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दुमका और बेरमो में किसकी होगी जीत! रिजल्ट पर टिकी कई नेताओं की साख, देखें समीक्षात्मक रिपोर्ट - jharkhand by election 2020

दुमका और बेरमो का चुनाव कई मायनों में अहम रहा. दुमका और बेरमो की जनता प्रत्याशियों की किस्मत तय कर चुकी है. अब सिर्फ आधिकारिक घोषणा का इंतजार है. इसे समझने के लिए हमारे ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह ने झारखंड की राजनीति को बारीकी से समझने वाले पत्रकार आनंद मोहन से बात की.

Who will win in Dumka and Bermo
Who will win in Dumka and Bermo
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Published : Nov 3, 2020, 9:25 PM IST

Updated : Nov 3, 2020, 10:29 PM IST

रांची: दुमका और बेरमो का चुनाव कई मायनों में अहम रहा. दुमका और बेरमो की जनता प्रत्याशियों की किस्मत तय कर चुकी है. अब सिर्फ आधिकारिक घोषणा का इंतजार है जो 10 नवंबर को सामने आ जाएगा, लेकिन यह उपचुनाव सिर्फ प्रत्याशियों की हार-जीत तक ही सीमित नहीं रहने वाला है. इसका असर दूर तक होगा. कोविड-19 संक्रमण के खतरे के बीच वोट प्रतिशत में हुआ इजाफा भी इस ओर इशारा कर रहा है. दोनों सीटों का परिणाम यहां की राजनीति को किस तरह प्रभावित करेगा. इसे समझने के लिए हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने झारखंड की राजनीति को बारीकी से समझने वाले पत्रकार आनंद मोहन से बात की.

ब्यूरो चीफ राजेश सिंह के साथ वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन

आनंद मोहन कहा कि मसला सिर्फ यह नहीं है कि दुमका में बसंत सोरेन जीतेंगे या लुईस मरांडी. बेरमो में कुमार जय मंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह जीतेंगे या योगेश्वर महतो बाटुल. यह समझना जरूरी है कि किस गठबंधन की एकजुटता में दम था. अगर एकजुटता थी, तो फिर भीतरघात कैसे हुआ.

कई नेताओं की राजनीतिक किस्मत होगी तय

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की साख दांव पर लगी है. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी, गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले रघुवर दास, गैर आदिवासी के रूप में प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे दीपक प्रकाश का कभी टेस्ट होना है. यहीं वजह रही कि चुनाव प्रचार के दौरान वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक मर्यादा की सीमा भी लांघी गई. पैसे देते किसी का वीडियो वायरल हुआ. किसी नेता पर राजद्रोह की धारा लगा दी गई. उपचुनाव को विकास बनाम परिवारवाद से जोड़ा गया. अनुभव और अनुभवहीन की बातें हुई. दुमका में जमकर संथाली भाषा बोली गई. गौर करने वाली बात यह रही कि दोनों प्रमुख गठबंधन दलों का कोई भी नेता दिल्ली से नहीं आया, यानी जो कुछ हुआ स्थानीय स्तर के नेताओं के भरोसे हुआ.

हार-जीत के बाद का समीकरण

अगर भाजपा दोनों सीट जीतती है, तो बाबूलाल मरांडी को मिलाकर उसके विधायकों की कुल संख्या 28 हो जाएगी. एक सीट पर जीत के साथ झामुमो के विधायकों की संख्या 29 हो जाएगी. क्योंकि हाजी हुसैन अंसारी के निधन के बाद झामुमो की मधुपुर सीट खाली हो चुकी है. बेरमो में कांग्रेस की जीत होती है, तो उसके विधायकों की संख्या फिर से 16 हो जाएगी. बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को जोड़ने पर कांग्रेस के पास 18 विधायक हो जाएंगे, यानी दोनों सीटों का परिणाम सत्ता पक्ष के पाले में जाता है, तो राजद के 1 सीट को मिलाकर महागठबंधन के पास 46 विधायक हो जाएंगे.

वर्तमान में विधानसभा की दलगत स्थिति

झामुमो - 28

कांग्रेस - 15 (बंधु, प्रदीप यादव को मिलाकर 17)

राजद - 01

भाजपा - 25 (बाबूलाल को जोड़कर 26)

आजसू -02

माले - 01

एनसीपी - 01

निर्दलीय-02

रांची: दुमका और बेरमो का चुनाव कई मायनों में अहम रहा. दुमका और बेरमो की जनता प्रत्याशियों की किस्मत तय कर चुकी है. अब सिर्फ आधिकारिक घोषणा का इंतजार है जो 10 नवंबर को सामने आ जाएगा, लेकिन यह उपचुनाव सिर्फ प्रत्याशियों की हार-जीत तक ही सीमित नहीं रहने वाला है. इसका असर दूर तक होगा. कोविड-19 संक्रमण के खतरे के बीच वोट प्रतिशत में हुआ इजाफा भी इस ओर इशारा कर रहा है. दोनों सीटों का परिणाम यहां की राजनीति को किस तरह प्रभावित करेगा. इसे समझने के लिए हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने झारखंड की राजनीति को बारीकी से समझने वाले पत्रकार आनंद मोहन से बात की.

ब्यूरो चीफ राजेश सिंह के साथ वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन

आनंद मोहन कहा कि मसला सिर्फ यह नहीं है कि दुमका में बसंत सोरेन जीतेंगे या लुईस मरांडी. बेरमो में कुमार जय मंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह जीतेंगे या योगेश्वर महतो बाटुल. यह समझना जरूरी है कि किस गठबंधन की एकजुटता में दम था. अगर एकजुटता थी, तो फिर भीतरघात कैसे हुआ.

कई नेताओं की राजनीतिक किस्मत होगी तय

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की साख दांव पर लगी है. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी, गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले रघुवर दास, गैर आदिवासी के रूप में प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे दीपक प्रकाश का कभी टेस्ट होना है. यहीं वजह रही कि चुनाव प्रचार के दौरान वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक मर्यादा की सीमा भी लांघी गई. पैसे देते किसी का वीडियो वायरल हुआ. किसी नेता पर राजद्रोह की धारा लगा दी गई. उपचुनाव को विकास बनाम परिवारवाद से जोड़ा गया. अनुभव और अनुभवहीन की बातें हुई. दुमका में जमकर संथाली भाषा बोली गई. गौर करने वाली बात यह रही कि दोनों प्रमुख गठबंधन दलों का कोई भी नेता दिल्ली से नहीं आया, यानी जो कुछ हुआ स्थानीय स्तर के नेताओं के भरोसे हुआ.

हार-जीत के बाद का समीकरण

अगर भाजपा दोनों सीट जीतती है, तो बाबूलाल मरांडी को मिलाकर उसके विधायकों की कुल संख्या 28 हो जाएगी. एक सीट पर जीत के साथ झामुमो के विधायकों की संख्या 29 हो जाएगी. क्योंकि हाजी हुसैन अंसारी के निधन के बाद झामुमो की मधुपुर सीट खाली हो चुकी है. बेरमो में कांग्रेस की जीत होती है, तो उसके विधायकों की संख्या फिर से 16 हो जाएगी. बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को जोड़ने पर कांग्रेस के पास 18 विधायक हो जाएंगे, यानी दोनों सीटों का परिणाम सत्ता पक्ष के पाले में जाता है, तो राजद के 1 सीट को मिलाकर महागठबंधन के पास 46 विधायक हो जाएंगे.

वर्तमान में विधानसभा की दलगत स्थिति

झामुमो - 28

कांग्रेस - 15 (बंधु, प्रदीप यादव को मिलाकर 17)

राजद - 01

भाजपा - 25 (बाबूलाल को जोड़कर 26)

आजसू -02

माले - 01

एनसीपी - 01

निर्दलीय-02

Last Updated : Nov 3, 2020, 10:29 PM IST
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