सरायकेला: कोरोना संक्रमण काल में एक ओर जहां प्रकृति पर्यावरण हवा और नदियां स्वता साफ होने लगी, तो वहीं इसके प्रभाव के कारण देश में लॉकडाउन होने से इंसानी गतिविधियां कम हुई और पर्यावरण मानव रिसेट हो रहा है. लेकिन अब इस काल में कई नए समस्या भी विकराल रूप लेकर सामने आए हैं, जिनमें सबसे अधिक इस वायरस संक्रमण के रोकथाम में प्रयोग में आने वाले मेडिकल सामग्रियां जैसे ग्लव्स, मास्क, पीपीई किट समेत बायोमेडिकल वेस्ट के समुचित तरीके से निस्तारण और निष्पादन की समस्या भी बड़ी है. इस्तेमाल किए गए दास्ताने, मास्क नए किस्म के खतरनाक कचड़े हैं, इनमें संक्रमण का खतरा बढ़ गया है.
जिस तरह कोविड-19 संक्रमण रोकथाम को लेकर सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर थूकना मना कर दिया है, ठीक उसी तरह इन बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण भी काफी महत्वपूर्ण है. यदि हम बात करें झारखंड के कोल्हान प्रमंडल की तो कोल्हान के तीन प्रमुख जिले जमशेदपुर, पश्चिम सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां में सैकड़ों अस्पताल, क्लीनिक, रिसर्च सेंटर, डायग्नोस्टिक सेंटर समेत पैथोलॉजिकल लैब हैं, जहां बड़ी तादाद में बायोमेडिकल वेस्ट निकलता है. एक अनुमान के मुताबिक, कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों को मिला दें तो हर दिन यहां मौजूद अस्पतालों से तकरीबन 2 टन बायो मेडिकल वेस्ट निकाला जाता है. ऐसे में इस कोविड-19 संक्रमण के दौर में इन बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण सबसे अहम प्रक्रिया है.
![Biomedical disposal risk increased in kolhan, Seraikela Biomedical Waste Company, Medical Waste Disposal at Seraikela, बायोमेडिकल डिस्पोजल पर संक्रमण का खतरा ज्यादा, सरायकेला बायोमेडिकल वेस्ट कंपनी, सरायकेला में मेडिकल वेस्ट का डिस्पोजल](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/7556856_bjkjk.png)
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आज जब संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा है तो ऐसे में इन बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजल के लिए ठोस उपाय किया जाना सबसे महत्वपूर्ण है ,संक्रमण रोकने के साथ-साथ संक्रमण ना फैले, इसके लिए इन बायो मेडिकल वेस्ट का समुचित तरीके से निस्तारण अब सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है. इस कड़ी को अब और भी अधिक मजबूती प्रदान करने में सरायकेला जिले के दुगनी गांव में स्थित आदित्यपुर वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम प्लांट अहम भूमिका अदा करने जा रहा है.
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डेडीकेटेड व्हीकल से ही होना है बायोमेडिकल वेस्ट का उठाव
झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के मानकों के अनुसार, प्रदूषण के साथ-साथ संक्रमण को रोकने के उद्देश्य से अस्पताल समेत नर्सिंग होम से वेस्ट प्लांट तक बायोमेडिकल वेस्ट ट्रांसपोर्टेशन का काम सिर्फ और सिर्फ डेडीकेटेड व्हीकल से ही किया जाना है. यानी एक ऐसी गाड़ी जो पूरी तरह चारों ओर से बंद हो, जिसमें सभी मेडिकल वेस्ट को सुरक्षित तरीके से रखा जाए और फिर निष्पादन के लिए वेस्ट प्लांट भेजा जाए. हालांकि यह प्रक्रिया कोल्हान क्षेत्र में मार्च माह से शुरू होनी थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण स्पेशल डेडीकेटेड व्हीकल का बंदोबस्त नहीं हो पाया. ऐसे में आदित्यपुर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट भी बायो वेस्ट का निष्पादन नहीं कर पा रहा था. लेकिन कंपनी की ओर से स्पेशल डेडीकेटेड व्हीकल का बंदोबस्त किया जा चुका है.
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निजी अस्पताल और नर्सिंग होम खुले में फेंक रहे मेडिकल वेस्ट
कोरोना के इस संकट काल में जिन बड़े अस्पतालों के पास अपने खुद के इंसीनरेटर हैं वे तो समुचित तरीके से बायो वेस्ट का जलाव और निष्पादन कर देते हैं. लेकिन छोटे-मोटे और अधिकांश निजी नर्सिंग होम सही तरीके से इन मेडिकल वेस्ट का निस्तारण नहीं कर पाते. कुछ एक निजी नर्सिंग होम के पड़ताल में हमने पाया कि आम कचरे की तरह बायोमेडिकल वेस्ट को भी खुले में फेंका जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए तो ठीक नहीं है. जबकि इससे इस संक्रमण काल में संक्रमण का खतरा आसानी से फैलने के सबसे अधिक आसार हैं.
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मेडिकल वेस्ट सही तरीके से डिस्पोज नहीं होने से सबसे ज्यादा संक्रमण का खतरा
कोरोना संक्रमण के इस दौर में जहां संक्रमण से बचने के लिए लोग कई नए प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में बायोमेडिकल वेस्ट निष्पादन संक्रमण रोकने में सबसे ज्यादा कारगर साबित होगा. लेकिन इसे सही तरीके से और तय मानकों के अनुसार ही निष्पादित किया जाए. डॉक्टर बताते हैं कि जितने भी बायोमेडिकल वेस्ट हैं, जो इलाज के दौरान इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें भी वायरस या कीटाणु मौजूद रहते हैं. ऐसे में यदि यह खुले स्थानों पर फेंके जाएं और तय मानकों के अनुसार इनका निष्पादन न हो तो महामारी आसानी से फैल सकती है. ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि मेडिकल वेस्ट का बिल्कुल सटीक और सही तरीके से निष्पादन हो.
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- पूर्वी सिंहभूम जिले में सरकारी अस्पतालों की संख्या- 36
- निजी अस्पतालों की संख्या- 178
पश्चिम सिंहभूम जिला
- सरकारी अस्पतालों की संख्या- 17
- निजी अस्पतालों की संख्या- 31
सरायकेला-खरसावां जिला
- सरकारी अस्पतालों की संख्या- 20
- निजी अस्पतालों की संख्या- 70
इस तरह कोल्हान के तीनों जिले में जहां सरकारी अस्पतालों की कुल संख्या 73 है, वहीं निजी अस्पतालों की संख्या 279 है.
अनुमानित आंकड़े के मुताबिक, कोल्हान प्रमंडल के इन 352 अस्पतालों में कुल 6 हजार हैं, जिनमें से अनुमानित आंकड़े के मुताबिक, 250 ग्राम मेडिकल वेस्ट प्रति बेड निकलता है. ऐसे में कुल 2 टन मेडिकल वेस्ट प्रतिदिन कोल्हान प्रमंडल से निकल रहे हैं. वही आदित्यपुर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की ओर से अस्पतालों को 7 रुपए प्रति बेड के दर से चार्ज किया जाता है. इस मेडिकल वेस्ट को कंपनी विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद कंपनी में लगे अत्याधुनिक मशीनों के जरिए जलाकर नष्ट करने का काम करती है. कंपनी में मौजूद हाई टेक्नोलॉजी के इंसीनरेटर में 800 से भी अधिक डिग्री सेल्सियस तापमान पर इन बायो वेस्ट को जलाया जाता है, जिसके जलने के बाद जो राख बचता है उसे प्रोसेसिंग करने के बाद जमीन के अंदर परत दर परत हिसाब से बिछाया जाता है, ताकि जमीन की उर्वरता बरकरार रहे और संक्रमण पूरी तरह से नष्ट हो जाए.
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बायो वेस्ट सही तरीके से निष्पादित नहीं करने वालों के विरुद्ध ये हैं कार्रवाई के प्रावधान
अस्पतालों में इलाज के बाद निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट से बायो गैस समेत अन्य अपशिष्ट पदार्थ निकलने का खतरा बना रहता है. ऐसे में इन मेडिकल वेस्ट का निस्तारण और निष्पादन सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है. कोल्हान प्रमंडल में प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से सख्ती से बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण करवाए जाने का दावा किया गया है. परिषद के कोल्हान क्षेत्र के पदाधिकारी सुरेश पासवान ने बताया कि क्यूआर कोड प्राप्त कर अस्पताल समेत नर्सिंग होम को बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए वेस्ट प्लांट भेजा जाना है. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं करने वाले अस्पताल और निजी नर्सिंग होम के विरुद्ध एनवायरमेंटल कंपनसेशन एक्ट के तहत कार्रवाई और जुर्माने का भी प्रावधान तय है.
अस्पताल संचालकों को जागरूक होने की जरूरत
वैश्विक महामारी के इस काल और इससे पूर्व भी अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट का डिस्पोजल हमेशा एक चुनौती के रूप में बना रहता है. लेकिन अब कोल्हान क्षेत्र के अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट निस्तारण की प्रक्रिया काफी सरल हो रही है. ऐसे में जरूरत है अस्पताल संचालकों को जागरूक होने की. ताकि सही तरीके से मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल हो, जिससे मानव और प्रकृति दोनों संक्रमण से मुक्त रहे.