सरायकेला: 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से सन 1980 में विश्व पर्यटन दिवस के रूप में घोषित किया गया. उद्देश्य था विश्व पर्यटन की महत्वपूर्ण भूमिका को अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने का था. साथ ही साथ समुदाय के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक मूल्यों को वैश्विक स्तर पर लाया जाए, जिससे लोग पर्यटन को जान सकें. झारखंड में भी पर्यटन स्थलों की भरमार है. लेकिन देखरेख के अभाव में यह बदहाली का शिकार हो रहे हैं. कुछ यही हाल सीतारामपुर जलाशय का है.
झारखंड में भी कई नामचीन पर्यटन स्थल हैं, जो ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी जाने जाते हैं. वहीं झारखंड के विभिन्न जिलों में भी कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जो तंगहाली में अपने दुर्दशा बयां कर रहे हैं. ऐसा ही एक पर्यटन स्थल है, सरायकेला-खरसावां जिले का गम्हरिया प्रखंड अंतर्गत घनी आबादी के बीच स्थित सीतारामपुर जलाशय.
प्रकृति की मनोरम छटा लिए यह डैम अनायास लोगों को अपनी ओर वर्षों से आकर्षित करता आया है. शांत वातावरण और निर्मल जल के साथ लोगों को सुकून यहां मिलता है, लेकिन पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन की ठोस योजना ना होने से यह डैम एक बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो सका है.
जलाशय का नहीं हो पाया समुचित विकास
तकरीबन 50 वर्ष पूर्व तत्कालीन बिहार राज्य में जल संसाधन विभाग की ओर से इस डैम का निर्माण कराया गया था. डैम निर्माण का उद्देश्य था शहरी आबादी को पेयजल के लिए पानी उपलब्ध कराना. पेयजल एवं स्वच्छता विभाग यहां से 5 एमजीडी प्रतिदिन पाइप लाइन के माध्यम से शहरी क्षेत्र में जलापूर्ति करती है.
वर्षों पूर्व बनाया डैम धीरे-धीरे लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता गया और लोग प्रकृति के बीच सुकून के पल बिताने यहां आने लगे, जैसे-जैसे वक्त बीतता गया वैसे वैसे या डैम एक पर्यटन स्थल के रूप में भी जाना जाने लगा, वर्षों बीत जाने के बाद भी जिला प्रशासन या पर्यटन विभाग के ठोस योजना नहीं बनाए जाने के कारण डैम और इसके आसपास के क्षेत्रों का समुचित विकास नहीं हो पाया. नतीजतन संसाधन से भरा होने के बावजूद स्थल को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जा सका. इसके बावजूद प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में लोग यहां घूमने आया करते हैं.
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15 वर्ष पूर्व विकसित किया गया था
तकरीबन 15 वर्ष पूर्व जिला प्रशासन की ओर से सीतारामपुर जलाशय को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की कवायद शुरू हुई थी, जिसके तहत यहां पिकनिक स्पॉट, पार्क का भी निर्माण कराया गया. वहीं कुछ समय बाद यहां नौका विहार का भी परिचालन शुरू किया गया था, लेकिन बिना रख-रखाव और ठोस योजना के नौका विहार बंद हो गया और पिकनिक स्पॉट भी धीरे-धीरे बिना रख-रखाव जर्जर हो चला है.
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि, वर्षों पूर्व जिला प्रशासन की ओर से डैम को विकसित किए जाने की योजना तो बनाई गई थी, इस योजना पर समय बीतने के बाद ध्यान नहीं दिया गया. नतीजतन पर्यटन स्थल से संबंधित सभी योजनाएं एक के बाद एक धराशायी हो गई.
पूरे कोल्हान क्षेत्र से आते हैं पर्यटक
प्रतिवर्ष नया साल में हजारों की संख्या में कोल्हान प्रमंडल से बड़ी संख्या में लोग और पर्यटक यहां पिकनिक मनाने आते हैं. इसके अलावा साल भर डैम के पिकनिक स्पॉट पर सार्वजनिक आयोजन होते रहते हैं, लेकिन डैम और आसपास के क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया है. हालांकि, कोरोना काल में अब सामूहिक या सार्वजनिक आयोजन नहीं होते, लेकिन फिर भी अब जब सरकार की ओर से पर्यटन स्थल खोले जाने संबंधित निर्णय लिए गए हैं, तो लोग यहां दूरदराज से खासकर बरसात के मौसम में घूमने आ रहे हैं.
स्थानीय लोगों को मिलता रोजगार
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि वर्षों पूर्व सरकार और जिला प्रशासन ने जो योजना बनाई थी, वह महज कुछ ही दिनों में विफल साबित हुई. स्थानीय बताते हैं कि यदि यह स्थल एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो जाए, तो आसपास के युवाओं को यहां रोजगार भी प्राप्त हो सकेगा. आसपास गांव में रहने वाले युवाओं की एक बड़ी संख्या रोजगार के लिए उद्योग धंधों पर आश्रित है. ऐसे में यदि उन्हें अपने घर के आस-पास ही रोजगार मिल जाए, तो इससे बेहतर क्या होगा.
पर्यटन स्थल की समीक्षा कर श्रेणी में बांटे जाएंगे
दूसरी ओर राज्य में पर्यटन विभाग की ओर से राज्य के सभी पर्यटन स्थलों की समीक्षा कर उचित श्रेणी में बांटे जाने का कार्य किया जा रहा है. इसके तहत पर्यटन स्थलों को A,B,C, और D श्रेणी में रखा जाएगा. इस श्रेणी के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व वाले पर्यटन स्थल को A श्रेणी, राष्ट्रीय महत्व वाले पर्यटन स्थल को B श्रेणी, राजकीय महत्व वाले पर्यटन स्थल को C और स्थानीय महत्व रखने वाले पर्यटन स्थल को D श्रेणी में रखा जाएगा.
सीतारामपुर जलाशय पर्यटन स्थल विकसित किए जाने के मुद्दे पर जिले के उपायुक्त इकबाल आलम अंसारी ने बताया है कि स्थानीय श्रेणी के इस पर्यटन स्थल को प्रशासन की ओर से अधिसूचित किया जाएगा, जिसके बाद पर्यटन स्थल के विकास संबंधित योजनाएं बनाकर संबंधित विभाग के पास भेजा जाएगा, वहीं विभाग की ओर से प्राप्त आवंटन राशि के बाद इन स्थलों का विकास किया जाएगा.