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सरायकेला: 8 सालों से बंद पड़ी बल्लभ स्टील कंपनी के विस्थापित हुए उग्र, सुरक्षाकर्मियों को बाहर निकालकर खुद जमाया डेरा

सरायकेला के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित बंद पड़ी बल्लव स्टील कंपनी के विस्थापित मजदूरों ने जमकर हंगामा किया. विस्थापित अपनी मांग को लेकर पूरे परिवार के साथ धरने पर बैठ गए और बेची गई जमीन वापस लेने की मांग करने लगे.

displaced demand to take back the sold land in saraikela
मांग करते हुए विस्थापित
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Published : Feb 11, 2020, 11:34 AM IST

सरायकेला: झारखंड की औद्योगिक नगरी के नाम से विख्यात सरायकेला के अब तक कई कंपनियां बंद हो गईं हैं तो बहुत सी कंपनियां बंद होने के कगार पर है. ऐसे में कंपनी को जमीन देने वाले जमींदाता अब किसी भी कंपनी या सरकार को अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते हैं. यही नहीं कंपनी को दी गई जमीन अब वह वापस लेना चाहते हैं. इसके लिए पूरे परिवार के साथ विस्थापित धरना पर बैठ गए हैं.

देखें पूरी खबर

बल्लव स्टील कंपनी 100 एकड़ में फैला है इसकी शुरुआत साल 2006 में हुई थी. इस कंपनी के खुलने से पहले साल 2003 में ग्रामीणों ने अपनी खेती योग्य जमीन इस आशा में बेची थी कि उनके गांव के साथ-साथ आस पास के गांव भी विकसित होंगे और उन्हें रोजगार मिलेगा. साल 2007 में इस कंपनी के नाम को जूम बल्लव स्टील लिमिटेड के नाम से परिवर्तित कर दिया गया. उस वक्त भी ग्रामीणों को इस कंपनी में नौकरी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी.

लगभग पांच साल तक कंपनी चलने के बाद कंपनी को घाटे में बताते हुए साल 2013 में इस कंपनी को उषा मार्टिन कंपनी लिमिटेड के हाथों बेच दिया गया. उषा मार्टिन कंपनी ने इस कंपनी का नाम उषा मार्टिन केवल्स लिमिटेड रखा तो जरूर लेकिन उत्पादन की शुरुआत नहीं की. कंपनी के बंद रहने के कारण कंपनी में कार्यरत 320 कर्मचारियों में से सिर्फ 36 कर्मचारियों को कंपनी की सुरक्षा के मद्देनजर रखा गया. पिछले साल टाटा समूह ने उषा मार्टिन को टेकओवर कर लिया. टेकओवर के बाद टाटा लॉन्ग प्रोडक्ट ने उन सभी 36 कर्मचारियों को रखा तो जरूर लेकिन कर्मचारी पूरे वित्तीय वर्ष एम्प्लॉय के तौर पर काम न कर सकें. इस कारण से बीते एक फरवरी को उन्हें निष्कासित करने संबंधित अखबार में इस्तेहार दे दिया गया. अब एक बार फिर से सभी मजदूर अपनी जमीन देकर भी बेरोजगार हो गए हैं.

ये भी देखें- राहुल पुरवार होंगे झारखंड के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, विनय चौबे बन सकते हैं सीएम के प्रधान सचिव

अपने हक और अधिकार के लिए इन विस्थापितों ने पहले तो यहां के सुरक्षाकर्मियों को बाहर निकाला और अब खुद पूरे परिवार के साथ डेरा डाल दिया है. अब उनका कहना है कि जब तक कंपनी उन्हें फिर से नौकरी पर वापस नहीं लेती है तो वह सभी अपनी अपनी जमीन पर खेती करेंगे और अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे.

सरायकेला: झारखंड की औद्योगिक नगरी के नाम से विख्यात सरायकेला के अब तक कई कंपनियां बंद हो गईं हैं तो बहुत सी कंपनियां बंद होने के कगार पर है. ऐसे में कंपनी को जमीन देने वाले जमींदाता अब किसी भी कंपनी या सरकार को अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते हैं. यही नहीं कंपनी को दी गई जमीन अब वह वापस लेना चाहते हैं. इसके लिए पूरे परिवार के साथ विस्थापित धरना पर बैठ गए हैं.

देखें पूरी खबर

बल्लव स्टील कंपनी 100 एकड़ में फैला है इसकी शुरुआत साल 2006 में हुई थी. इस कंपनी के खुलने से पहले साल 2003 में ग्रामीणों ने अपनी खेती योग्य जमीन इस आशा में बेची थी कि उनके गांव के साथ-साथ आस पास के गांव भी विकसित होंगे और उन्हें रोजगार मिलेगा. साल 2007 में इस कंपनी के नाम को जूम बल्लव स्टील लिमिटेड के नाम से परिवर्तित कर दिया गया. उस वक्त भी ग्रामीणों को इस कंपनी में नौकरी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी.

लगभग पांच साल तक कंपनी चलने के बाद कंपनी को घाटे में बताते हुए साल 2013 में इस कंपनी को उषा मार्टिन कंपनी लिमिटेड के हाथों बेच दिया गया. उषा मार्टिन कंपनी ने इस कंपनी का नाम उषा मार्टिन केवल्स लिमिटेड रखा तो जरूर लेकिन उत्पादन की शुरुआत नहीं की. कंपनी के बंद रहने के कारण कंपनी में कार्यरत 320 कर्मचारियों में से सिर्फ 36 कर्मचारियों को कंपनी की सुरक्षा के मद्देनजर रखा गया. पिछले साल टाटा समूह ने उषा मार्टिन को टेकओवर कर लिया. टेकओवर के बाद टाटा लॉन्ग प्रोडक्ट ने उन सभी 36 कर्मचारियों को रखा तो जरूर लेकिन कर्मचारी पूरे वित्तीय वर्ष एम्प्लॉय के तौर पर काम न कर सकें. इस कारण से बीते एक फरवरी को उन्हें निष्कासित करने संबंधित अखबार में इस्तेहार दे दिया गया. अब एक बार फिर से सभी मजदूर अपनी जमीन देकर भी बेरोजगार हो गए हैं.

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अपने हक और अधिकार के लिए इन विस्थापितों ने पहले तो यहां के सुरक्षाकर्मियों को बाहर निकाला और अब खुद पूरे परिवार के साथ डेरा डाल दिया है. अब उनका कहना है कि जब तक कंपनी उन्हें फिर से नौकरी पर वापस नहीं लेती है तो वह सभी अपनी अपनी जमीन पर खेती करेंगे और अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे.

Intro:झारखंड की औद्योगिक नगरी के नाम से विख्यात सरायकेला के औद्योगिक क्षेत्र में अब तक बहुत सी कंपनियां बंद हो गई है तो बहुत सी कंपनियां बंद होने के कगार पर है। ऐसे में कंपनी के लिए जमीन देने वाले जमींदाता अब किसी भी कंपनी या सरकार को अपनी जमीन बेचना नही चाह रहे हैं, और बेची गई जमीन अब वापस लेना चाह रहे हैं।
Body:सरायकेला खरसावां जिले के आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित बंद पड़ी स्टील कंपनी बल्लव स्टील। सौ एकड़ में फैले इस कंपनी की शुरुआत वर्ष 2006 में हुई थी। इस कंपनी के खुलने से पहले वर्ष 2003 में ग्रामीणों ने अपनी खेती योग्य जमीन इस आशा में बेची थी कि उनके गांव के साथ साथ आस पास के गांव भी विकसित होंगे और उन्हें रोजगार मिलेगा, लेकिन वर्ष 2007 में इस कंपनी के नाम को जूम बल्लव स्टील लिमिटेड के नाम से परिवर्तित कर दिया गया। उस वक्त भी ग्रामीणों को इस कंपनी में नौकरी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। खैर.. लगभग पांच साल तक कंपनी चलने के बाद कंपनी को घाटे में बताते हुए वर्ष 2013 में इस कम्पनी को उषा मार्टिन कंपनी लिमिटेड के हाथों बेच दिया गया। उषा मार्टिन कंपनी ने इस कम्पनी का नाम उषा मार्टिन केवल्स लिमिटेड रखा तो जरूर लेकिन उत्पादन की शुरुआत नही की। कंपनी के बंद रहने के कारण कंपनी में कार्यरत 320 कर्मचारियों में से सिर्फ 36 कर्मचारियों को कंपनी की सुरक्षा के मद्देनजर रखा गया। पिछले वर्ष टाटा समूह के द्वारा उषा मार्टिन को टेकओवर कर लिया गया। टेकओवर के बाद टाटा लॉन्ग प्रोडक्ट ने उन सभी 36 कर्मचारियों को रखा तो जरूर लेकिन कर्मचारी पूरे वित्तीय वर्ष एम्प्लॉय के तौर पर काम न कर सकें इस कारण से बीते एक फरबरी को उन्हें निष्कासित करने संबंधित अखबार में इस्तेहार दे दिया गया। अब एक बार फिर से सभी मजदूर अपनी जमीन देकर भी बेरोजगार हो गए हैं।Conclusion:अपने हक और अधिकार के लिए इन विस्थापितों ने पहले तो यहाँ के सुरक्षाकर्मियों को बाहर निकाला और अब खुद पूरे परिवार के साथ डेरा डाल दिया। अब उनका कहना है कि जब तक कंपनी उन्हें फिर से नौकरी पर वापस नहीं लेती है तो वह सभी अपनी अपनी जमीन पर खेती करेंगे और अपने परिवार का भरण पोषण करेंगे।

इधर अब देखना दिलचस्प होगा कि सभी को रोजगार देने की बात कहकर सत्ता में आने वाली यूपीए सरकार इन लोगों को नौकरी दिलवाती है या फिर इनके हक अधिकार को छीनकर इन्हें कंपनी से बाहर निकलवाती है।



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