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मांडर में प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद, हार-जीत के समीकरण पर चर्चा शुरू - jharkhand news

मांडर उपचुनाव के लिए मतदान संपन्न हो चुका है. वोटिंग के बाद भी प्रत्याशी जीत के दावे करते दिखे. अब सबको 26 जून का इंतजार, जब वोटों की गिनती होगी.

Voting concluded for Mandar by-election
Voting concluded for Mandar by-election
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Published : Jun 23, 2022, 6:43 PM IST

रांची: मांडर उपचुनाव के लिए वोटिंग का काम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया. अब 26 जून का इंतजार है, जब ईवीएम से नतीजे निकलेंगे. लेकिन चुनाव संपन्न होते ही हार-जीत को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है. सभी के जेहन में एक ही सवाल है कि जीत किसकी होगी. इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से आंकलन करने लगे हैं. इस चुनाव में कुल 14 प्रत्याशी हैं. लेकिन चर्चा सिर्फ तीन प्रत्याशियों की हो रही है. सबसे ज्यादा चर्चा में हैं निर्दलीय विधायक देवकुमार धान. क्योंकि भाजपा की गंगोत्री कुजूर और कांग्रेस की नेहा शिल्पी तिर्की के बीच की लड़ाई को उन्होंने ओवैसी के टैग के साथ रोचक बना दिया था. अब सभी इस फॉर्मूले को डी-कोड कर रहे हैं कि क्या धान के पक्ष में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी थी. क्योंकि इसी सवाल के जवाब में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी की हार और जीत छीपी हुई है. दरअसल, मांडर में 3.54 लाख वोटर हैं. इनमें सबसे ज्यादा करीब पौने दो लाख वोटर सरना समाज से जुड़े हुए हैं. इसके बाद 70 से 75 हजार के करीब हिन्दू मूलवासी, तीसरे नंबर पर 65 से 70 हजार के करीब मुस्लिम और 25 से 30 हजार के करीब ईसाई वोटर हैं.

ये भी पढ़ें- VIDEO: मांडर उपचुनाव 2022 में बनाए गए हैं 38 पर्दानशीं बूथ, जानिए क्या रहा वहां का हाल

दिनभर चुनाव के दौरान ईटीवी भारत की टीम ने अलग-अलग पॉकेट में वोटरों के मिजाज को टटोलने की कोशिश की. इस क्रम में रांची हिंसा, सहानुभूति और विकास पर आधारित तीन फैक्टर नजर आए. इसके अलावा बंधु तिर्की की लोगों के बीच पकड़, गंगोत्री कुजूर की सादगी और देवकुमार धान के बगावत का तरीका भी चर्चा के केंद्र में रहा. मुस्लिम बहुल चान्हो में कांग्रेस के प्रति नाराजगी दिखी. लोगों का कहना था कि अगर बंधु तिर्की ने अपनी बेटी को बतौर निर्दलीय उतारा होता तो उनको पूरा साथ मिलता. हालाकि मांडर, बेड़ो, लापुंग और इटकी में इस ग्रुप का मिजाज कुछ और ही था. एक अनुमान के मुताबिक मुस्लिम वोट बंटा है लेकिन इसका प्रतिशत 25 से 30 के करीब अनुमानित है. सरना वोट भी कांग्रेस प्रत्याशी और भाजपा प्रत्याशी के बीच बंटा है. इस वोट बैंक में बेड़ो में भाजपा तो मांडर में कांग्रेस की सेंधमारी का अनुमान है. भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में भरपूर सदान वोट मिलने का अनुमान है. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में ईसाईयों का वोट गया है.

ये भी पढ़ें- Mandar Assembly By-election: रांची डीसी-एसएसपी ने किया बूथों का निरीक्षण

आपको बता दें कि 2019 के चुनाव में जेवीएम की टिकट पर चुनाव लड़ने के बावजूद बंधु तिर्की को 92 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. उनका मुकाबला इस बार के बागी रहे भाजपा के देवकुमार धान से था. उन्हें 69 हजार वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर 23 हजार वोट के साथ ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार शिशिर लकड़ा थे. जबकि कांग्रेस के सनी टोप्पो महज 8 हजार 800 वोट के साथ पांचवें नंबर पर थे. लेकिन इस बार का चुनावी गणित बिल्कुल अलग है. देवकुमार धान बागी बनकर मैदान में हैं तो 2014 में पहली बार मांडर में कमल खिलाना वाली गंगोत्री कुजूर पर भाजपा ने विश्वास जताया है. लेकिन सबकी नजर बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की पर टिकी है. आय से अधिक संपत्ति मामले में पिता की विधायकी जाने के बाद उनके कंधों पर विरासत को बचाए रखने की जिम्मेदारी है. बहरहाल, हार और जीत का फैसला तो 26 जून को हो जाएगा लेकिन कांग्रेस और भाजपा के नेता अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. वहीं देवकुमार धान फरारी में हैं.

आपको बता दें कि 2014 के चुनाव में विजयी रही भाजपा की गंगोत्री कुजूर को 64 हजार, दूसरे स्थान पर रहे बंधु तिर्की को 46 हजार और निर्दलीय रहे देवकुमार धान को करीब 39 हजार वोट मिले थे.

रांची: मांडर उपचुनाव के लिए वोटिंग का काम शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गया. अब 26 जून का इंतजार है, जब ईवीएम से नतीजे निकलेंगे. लेकिन चुनाव संपन्न होते ही हार-जीत को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है. सभी के जेहन में एक ही सवाल है कि जीत किसकी होगी. इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से आंकलन करने लगे हैं. इस चुनाव में कुल 14 प्रत्याशी हैं. लेकिन चर्चा सिर्फ तीन प्रत्याशियों की हो रही है. सबसे ज्यादा चर्चा में हैं निर्दलीय विधायक देवकुमार धान. क्योंकि भाजपा की गंगोत्री कुजूर और कांग्रेस की नेहा शिल्पी तिर्की के बीच की लड़ाई को उन्होंने ओवैसी के टैग के साथ रोचक बना दिया था. अब सभी इस फॉर्मूले को डी-कोड कर रहे हैं कि क्या धान के पक्ष में अल्पसंख्यकों की गोलबंदी थी. क्योंकि इसी सवाल के जवाब में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी की हार और जीत छीपी हुई है. दरअसल, मांडर में 3.54 लाख वोटर हैं. इनमें सबसे ज्यादा करीब पौने दो लाख वोटर सरना समाज से जुड़े हुए हैं. इसके बाद 70 से 75 हजार के करीब हिन्दू मूलवासी, तीसरे नंबर पर 65 से 70 हजार के करीब मुस्लिम और 25 से 30 हजार के करीब ईसाई वोटर हैं.

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दिनभर चुनाव के दौरान ईटीवी भारत की टीम ने अलग-अलग पॉकेट में वोटरों के मिजाज को टटोलने की कोशिश की. इस क्रम में रांची हिंसा, सहानुभूति और विकास पर आधारित तीन फैक्टर नजर आए. इसके अलावा बंधु तिर्की की लोगों के बीच पकड़, गंगोत्री कुजूर की सादगी और देवकुमार धान के बगावत का तरीका भी चर्चा के केंद्र में रहा. मुस्लिम बहुल चान्हो में कांग्रेस के प्रति नाराजगी दिखी. लोगों का कहना था कि अगर बंधु तिर्की ने अपनी बेटी को बतौर निर्दलीय उतारा होता तो उनको पूरा साथ मिलता. हालाकि मांडर, बेड़ो, लापुंग और इटकी में इस ग्रुप का मिजाज कुछ और ही था. एक अनुमान के मुताबिक मुस्लिम वोट बंटा है लेकिन इसका प्रतिशत 25 से 30 के करीब अनुमानित है. सरना वोट भी कांग्रेस प्रत्याशी और भाजपा प्रत्याशी के बीच बंटा है. इस वोट बैंक में बेड़ो में भाजपा तो मांडर में कांग्रेस की सेंधमारी का अनुमान है. भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में भरपूर सदान वोट मिलने का अनुमान है. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में ईसाईयों का वोट गया है.

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आपको बता दें कि 2019 के चुनाव में जेवीएम की टिकट पर चुनाव लड़ने के बावजूद बंधु तिर्की को 92 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. उनका मुकाबला इस बार के बागी रहे भाजपा के देवकुमार धान से था. उन्हें 69 हजार वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर 23 हजार वोट के साथ ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार शिशिर लकड़ा थे. जबकि कांग्रेस के सनी टोप्पो महज 8 हजार 800 वोट के साथ पांचवें नंबर पर थे. लेकिन इस बार का चुनावी गणित बिल्कुल अलग है. देवकुमार धान बागी बनकर मैदान में हैं तो 2014 में पहली बार मांडर में कमल खिलाना वाली गंगोत्री कुजूर पर भाजपा ने विश्वास जताया है. लेकिन सबकी नजर बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की पर टिकी है. आय से अधिक संपत्ति मामले में पिता की विधायकी जाने के बाद उनके कंधों पर विरासत को बचाए रखने की जिम्मेदारी है. बहरहाल, हार और जीत का फैसला तो 26 जून को हो जाएगा लेकिन कांग्रेस और भाजपा के नेता अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. वहीं देवकुमार धान फरारी में हैं.

आपको बता दें कि 2014 के चुनाव में विजयी रही भाजपा की गंगोत्री कुजूर को 64 हजार, दूसरे स्थान पर रहे बंधु तिर्की को 46 हजार और निर्दलीय रहे देवकुमार धान को करीब 39 हजार वोट मिले थे.

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