाता है, आजादी के 72 साल बाद भी आज देश के लोग दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पा रहे हैं, वही जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद ने गहरी पैठ जमा ली है ,यह कहना है स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहे सरायकेला के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी अखोरी बालेश्वर सिन्हा की. आज जब 86 वर्ष की आयु में यह देश के वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो सिहर उठते हैं।

बिहार के बक्सर में जन्मे अखोरी बालेश्वर सिन्हा पहली बार 1945 में बिहार के बक्सर में स्वाधीनता संग्राम में जेल गए, जहां आजादी की लड़ाई लड़ते इन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था, अखोरी बालेश्वर सिन्हा के बड़े भाई रामनरेश सिन्हा जो पेशे से वकील थे वह आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे और आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे, जिन से प्रभावित होकर अखोरी बालेश्वर सिन्हा ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सहभागिता दी, बड़े भाई के साथ मिलकर उन्होंने 1942 के आंदोलन में अहम भूमिका लगाई निभाई जिसमें बक्सर कचहरी में आग लगाने, टेलीफोन का तार काटने, रेल लाइन उखाड़ने आदि आंदोलन किए, महात्मा गांधी के नारे करो या मरो के आह्वान पर इन्होंने आजादी की लड़ाई तेज की नतीजतन इन्हें जेल जाना पड़ा।

आज 86 बसंत देख चुके अखोरी बालेश्वर सिन्हा अपने घर में गुमसुम अकेले रहते हैं, लेकिन एक दौर था जब गुलाम भारत में यह आजादी की लड़ाई में सक्रिय थे .लेकिन आज देश की दुर्दशा देख इनका मन छोटा हो चुका है ,इनका मानना है कि देश आज गलत दिशा में जा रहा है, जबकि आज नेता चरित्रहीन और बिकाऊ हो गए हैं ,लोग निजी स्वार्थ के लिए राष्ट्र की आहुति देने तक तैयार हैं ,देश गलत रास्ते पर चल निकला है ,जो की चिंता का विषय है. इनका मानना है कि पहले के नेताओं में ईमानदारी और चरित्र बेदाग रहता था जो आज विपरीत है।Conclusion:स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहने के बाद टाटा स्टील में मिली नौकरी।

स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहने के बाद जब 1947 को देश आजाद हो गया तो अखोरी बालेश्वर सिन्हा औद्योगिक नगरी जमशेदपुर पहुंचे जहां इन्होंने टिस्को (अब टाटा स्टील) में नौकरी की और फिर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने लगे, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा करने को लेकर वर्ष 2009 में इन्हें दिल्ली में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया।


भले ही आज राष्ट्र 69 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है, लेकिन देश की दुर्दशा देखकर शायद स्वतंत्रता सेनानी एक बार फिर मन ही मन आंदोलन कीसोच रहे हैं लेकिन वे विवश हैं।

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