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Seraikela Chadak Puja: पीठ में कील चुभोकर 50 फीट ऊपर खूंटे से लटक भोक्ता करते हैं भगवान की आराधना, दशकों से चली आ रही परंपरा

सरायकेला जिले के कांड्रा बस्ती में 2 दिनों तक चड़क पूजा का आयोजन होता है. इस पूजा में भक्त शरीर में कील से छेद करवाते हैं और फिर उन कीलों को 50 फीट के खूंटे में बांध कर हवा में घूमते हुए ईश्वर की आराधना करते हैं.

Seraikela Chadak Puja
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Published : Apr 15, 2023, 8:06 AM IST

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सरायकेला: जिले के कांड्रा बस्ती में सन 1931 से प्रतिवर्ष आस्था और विश्वास के साथ चड़क पूजा का आयोजन 2 दिनों तक किया जाता है. पहले दिन स्नान के साथ शिवालयों में पूजा आराधना की जाती है, जबकि दूसरे दिन सुबह से ही भक्त शरीर में छेद करवाते हैं. जिसे रजनीफोड़ा कहा जाता है. इस पूजा और आराधना के माध्यम से भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने की भरपूर कोशिश करते हैं.

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झारखंड समेत सरायकेला-खरसावां जिले के विभिन्न क्षेत्रों में चड़क पूजा का आयोजन प्रतिवर्ष चैत्र महीने में हर्षोल्लास के साथ किया जाता है. भगवान शिव की आराधना को समर्पित इस पौराणिक पूजा से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी रहती है. पूजा को लेकर अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. कहीं माना जाता है कि चैत्र मास में चड़क पूजा शिव आराधना के बाद ही लोग अपने नववर्ष के सभी शुभ कार्य को प्रारंभ करते हैं. तो वहीं कुछ क्षेत्र में माना जाता है कि चड़क पूजा करने से क्षेत्र में खुशहाली रहती है और महामारी, बीमारियों का प्रकोप नहीं रहता. इन्हीं गाथाओं के बीच सरायकेला जिले के कांड्रा बस्ती में भी सन 1931 से प्रतिवर्ष आस्था और विश्वास के साथ चड़क पूजा का आयोजन 2 दिनों तक किया जाता है.

92 सालों से लकड़ी का खूंटा जस का तस: कांड्रा बस्ती में वर्षों पहले सन् 1931 में पूर्वजों ने चड़क पूजा के लिए 50 फीट ऊंचा लकड़ी का जो खूंटा गाड़ा था, वह आज भी सही सलामत है. दशकों बीत जाने के बाद भी इस लकड़ी के खूंटे में जरा सा भी परिवर्तन नहीं देखा गया है. लोग इसे भगवान शिव का चमत्कार मानते हैं. चड़क पूजा में भक्त पीठ पर कील से छेद कराते हैं, फिर उन कीलों को खूंटे में बांधकर 50 फीट ऊपर हवा में घूमते हुए भगवान शिव को प्रसन्न कर आराधना करते हैं. 92 साल से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहे इस पूजा में आज तक कोई भी अप्रिय घटना सामने नहीं आई है, जिसे लोग भगवान का चमत्कार मानते हैं. इतना ही नहीं नुकीले कील से पीठ को छिदवाने वाले भक्त को कभी कोई परेशानी नहीं होती. लोहे के कील होने के बावजूद पीठ में जख्म का नामोनिशान तक नहीं रहता.

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मन्नत पूरी होने पर भी भोक्ता करवाते हैं रजनी फोड़ा: कहा जाता है कि चड़क पूजा में भगवान शिव से मन्नत मांगने वाले भक्तों की मुराद पूरी होने पर वह रजनी फोड़ा करवाते हैं. इन भक्तों को भोक्ता भी कहा जाता है. मंदिर में शिवलिंग के सामने नतमस्तक होकर पूजा करने के बाद सीधे तौर पर नुकीले किलों को पीठ पर घुसा दिया जाता है और फिर भक्त 50 फीट ऊपर खूंटे पर जाकर हवा में घूमते हैं. इस दिन गांव में हर तरफ जश्न का माहौल होता है. लोग सुबह से ही रजनीफोड़ा और भोक्ता को देखने जुटे रहते हैं.

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सरायकेला: जिले के कांड्रा बस्ती में सन 1931 से प्रतिवर्ष आस्था और विश्वास के साथ चड़क पूजा का आयोजन 2 दिनों तक किया जाता है. पहले दिन स्नान के साथ शिवालयों में पूजा आराधना की जाती है, जबकि दूसरे दिन सुबह से ही भक्त शरीर में छेद करवाते हैं. जिसे रजनीफोड़ा कहा जाता है. इस पूजा और आराधना के माध्यम से भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने की भरपूर कोशिश करते हैं.

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92 सालों से लकड़ी का खूंटा जस का तस: कांड्रा बस्ती में वर्षों पहले सन् 1931 में पूर्वजों ने चड़क पूजा के लिए 50 फीट ऊंचा लकड़ी का जो खूंटा गाड़ा था, वह आज भी सही सलामत है. दशकों बीत जाने के बाद भी इस लकड़ी के खूंटे में जरा सा भी परिवर्तन नहीं देखा गया है. लोग इसे भगवान शिव का चमत्कार मानते हैं. चड़क पूजा में भक्त पीठ पर कील से छेद कराते हैं, फिर उन कीलों को खूंटे में बांधकर 50 फीट ऊपर हवा में घूमते हुए भगवान शिव को प्रसन्न कर आराधना करते हैं. 92 साल से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहे इस पूजा में आज तक कोई भी अप्रिय घटना सामने नहीं आई है, जिसे लोग भगवान का चमत्कार मानते हैं. इतना ही नहीं नुकीले कील से पीठ को छिदवाने वाले भक्त को कभी कोई परेशानी नहीं होती. लोहे के कील होने के बावजूद पीठ में जख्म का नामोनिशान तक नहीं रहता.

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