रांचीः झारखंड पुलिस लगातार अभियान चलाकर राज्य के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादियों को खत्म करने के कगार पर पहुंच चुकी है, लेकिन दूसरी तरफ टीपीसी, पीएलएफआई और जेजेएमपी जैसे छोटे उग्रवादी संगठनों की गतिविधियां बढ़ी हैं. ग्रामीण इलाकों में चल रहे कंस्ट्रक्शन वर्क, स्टोन माइंस, ईंट भट्ठों में आगजनी और हमले कर उग्रवादी संगठन अपने अर्थतंत्र को मजबूत करने में लगे हुए हैं.
सुकेश ने किया खुलासा, आदेश है आगजनी काः पुलिस मुखबिर राजा साहेब हत्याकांड में गिरफ्तार टीपीसी एरिया कमांडर सुकेश ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सुकेश ने पुलिस को बताया है कि टीपीसी के शीर्ष नेताओं का यह आदेश है कि वह कोयला ट्रांसपोर्ट, स्टोन माइंस, सड़क और भवन निर्माण जैसे साइट्स पर पहले इंटरनेट के माध्यम से लेवी की डिमांड करें. उसके बाद साइट पर जाकर एक-दो वाहनों को आग के हवाले कर दें, ताकि संगठन का खौफ कारोबारियों के बीच कायम रहे और वे लेवी का भुगतान करते रहें. पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में सुकेश ने बताया है कि अप्रैल 2021 में चतरा जिले के टंडवा के आम्रपाली कोल परियोजना से कोयला ढुलाई में लगे कंपनी के दो हाईवा को सिर्फ इसलिए जला दिया गया था, क्योंकि ट्रांसपोर्टर ने टीपीसी को पैसे देने से इंकार कर दिया था.
ग्रामीण इलाके में हमले बढ़ेः केवल राजधानी रांची की बात करें तो वर्ष 2023 के फरवरी 15 तक ही टीपीसी के उग्रवादियों के द्वारा एक दर्जन बार विभिन कंस्ट्रक्शन साइट्स, स्टोन माइंस पर लेवी के लिए हमले किए गए हैं. कई जगह पर फायरिंग तो कई जगह वाहन जलाए जाने के प्रयास किए गए हैं. यह सारे काम सिर्फ इसलिए किए जा रहे हैं, ताकि कारोबारी दहशत में आ जाएं और पैसा संगठन तक पहुंच सके.
एनआई की जांच के बाद पैसों की कमीः टीपीसी के गिरफ्तार उग्रवादियों ने यह खुलासा किया है कि टेरर फंडिंग मामले में एनआईए जांच जब से शुरू हुई है, उसके बाद से ही टीपीसी का अर्थतंत्र बिगड़ गया है. खासकर छोटे कैडरों के पास पैसे ना के बराबर पहुंच रहे हैं. ऐसे में संगठन के छोटे कैडर को भी यह आदेश दिया गया है कि वह छोटी-छोटी टुकड़ियां बनाकर कंस्ट्रक्शन कंपनियों पर हमला करें और उनसे लेवी वसूलें. रांची पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किए गए टीपीसी उग्रवादियों ने खुलासा किया है कि नोटबंदी के बाद संगठन को बहुत बड़ा नुकसान हुआ था. उससे उबरने की कोशिश संगठन कर ही रहा था कि कोविड-19 संक्रमण आ गया. लॉकडाउन ने संगठन के अर्थतंत्र को हिला कर रख दिया.
संगठन में पैसे के लिए पड़ी फूटः गौरतलब है कि उग्रवादी संगठन टीपीसी की कमाई का सबसे बड़ा जरिया चतरा का मगध आम्रपाली कोल परियोजना है. यहां दो वर्ष पूर्व से ही एनआईए ने दबिश दी है. जिसके बाद काफी हद तक टीपीसी का वर्चस्व कम हुआ है. जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि विस्थापितों के नाम पर कमेटी बनाकर टीपीसी के द्वारा अवैध वसूली की जा रही थी. इस कमेटी के जरिए वर्ष 2018 तक कोल ट्रांसपोर्टरों से प्रति ट्रक 1200 रुपए की वसूली की जाती थी. झारखंड पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार विस्थापितों के नाम पर फिर कमेटी बन रही है. इनमें जगह के लिए टीपीसी के कई गुट एक्टिव हैं. वहीं पूर्व में लेवी के तौर पर जिस रकम की उगाही की गई थी, उसके बंटवारे को लेकर भी कुछ महीनों से विवाद शुरू हो चुका है.
संगठन में वर्चस्व को लेकर गुटबाजी शुरूः पूर्व में लेवी के जरिए वसूली गई राशि से कई नक्सलियों ने अचल संपत्ति में निवेश किया था. उसी पैसे से कई हथियार खरीदे गए, लेकिन अब गुटबाजी होने लगी है. एक तरफ जहां झारखंड पुलिस मुख्यालय की नजर टीपीसी की गतिविधियों पर है, वहीं दूसरी तरफ एनआईए भी टेरर फंडिंग मामले में लगातार अपनी नजर बनाए हुए है.
पुलिस उग्रवादियों पर कस रही है शिकंजाः रांची के ग्रामीण एसपी नौशाद आलम ने बताया कि यह सही है कि उग्रवादी संगठन टीपीसी के द्वारा लगातार कहीं न कहीं हमले की कोशिश की जा रही है, लेकिन पुलिस पूरी तरह से सतर्क है. यही वजह है कि पिछले एक महीने के भीतर टीपीसी के साथ पुलिस का पांच बार एनकाउंटर हो चुका है. उनके एक हजार से ज्यादा कारतूस पुलिस ने बरामद किए हैं. साथ ही कई हथियार मिले हैं. उनके कई सदस्य गिरफ्तार भी कर लिए गए हैं. टीपीसी उग्रवादियों के खिलाफ झारखंड जगुआर और जिला पुलिस के द्वारा एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है. उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही इस संगठन का रांची से सफाया कर दिया जाएगा.