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रांची में नियोकॉन-22 का समापन, देशभर से जुटे नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ, दी अहम जानकारियां

रांची में आयोजित नवजात शिशु रोग विशेषज्ञों का थर्ड ईस्ट जोन कॉन्फ्रेंस नियोकॉन-22 का समापन हुआ (Neocon-22 in Ranchi Concluded). जिसमें देशभर से करीब 400 नवजात शिशु रोग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. उन्होंने अपने कई अनुभव साझा किए. शिशु मृत्यु दर को कम करने को लेकर बातें की. विशेषज्ञों की मानें तो नवजात को मां अपने सीने से सटा कर रखे तो मृत्यु दर में 38% की कमी हो जाती है.

Neocon 22 in Ranchi
Neocon 22 in Ranchi
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Published : Sep 19, 2022, 7:24 AM IST

रांची: नेशनल नियोनाटोलॉजी फोरम (NNF) झारखंड ब्रांच की ओर से रांची में आयोजित थर्ड ईस्ट जोन कॉन्फ्रेंस नियोकॉन-22 का समापन हो गया (Neocon-22 in Ranchi Concluded). रविवार को हुए समापन सत्र में नवजात शिशु संबंधित सभी तरह की बीमारियों के विषय में देश विदेश के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञों ने अपने अपने व्याख्यान दिए और अपने अनुभवों को साझा किया.

इसे भी पढ़ें: रांची में फैल रहा है वायरल फीवर, डॉक्टर ने दी ये सलाह

डॉक्टरों को दी गई जानकारी: कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन झारखंड और देश अन्य हिस्सों से आए शिशु रोग चिकित्सकों को यह जानकारी दी गयी कि एक डॉक्टर को बच्चों के उपचार के समय किन किन चीजों पर बारीकी नजर रखनी चाहिए? किस कंडीशन में कौन से उपकरण का इस्तेमाल करना है? इसके अलावा बच्चों में सांस की समस्या होने पर वेंटिलेटर द्वारा कृत्रिम ऑक्सीजन देकर उनकी जान बचाने का भी प्रशिक्षण दिया गया.

नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ विक्रम दत्ता ने बताया कि नवजात बच्चों की गुणवत्ता में सुधार से 75 प्रतिशत शिशु मृत्यु दर में सुधार लाया जा सकता है. उन्होंने डॉक्टरों और अस्पताल संचालकों को सुझाव देते हुए कहा कि डब्लूएचओ की गाइडलाइन का पालन किया जाए तो व्यापक सुधार संभव है. इसके लिए सभी अस्पतालों को चार स्टेप लागू करने होंगे:

  • पहला अपनी परेशानी को पहचानें.
  • दूसरा, परेशानी को पहचान कर मुख्य परेशानी को अलग करें.
  • तीसरा एक टीम बनाएं जिसमें डॉक्टर, मरीज, नर्स और मरीज के परिजन शामिल हो और उनके सुझाव पर अमल करते हुए समस्याओं का निदान करें.
  • इसके बाद इस नियम को अपने अस्पताल पर लागू करें.

एंटीबायोटिक का ज्यादा प्रयोग नुकसानदायक: डॉ विक्रम दत्ता ने कहा कि अक्सर यह बातें सामने आ रही है कि एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग डॉक्टर्स जमकर करते हैं, यह अच्छी बात नहीं है. उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं को लिखने से पहले थोड़ा परहेज किया जाए, क्योकि एंटीबायोटिक का ज्यादा प्रयोग नुकसानदायक हो सकता है.

जन्म के बाद बच्चे को सीने से सटा कर रखे मां या परिजन: डॉ. दत्ता ने कहा कि अगर जन्म के साथ ही नवजात बच्चे को उसके परिजन या मां अपने सीने से सटा कर रखती है, तो बच्चा गर्म रहता है. इससे बच्चों की मृत्यु दर 38 प्रतिशत तक कम हो जाती है. ऐसे में सभी डॉक्टरों को यह सलाह उनके परिजनों को देने की जरूरत है.

माता पिता को पहले से करें जागरूक: शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ श्याम सिडाना ने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस में कम खर्च के साथ बेहतर इलाज से संबंधित जानकारी दी गई. यह बताया गया कि गर्भवती महिलाओं को बेहतर खान पान से संबंधित जानकारी गर्भधारण से पूर्व दे दिया जाए तो बच्चों में कुपोषण, विकलांगता की समस्या खत्म हो जाएगी. कंगारु मदर केयर के माध्यम से भी बच्चों को बचाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर डॉक्टर माता पिता को पहले से ही जागरूक करें तो नवजात मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.


करीब 400 शिशु रोग विशेषज्ञों ने लिया हिस्सा: शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश (बालपन) ने कहा कि देश में नवजात बच्चों की मोर्टेलिटी रेट जितनी है, उससे कम झारखंड में औसत मृत्यु दर है. इसे और बेहतर करने के लिए सरकार और एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि तीसरे ईस्ट जोन कॉन्फ्रेस नियोकॉन में जाने माने 54 से अधिक विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे. देश के विभिन्न हिस्सों से करीब 400 शिशु रोग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.

रांची: नेशनल नियोनाटोलॉजी फोरम (NNF) झारखंड ब्रांच की ओर से रांची में आयोजित थर्ड ईस्ट जोन कॉन्फ्रेंस नियोकॉन-22 का समापन हो गया (Neocon-22 in Ranchi Concluded). रविवार को हुए समापन सत्र में नवजात शिशु संबंधित सभी तरह की बीमारियों के विषय में देश विदेश के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञों ने अपने अपने व्याख्यान दिए और अपने अनुभवों को साझा किया.

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डॉक्टरों को दी गई जानकारी: कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन झारखंड और देश अन्य हिस्सों से आए शिशु रोग चिकित्सकों को यह जानकारी दी गयी कि एक डॉक्टर को बच्चों के उपचार के समय किन किन चीजों पर बारीकी नजर रखनी चाहिए? किस कंडीशन में कौन से उपकरण का इस्तेमाल करना है? इसके अलावा बच्चों में सांस की समस्या होने पर वेंटिलेटर द्वारा कृत्रिम ऑक्सीजन देकर उनकी जान बचाने का भी प्रशिक्षण दिया गया.

नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ विक्रम दत्ता ने बताया कि नवजात बच्चों की गुणवत्ता में सुधार से 75 प्रतिशत शिशु मृत्यु दर में सुधार लाया जा सकता है. उन्होंने डॉक्टरों और अस्पताल संचालकों को सुझाव देते हुए कहा कि डब्लूएचओ की गाइडलाइन का पालन किया जाए तो व्यापक सुधार संभव है. इसके लिए सभी अस्पतालों को चार स्टेप लागू करने होंगे:

  • पहला अपनी परेशानी को पहचानें.
  • दूसरा, परेशानी को पहचान कर मुख्य परेशानी को अलग करें.
  • तीसरा एक टीम बनाएं जिसमें डॉक्टर, मरीज, नर्स और मरीज के परिजन शामिल हो और उनके सुझाव पर अमल करते हुए समस्याओं का निदान करें.
  • इसके बाद इस नियम को अपने अस्पताल पर लागू करें.

एंटीबायोटिक का ज्यादा प्रयोग नुकसानदायक: डॉ विक्रम दत्ता ने कहा कि अक्सर यह बातें सामने आ रही है कि एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग डॉक्टर्स जमकर करते हैं, यह अच्छी बात नहीं है. उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं को लिखने से पहले थोड़ा परहेज किया जाए, क्योकि एंटीबायोटिक का ज्यादा प्रयोग नुकसानदायक हो सकता है.

जन्म के बाद बच्चे को सीने से सटा कर रखे मां या परिजन: डॉ. दत्ता ने कहा कि अगर जन्म के साथ ही नवजात बच्चे को उसके परिजन या मां अपने सीने से सटा कर रखती है, तो बच्चा गर्म रहता है. इससे बच्चों की मृत्यु दर 38 प्रतिशत तक कम हो जाती है. ऐसे में सभी डॉक्टरों को यह सलाह उनके परिजनों को देने की जरूरत है.

माता पिता को पहले से करें जागरूक: शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ श्याम सिडाना ने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस में कम खर्च के साथ बेहतर इलाज से संबंधित जानकारी दी गई. यह बताया गया कि गर्भवती महिलाओं को बेहतर खान पान से संबंधित जानकारी गर्भधारण से पूर्व दे दिया जाए तो बच्चों में कुपोषण, विकलांगता की समस्या खत्म हो जाएगी. कंगारु मदर केयर के माध्यम से भी बच्चों को बचाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर डॉक्टर माता पिता को पहले से ही जागरूक करें तो नवजात मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.


करीब 400 शिशु रोग विशेषज्ञों ने लिया हिस्सा: शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश (बालपन) ने कहा कि देश में नवजात बच्चों की मोर्टेलिटी रेट जितनी है, उससे कम झारखंड में औसत मृत्यु दर है. इसे और बेहतर करने के लिए सरकार और एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं. उन्होंने कहा कि तीसरे ईस्ट जोन कॉन्फ्रेस नियोकॉन में जाने माने 54 से अधिक विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे. देश के विभिन्न हिस्सों से करीब 400 शिशु रोग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया.

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