सरायकेला: झारखंड की औद्योगिक नगरी के नाम से विख्यात सरायकेला के अब तक कई कंपनियां बंद हो गईं हैं तो बहुत सी कंपनियां बंद होने के कगार पर है. ऐसे में कंपनी को जमीन देने वाले जमींदाता अब किसी भी कंपनी या सरकार को अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते हैं. यही नहीं कंपनी को दी गई जमीन अब वह वापस लेना चाहते हैं. इसके लिए पूरे परिवार के साथ विस्थापित धरना पर बैठ गए हैं.
बल्लव स्टील कंपनी 100 एकड़ में फैला है इसकी शुरुआत साल 2006 में हुई थी. इस कंपनी के खुलने से पहले साल 2003 में ग्रामीणों ने अपनी खेती योग्य जमीन इस आशा में बेची थी कि उनके गांव के साथ-साथ आस पास के गांव भी विकसित होंगे और उन्हें रोजगार मिलेगा. साल 2007 में इस कंपनी के नाम को जूम बल्लव स्टील लिमिटेड के नाम से परिवर्तित कर दिया गया. उस वक्त भी ग्रामीणों को इस कंपनी में नौकरी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी.
लगभग पांच साल तक कंपनी चलने के बाद कंपनी को घाटे में बताते हुए साल 2013 में इस कंपनी को उषा मार्टिन कंपनी लिमिटेड के हाथों बेच दिया गया. उषा मार्टिन कंपनी ने इस कंपनी का नाम उषा मार्टिन केवल्स लिमिटेड रखा तो जरूर लेकिन उत्पादन की शुरुआत नहीं की. कंपनी के बंद रहने के कारण कंपनी में कार्यरत 320 कर्मचारियों में से सिर्फ 36 कर्मचारियों को कंपनी की सुरक्षा के मद्देनजर रखा गया. पिछले साल टाटा समूह ने उषा मार्टिन को टेकओवर कर लिया. टेकओवर के बाद टाटा लॉन्ग प्रोडक्ट ने उन सभी 36 कर्मचारियों को रखा तो जरूर लेकिन कर्मचारी पूरे वित्तीय वर्ष एम्प्लॉय के तौर पर काम न कर सकें. इस कारण से बीते एक फरवरी को उन्हें निष्कासित करने संबंधित अखबार में इस्तेहार दे दिया गया. अब एक बार फिर से सभी मजदूर अपनी जमीन देकर भी बेरोजगार हो गए हैं.
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अपने हक और अधिकार के लिए इन विस्थापितों ने पहले तो यहां के सुरक्षाकर्मियों को बाहर निकाला और अब खुद पूरे परिवार के साथ डेरा डाल दिया है. अब उनका कहना है कि जब तक कंपनी उन्हें फिर से नौकरी पर वापस नहीं लेती है तो वह सभी अपनी अपनी जमीन पर खेती करेंगे और अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे.