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जुर्माने से नहीं लगा हादसों पर लगाम, जुर्मानों के अनुपात में नहीं घटीं दुर्घटनाएं

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Published : Feb 22, 2021, 6:26 PM IST

Updated : Feb 23, 2021, 10:36 PM IST

नए ट्रैफिक नियम लागू होने के बाद जुर्माने में भारी इजाफा हुआ है. इसके बाद भी लोग ट्रैफिक नियमों की अनदेखी कर रहे हैं. नतीजतन जुर्माने से राजस्व बढ़ा है पर हादसों पर लगाम नहीं लग पाई है. इधर जुर्माने के अनुपात में दुर्घटनाएं नहीं कम हुई हैं.

Traffic rules are being broken
Traffic rules are being broken

रांची: झारखंड की राजधानी रांची सहित पूरे प्रदेश में रोजाना कहीं न कहीं हादसे होते हैं और इसमें लोगों की जान जाती है, जबकि कुछ घायल होते हैं. इनमें से कई तो जीवन भर के लिए विकलांग हो जाते हैं. इनमें से अधिकांश हादसों की वजह यातायात नियमों का उल्लंघन बनती है. इन सबके बावजूद समाज का एक बड़ा तबका ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करता है. भले ही उन्हें नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना ही क्यों ना देना पड़े. ऐसे में सवाल है कि क्या सिर्फ जुर्माना वसूलने से ही सड़क पर होने वाले हादसे थम जाएंगे.

देखें स्पेशल खबर
लॉक डाउन के दौरान वसूला गया करोड़ों का जुर्माना
लॉक डाउन के दौरान झारखंड सरकार का एक विभाग ऐसा था, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व मिला. ये विभाग था परिवहन. लोगों के ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करने और कोरोना काल में नियमों पर ध्यान देने से बड़ी संख्या में लोगों से जुर्माना वसूला गया. लॉक डाउन के दौरान केवल राजधानी रांची से ही इस विभाग को 6 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व मिला.

ये भी पढ़ें-राजधानी को पेंटिंग के जरिए नया रंग दे रहा दिव्यांग आर्टिस्ट, सरकारी मदद की दरकार

लोगों का जागरूक होना जरूरी

राजधानी रांची में हर दिन ट्रैफिक पुलिस का अभियान चलता है, पुलिस चौक चौराहों पर बगैर हेलमेट, बगैर सीट बेल्ट और बगैर जरूरी कागजातों के वाहन चलाने वाले चालकों का चालान करती है. हर रोज ट्रैफिक पुलिस लाखों की वसूली करती है लेकिन ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन लगातार होता रहता है. ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की वजह से सड़क हादसे भी होते हैं. इन हाथों में लोगों की जान जाती है या फिर वह हमेशा के लिए विकलांग हो जाते हैं. रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र कुमार झा के अनुसार ऐसा नहीं है कि केवल फाइन काटने से ही सड़क हादसों पर लगाम लग जाएगा, जब तक लोग अपनी सुरक्षा को लेकर खुद जागरूक नहीं होंगे हादसे कम नहीं होंगे.

बढ़ गया राजस्व
ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले 2,16,099 वाहन चालकों का वर्ष 2019 के जनवरी से दिसंबर माह तक चालान काटा गया, जिसमे करीब 8, 06,78, 308 रुपये की वसूली की गई लेकिन लाकडाउन के दौरान चार माह में ही 2.5 करोड़ से ज्यादा की वसूली की गई थी. 2019 के अक्टूबर में माह में 89,19,990 रुपये जबकि नवंबर में 61,58,150 रुपये फाइन वसूला गया. वहीं जनवरी 2021 से लेकर अब तक 5 करोड़ रुपये वसूला गया.

हजार की संख्या में किए गए डीएल सस्पेंड

नए ट्रैफिक नियम के लागू होने के बाद नियम तोड़ने वालों के खिलाफ रांची जिला में खूब कड़ाई हुई. वर्ष 2018 में जहां महज 74 ड्राइविंग लाइसेंस सस्पेंड किए गए थे. वहीं वर्ष 2019 में यह संख्या 1942 पहुंच गई, जबकि,साल 2020 में 1295 चालकों के डीएल सस्पेंड किए गए. अगस्त 2019 तक 108 लाइसेंस ही सस्पेंड हुए थे , लेकिन सितंबर में नए नियम के आने के बाद इसकी संख्या एक महीने में ही 246 हो गई. वर्ष 2019 में सबसे ज्यादा नवंबर महीने में 1217 लाइसेंस सस्पेंड किए गए. साल 2021 में अब 1000 डीएल निलंबित किए गए हैं.



वर्ष 2020 से अब तक 2000 लोगों ने गंवाई जान
झारखंड में साल 2019 में 5217 सड़क हादसे हुए. इनमें 3801 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. वहीं 3818 लोग इन हादसों में जख्मी हुए. झारखंड में 2018 में 5399 घटनाएं हुईं थीं. वहीं 2020 से लेकर अब तक 2000 लोगों की जान सड़क हादसे में गई है.

हेलमेट और सीट बेल्ट न होने से गईं अधिकतर जान
साल 2019 से लेकर 2021 के फरवरी महीने के आकड़ों की बात करें तो सड़क हादसों में अधिकतर लोगों की जान जाने की वजह हेलमेट न पहनना और सीट बेल्ट न बांधना बना. बगैर हेलमेट वाहन चला रहे 800 बाइक सवारों की हादसों में जान गई. वहीं बाइक पर पीछे बैठे 396 लोगों को भी अपनी जान इसी वजह से गंवानी पड़ी. बगैर हेलमेट बाइक चलाने के कारण हादसों में 412 लोग गंभीर जबकि 88 लोग मामूली रूप से जख्मी हुए. वहीं कार में बगैर सीट बेल्ट बांधे ड्राइविंग के कारण 318 चार पहिया वाहन चालकों ने जान गंवाई, वहीं 145 पैसेंजर को भी इन वजहों से जान गंवानी पड़ी. सड़क हादसों के वक्त 1428 वाहन चालकों के पास वैलिड लाइसेंस था, जबकि 501 लर्निंग लाइसेंसधारी व 534 बगैर लाइसेंस ड्राइविंग करने वाले लोग सड़क हादसे के शिकार हुए. सड़क हादसों में 198 नाबालिग मारे गए, वहीं 18 से 25 की उम्र के 357 युवक व 16 लड़कियां भी दुर्घटना में मारी गईं.

पैदल चलने वाले 386 लोग भी मारे गए
सड़क हादसे में पैदल चलने वाले 386 लोग भी मारे गए हैं. इस अवधि में 2081 घटनाएं नेशनल हाईवे पर, जबकि 1458 स्टेट हाईवे पर हुई हैं. नेशनल हाईवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड 18 वें स्थान पर वहीं स्टेट हाईवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड देश में 14 वें स्थान पर है. हादसों की 3414 घटनाओं में किसी न किसी की मौत हुई है, जबकि 1481 घटनाओं में लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए. 215 घटनाओं में लोगों को मामूली चोट आई है.

चौक चौराहे पर होती है चेकिंग, फिर भी हो रहे हादसे
राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में चौक चौराहों पर पुलिस दिनभर चालान काटने में व्यस्त रहती है ,इसके बावजूद हादसे हो रहे हैं. आज की तारीख में इन हादसों को रोकना किसी चुनौती से कम नहीं है. सड़क सुरक्षा के लिए लगातार अभियान चलाने वाली संस्था राइज अप के फाउंडर ऋषभ आनंद के अनुसार इन सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों में 70 प्रतिशत लोग 15 से 44 साल की उम्र के होते हैं. हकीकत में ये है कि दुर्घटनाएं बिगड़ती परिवहन व्यवस्था एवं सुरक्षा की तस्वीर पेश करती हैं. इसके साथ ही तेज गति, शराब पीकर गाड़ी चलाना व हेलमेट और सीट बेल्ट की अनदेखी इन दुर्घटनाओं के लिए बड़े जिम्मेदार हैं. हालांकि खराब सड़कें, कम रखरखाव वाले वाहन, निम्न दर्जे की सड़क डिजाइन और खराब बनावट भी ऐसे कारण हैं जो इन दुर्घटनाओं को बढ़ावा देते हैं. मतलब साफ है कि केवल जुर्माना वसूलने से ही हादसे कम नहीं हो सकते हैं इसके लिए जरूरी है कि सड़क सेफ्टी से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं को भी बहाल किया जाए.

पुलिस की नाक के नीचे टूटते हैं नियम

नियमों की बात करें तो जनता तो लापरवाह है ही, लेकिन नियमों का पालन करवाने के लिए पुलिस कितना दायित्व निभाती है, इस पर सवाल हैं. ऑटो में चार सीट पर बारह सवारी ढोई जाती है. दर्जनों लोग ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हैं लेकिन सिर्फ दो-चार ही पकड़े जाते हैं. कहा जाए तो ट्रैफिक पुलिस का पूरा ध्यान वसूली पर ही होता है. आखिर क्यों इस सब पर नियंत्रण नहीं हो पाता, यातायात माह पर हादसों से कैसे निपटा जाए, इस पर विचार करने की आवश्यकता है.

वाहनों की बढ़ती संख्या भी है कारण
इन सब से इतर एक्सीडेंट्स की एक बड़ी वजह सड़क पर वाहनों की बढ़ती संख्या भी है. हम सबको चाहिए कि दुर्घटना के जितने कारणों को हम टाल सकते हैं, कम से कम उन्हें तो टालें ही. विशेषज्ञों का कहना है कि हादसों की जो वजहें चालक निर्भर हैं, उन्हें तो कंट्रोल तो किया ही जा सकता है, जैसे हेलमेट, फास्ट स्पीड व सीटबेल्ट आदि के नियमों का पालन कराकर इसमें कमी लाई जा सकती है. वहीं प्रश्न उठता है कि क्या सड़क की खराब हालत की जिम्मेदारी भी चालक की बनती है. इस पर तो सरकार और सम्बंधित विभाग को ही नजरसानी करनी होगी.

खराब ट्रैफिक सिग्नल की वजह से भी कट रहा चालान

रांची में 40 स्थानों पर नए ट्रैफिक सिग्नल लगाए गए हैं. कुछ स्थानों के सिग्नल शुरू कर दिए गए हैं लेकिन आम लोगों के लिए ये सिग्नल मुसीबत बन गए हैं. दरअसल, इन सिग्नल्स में तकनीकी खराबी है, इसका खमियाजा पब्लिक को भुगतना पड़ रहा है. राइज अप संस्था के फाउंडर ऋषभ आनंद का कहना है कि रेड और ग्रीन सिग्नल काफी जल्दी-जल्दी बदल रहे हैं. ऐसे में ड्राइविंग करने में भी मुसीबत हो रही है. ट्रैफिक सिग्नल रेड रहने पर गाड़ियां रूकी रहती हैं और ग्रीन होने पर जाने का सिग्नल मिल जाता है. इधर कई सिग्नल पर लाइट ग्रीन होने के बाद तुरंत ही रेड हो जाती है. इससे दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा लोगों को फाइन कटने का भी डर सताता रहता है. सभी चौराहों पर चालान के लिए ऑटोमैटिक सिस्टम कर दिया गया है. रेड सिग्नल के दौरान जेब्रा क्रॉसिंग पार करते ही ऑनलाइन चालान अपने आप कट जाता है. इसकी कॉपी आपके पते पर पहुंच जाती है. ऐसे में गलती नहीं करने वालों को भी चालान कटने का डर सताता रहता है. वहीं राजधानी रांची में अभी तक लेफ्ट साइड का निर्धारण नहीं हो पाया है. इससे भी लोगों का चालान कट रहा है. रांची के सीनियर एसपी के अनुसार यह सच है कि राजधानी में अभी तक सड़कों पर मूलभूत सुविधाएं स्थापित नहीं हो पाई हैं, जिनकी वजह से भी हादसे हो रहे हैं.

राज्य भर में 93 ब्लैक स्पॉट
विभाग द्वारा तैयार कराए गए आंकड़ों के मुताबिक पूरे राज्य में 93 ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं. इनमें 22 ब्लैक स्पॉट रांची में हैं, जिनमें 19 शहर में ही हैं. ये ब्लैक स्पॉट कहीं-कहीं तीखे मोड़ के रूप में हैं, कहीं घाटी तो कहीं डायवर्जन के नाम से हैं. रांची के सिरमटोली चौक के आसपास, कांटाटोली चौक के पास, करमटोली चौक के पास, रातू रोड सहित कई जगहों पर जानलेवा गड्ढे हैं. रांची के ब्लैक स्पॉट पर पिछले दो साल में 256 सड़क हादसों में 153 की मौत अबतक हो चुकी है. पिछले वर्ष 2019 में 735 सड़क हादसों में 350 लोगों की मौत हुई जबकि वर्ष 2018 में कुल 538 सड़क हादसों में 363 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी, 328 घायल भी हुए.

कई जिलों के एसपी ने गृह विभाग को भेजी है रिपोर्ट

गृहविभाग के निर्देश के बाद कई जिलों के एसपी ने अपने इलाके के ब्लैक स्पॉट की पहचान कर रिपोर्ट भेजी है. गृह सचिव एसकेजी रहाटे ने इस संबंध में सभी जिलों के एसएसपी और एसपी को पत्र भेजे थे. इसमें रांची के अलावा सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां, लोहरदगा, देवघर, गिरिडीह, रामगढ़, जामताड़ा, साहिबगंज, कोडरमा, चतरा, गोड्डा, खूंटी, दुमका, गुमला, बोकारो तथा हजारीबाग शामिल थे. इस आदेश के बाद सभी जिलों से रिपोर्ट सौंप दी गई है.


जागरुकता के नाम पर खानापूर्ति
राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में ट्रैफिक पुलिस के जरिये सरकार को करोड़ों का राजस्व प्राप्त हो रहा है लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल ट्रैफिक नियमों की जागरूकता के लिए न के बराबर होता है. वही शहर के खराब सिग्नल और सड़कें भी हादसों के लिए बड़ी जिम्मेदार हैं. वर्तमान में ट्रैफिक जागरूकता एवं सुरक्षा सप्ताह चल रहा है लेकिन इसके नाम पर शहर में केवल खानापूर्ति की जा रही है.


ट्रैफिक जागरुकता बेहद जरूरी

रांची के सिटी एसपी सौरभ के अनुसार आम लोगों को यह समझना होगा कि हेलमेट सीट बेल्ट सहित दूसरे सुरक्षा के बंदोबस्त उनकी सुरक्षा के लिए है न कि पुलिस के लिए. ऐसे में जरूरी है कि लोग जागरूक हों.

रांची: झारखंड की राजधानी रांची सहित पूरे प्रदेश में रोजाना कहीं न कहीं हादसे होते हैं और इसमें लोगों की जान जाती है, जबकि कुछ घायल होते हैं. इनमें से कई तो जीवन भर के लिए विकलांग हो जाते हैं. इनमें से अधिकांश हादसों की वजह यातायात नियमों का उल्लंघन बनती है. इन सबके बावजूद समाज का एक बड़ा तबका ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करता है. भले ही उन्हें नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना ही क्यों ना देना पड़े. ऐसे में सवाल है कि क्या सिर्फ जुर्माना वसूलने से ही सड़क पर होने वाले हादसे थम जाएंगे.

देखें स्पेशल खबर
लॉक डाउन के दौरान वसूला गया करोड़ों का जुर्मानालॉक डाउन के दौरान झारखंड सरकार का एक विभाग ऐसा था, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व मिला. ये विभाग था परिवहन. लोगों के ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करने और कोरोना काल में नियमों पर ध्यान देने से बड़ी संख्या में लोगों से जुर्माना वसूला गया. लॉक डाउन के दौरान केवल राजधानी रांची से ही इस विभाग को 6 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व मिला.

ये भी पढ़ें-राजधानी को पेंटिंग के जरिए नया रंग दे रहा दिव्यांग आर्टिस्ट, सरकारी मदद की दरकार

लोगों का जागरूक होना जरूरी

राजधानी रांची में हर दिन ट्रैफिक पुलिस का अभियान चलता है, पुलिस चौक चौराहों पर बगैर हेलमेट, बगैर सीट बेल्ट और बगैर जरूरी कागजातों के वाहन चलाने वाले चालकों का चालान करती है. हर रोज ट्रैफिक पुलिस लाखों की वसूली करती है लेकिन ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन लगातार होता रहता है. ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की वजह से सड़क हादसे भी होते हैं. इन हाथों में लोगों की जान जाती है या फिर वह हमेशा के लिए विकलांग हो जाते हैं. रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र कुमार झा के अनुसार ऐसा नहीं है कि केवल फाइन काटने से ही सड़क हादसों पर लगाम लग जाएगा, जब तक लोग अपनी सुरक्षा को लेकर खुद जागरूक नहीं होंगे हादसे कम नहीं होंगे.

बढ़ गया राजस्व
ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले 2,16,099 वाहन चालकों का वर्ष 2019 के जनवरी से दिसंबर माह तक चालान काटा गया, जिसमे करीब 8, 06,78, 308 रुपये की वसूली की गई लेकिन लाकडाउन के दौरान चार माह में ही 2.5 करोड़ से ज्यादा की वसूली की गई थी. 2019 के अक्टूबर में माह में 89,19,990 रुपये जबकि नवंबर में 61,58,150 रुपये फाइन वसूला गया. वहीं जनवरी 2021 से लेकर अब तक 5 करोड़ रुपये वसूला गया.

हजार की संख्या में किए गए डीएल सस्पेंड

नए ट्रैफिक नियम के लागू होने के बाद नियम तोड़ने वालों के खिलाफ रांची जिला में खूब कड़ाई हुई. वर्ष 2018 में जहां महज 74 ड्राइविंग लाइसेंस सस्पेंड किए गए थे. वहीं वर्ष 2019 में यह संख्या 1942 पहुंच गई, जबकि,साल 2020 में 1295 चालकों के डीएल सस्पेंड किए गए. अगस्त 2019 तक 108 लाइसेंस ही सस्पेंड हुए थे , लेकिन सितंबर में नए नियम के आने के बाद इसकी संख्या एक महीने में ही 246 हो गई. वर्ष 2019 में सबसे ज्यादा नवंबर महीने में 1217 लाइसेंस सस्पेंड किए गए. साल 2021 में अब 1000 डीएल निलंबित किए गए हैं.



वर्ष 2020 से अब तक 2000 लोगों ने गंवाई जान
झारखंड में साल 2019 में 5217 सड़क हादसे हुए. इनमें 3801 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. वहीं 3818 लोग इन हादसों में जख्मी हुए. झारखंड में 2018 में 5399 घटनाएं हुईं थीं. वहीं 2020 से लेकर अब तक 2000 लोगों की जान सड़क हादसे में गई है.

हेलमेट और सीट बेल्ट न होने से गईं अधिकतर जान
साल 2019 से लेकर 2021 के फरवरी महीने के आकड़ों की बात करें तो सड़क हादसों में अधिकतर लोगों की जान जाने की वजह हेलमेट न पहनना और सीट बेल्ट न बांधना बना. बगैर हेलमेट वाहन चला रहे 800 बाइक सवारों की हादसों में जान गई. वहीं बाइक पर पीछे बैठे 396 लोगों को भी अपनी जान इसी वजह से गंवानी पड़ी. बगैर हेलमेट बाइक चलाने के कारण हादसों में 412 लोग गंभीर जबकि 88 लोग मामूली रूप से जख्मी हुए. वहीं कार में बगैर सीट बेल्ट बांधे ड्राइविंग के कारण 318 चार पहिया वाहन चालकों ने जान गंवाई, वहीं 145 पैसेंजर को भी इन वजहों से जान गंवानी पड़ी. सड़क हादसों के वक्त 1428 वाहन चालकों के पास वैलिड लाइसेंस था, जबकि 501 लर्निंग लाइसेंसधारी व 534 बगैर लाइसेंस ड्राइविंग करने वाले लोग सड़क हादसे के शिकार हुए. सड़क हादसों में 198 नाबालिग मारे गए, वहीं 18 से 25 की उम्र के 357 युवक व 16 लड़कियां भी दुर्घटना में मारी गईं.

पैदल चलने वाले 386 लोग भी मारे गए
सड़क हादसे में पैदल चलने वाले 386 लोग भी मारे गए हैं. इस अवधि में 2081 घटनाएं नेशनल हाईवे पर, जबकि 1458 स्टेट हाईवे पर हुई हैं. नेशनल हाईवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड 18 वें स्थान पर वहीं स्टेट हाईवे पर होने वाले हादसों के लिहाज से झारखंड देश में 14 वें स्थान पर है. हादसों की 3414 घटनाओं में किसी न किसी की मौत हुई है, जबकि 1481 घटनाओं में लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए. 215 घटनाओं में लोगों को मामूली चोट आई है.

चौक चौराहे पर होती है चेकिंग, फिर भी हो रहे हादसे
राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में चौक चौराहों पर पुलिस दिनभर चालान काटने में व्यस्त रहती है ,इसके बावजूद हादसे हो रहे हैं. आज की तारीख में इन हादसों को रोकना किसी चुनौती से कम नहीं है. सड़क सुरक्षा के लिए लगातार अभियान चलाने वाली संस्था राइज अप के फाउंडर ऋषभ आनंद के अनुसार इन सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों में 70 प्रतिशत लोग 15 से 44 साल की उम्र के होते हैं. हकीकत में ये है कि दुर्घटनाएं बिगड़ती परिवहन व्यवस्था एवं सुरक्षा की तस्वीर पेश करती हैं. इसके साथ ही तेज गति, शराब पीकर गाड़ी चलाना व हेलमेट और सीट बेल्ट की अनदेखी इन दुर्घटनाओं के लिए बड़े जिम्मेदार हैं. हालांकि खराब सड़कें, कम रखरखाव वाले वाहन, निम्न दर्जे की सड़क डिजाइन और खराब बनावट भी ऐसे कारण हैं जो इन दुर्घटनाओं को बढ़ावा देते हैं. मतलब साफ है कि केवल जुर्माना वसूलने से ही हादसे कम नहीं हो सकते हैं इसके लिए जरूरी है कि सड़क सेफ्टी से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं को भी बहाल किया जाए.

पुलिस की नाक के नीचे टूटते हैं नियम

नियमों की बात करें तो जनता तो लापरवाह है ही, लेकिन नियमों का पालन करवाने के लिए पुलिस कितना दायित्व निभाती है, इस पर सवाल हैं. ऑटो में चार सीट पर बारह सवारी ढोई जाती है. दर्जनों लोग ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हैं लेकिन सिर्फ दो-चार ही पकड़े जाते हैं. कहा जाए तो ट्रैफिक पुलिस का पूरा ध्यान वसूली पर ही होता है. आखिर क्यों इस सब पर नियंत्रण नहीं हो पाता, यातायात माह पर हादसों से कैसे निपटा जाए, इस पर विचार करने की आवश्यकता है.

वाहनों की बढ़ती संख्या भी है कारण
इन सब से इतर एक्सीडेंट्स की एक बड़ी वजह सड़क पर वाहनों की बढ़ती संख्या भी है. हम सबको चाहिए कि दुर्घटना के जितने कारणों को हम टाल सकते हैं, कम से कम उन्हें तो टालें ही. विशेषज्ञों का कहना है कि हादसों की जो वजहें चालक निर्भर हैं, उन्हें तो कंट्रोल तो किया ही जा सकता है, जैसे हेलमेट, फास्ट स्पीड व सीटबेल्ट आदि के नियमों का पालन कराकर इसमें कमी लाई जा सकती है. वहीं प्रश्न उठता है कि क्या सड़क की खराब हालत की जिम्मेदारी भी चालक की बनती है. इस पर तो सरकार और सम्बंधित विभाग को ही नजरसानी करनी होगी.

खराब ट्रैफिक सिग्नल की वजह से भी कट रहा चालान

रांची में 40 स्थानों पर नए ट्रैफिक सिग्नल लगाए गए हैं. कुछ स्थानों के सिग्नल शुरू कर दिए गए हैं लेकिन आम लोगों के लिए ये सिग्नल मुसीबत बन गए हैं. दरअसल, इन सिग्नल्स में तकनीकी खराबी है, इसका खमियाजा पब्लिक को भुगतना पड़ रहा है. राइज अप संस्था के फाउंडर ऋषभ आनंद का कहना है कि रेड और ग्रीन सिग्नल काफी जल्दी-जल्दी बदल रहे हैं. ऐसे में ड्राइविंग करने में भी मुसीबत हो रही है. ट्रैफिक सिग्नल रेड रहने पर गाड़ियां रूकी रहती हैं और ग्रीन होने पर जाने का सिग्नल मिल जाता है. इधर कई सिग्नल पर लाइट ग्रीन होने के बाद तुरंत ही रेड हो जाती है. इससे दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा लोगों को फाइन कटने का भी डर सताता रहता है. सभी चौराहों पर चालान के लिए ऑटोमैटिक सिस्टम कर दिया गया है. रेड सिग्नल के दौरान जेब्रा क्रॉसिंग पार करते ही ऑनलाइन चालान अपने आप कट जाता है. इसकी कॉपी आपके पते पर पहुंच जाती है. ऐसे में गलती नहीं करने वालों को भी चालान कटने का डर सताता रहता है. वहीं राजधानी रांची में अभी तक लेफ्ट साइड का निर्धारण नहीं हो पाया है. इससे भी लोगों का चालान कट रहा है. रांची के सीनियर एसपी के अनुसार यह सच है कि राजधानी में अभी तक सड़कों पर मूलभूत सुविधाएं स्थापित नहीं हो पाई हैं, जिनकी वजह से भी हादसे हो रहे हैं.

राज्य भर में 93 ब्लैक स्पॉट
विभाग द्वारा तैयार कराए गए आंकड़ों के मुताबिक पूरे राज्य में 93 ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं. इनमें 22 ब्लैक स्पॉट रांची में हैं, जिनमें 19 शहर में ही हैं. ये ब्लैक स्पॉट कहीं-कहीं तीखे मोड़ के रूप में हैं, कहीं घाटी तो कहीं डायवर्जन के नाम से हैं. रांची के सिरमटोली चौक के आसपास, कांटाटोली चौक के पास, करमटोली चौक के पास, रातू रोड सहित कई जगहों पर जानलेवा गड्ढे हैं. रांची के ब्लैक स्पॉट पर पिछले दो साल में 256 सड़क हादसों में 153 की मौत अबतक हो चुकी है. पिछले वर्ष 2019 में 735 सड़क हादसों में 350 लोगों की मौत हुई जबकि वर्ष 2018 में कुल 538 सड़क हादसों में 363 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी, 328 घायल भी हुए.

कई जिलों के एसपी ने गृह विभाग को भेजी है रिपोर्ट

गृहविभाग के निर्देश के बाद कई जिलों के एसपी ने अपने इलाके के ब्लैक स्पॉट की पहचान कर रिपोर्ट भेजी है. गृह सचिव एसकेजी रहाटे ने इस संबंध में सभी जिलों के एसएसपी और एसपी को पत्र भेजे थे. इसमें रांची के अलावा सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां, लोहरदगा, देवघर, गिरिडीह, रामगढ़, जामताड़ा, साहिबगंज, कोडरमा, चतरा, गोड्डा, खूंटी, दुमका, गुमला, बोकारो तथा हजारीबाग शामिल थे. इस आदेश के बाद सभी जिलों से रिपोर्ट सौंप दी गई है.


जागरुकता के नाम पर खानापूर्ति
राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में ट्रैफिक पुलिस के जरिये सरकार को करोड़ों का राजस्व प्राप्त हो रहा है लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल ट्रैफिक नियमों की जागरूकता के लिए न के बराबर होता है. वही शहर के खराब सिग्नल और सड़कें भी हादसों के लिए बड़ी जिम्मेदार हैं. वर्तमान में ट्रैफिक जागरूकता एवं सुरक्षा सप्ताह चल रहा है लेकिन इसके नाम पर शहर में केवल खानापूर्ति की जा रही है.


ट्रैफिक जागरुकता बेहद जरूरी

रांची के सिटी एसपी सौरभ के अनुसार आम लोगों को यह समझना होगा कि हेलमेट सीट बेल्ट सहित दूसरे सुरक्षा के बंदोबस्त उनकी सुरक्षा के लिए है न कि पुलिस के लिए. ऐसे में जरूरी है कि लोग जागरूक हों.

Last Updated : Feb 23, 2021, 10:36 PM IST
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