रांची: साल 2020 में कोविड की वजह से लॉकडाउन और समय-समय पर इस वायरस के फैलाव ने अगर किसी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया तो वह था प्रवासी श्रमिक वर्ग. उस दौर में झारखंड सरकार ने श्रमिकों की घर वापसी के लिए न सिर्फ स्पेशल ट्रेन चलवाई बल्कि हवाई जहाज से भी उन्हें वापस लाया. इस दौरान सरकार की पहली प्राथमिकती थी लोगों तक भोजन पहुंचाना. इसको सलीके से क्रियान्वित भी किया गया. श्रमिकों को गांव में ही रोजगार दिलाने के लिए मनरेगा की कई योजनाएं शुरू की गई. लेकिन हालात सामान्य होते ही फिर से पलायन शुरू हो गया. इसको समझकर पलायन को रोकने के लिए झारखंड में पहली बार एक बड़ा इनिशियेटिव उठाया गया है. लेकिन दूसरी तरफ जब बात बेरोजगार नौजवानों की होती है तो राज्य का श्रम विभाग फिसड्डी नजर आता है.
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प्रवासी श्रमिकों के सर्वेक्षण की क्या है वजह: अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है यह जानने की है कि प्रवासी मजदूरों को किस क्षेत्र में काम दिलाया जाए. आखिर क्यों लोग पलायन करते हैं. कैसे उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. इसका आंकलन करन के लिए JMS यानी झारखंड माइग्रेंट्स सर्वे का काम शुरू किया गया है. फिया फाउंडेशन से जुड़े जॉनसन टोप्पो ने बताया कि फरवरी 2023 तक सर्वेक्षण पूरा होने की उम्मीद है. उन्होंने बताया कि 10 हजार से ज्यादा प्रवासी श्रमिक परिवारों का सर्वेक्षण किया जा रहा है. इस काम में 100 से ज्यादा लोग लगाए गये हैं.
उन्होंने उम्मीद जतायी कि फरवरी तक रिपोर्ट तैयार होने के बाद एक तस्वीर सामने आ जाएगी कि आखिर पलायन हो क्यों रहा है. उस आधार पर राज्य सरकार को प्रवासी मजदूरों के लिए पॉलिसी बनाने में मदद मिलेगी. इस अभियान को SMRI यानी सेफ एंड रिसपॉंसिबल माइग्रेशन इनिशियेटिव नाम दिया गया है. जॉनसन टोप्पो ने बताया कि अक्टूबर 2021 में राज्य सरकार के साथ हुए एमओयू के आधार पर पॉलिसी एंड डेवलपमेंट एडवाईसरी ग्रुप यानी PDAG और फिया फाउंडेशन यानी PHIA, इस दिशा में काम कर रही है.
प्रवासी श्रमिकों का अनुमानित आंकड़ा: हालांकि आजतक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि कोविड महामारी के दौरान कितने श्रमिक राज्य लौटे. लॉकडाउन के दौरान स्थापित प्रवासी मजदूर नियंत्रण कक्ष के डाटा के मुताबिक 2020-21 में महाराष्ट्र से सबसे ज्यादा 1.78 लाख श्रमिक लौटे. इसके बाद गुजरात से 1.27 लाख, तमिलनाडु से 93,500 , कर्नाटक से 85,000, तेलंगाना से 68,000 और दिल्ली से 59,500 मजदूर लौटे. लेकिन कुल संख्या का आज तक पता नहीं चल पाया. कभी कहा जाता है कि 6.50 लाख मजदूर लौटे तो कभी 7.50 से 8.50 लाख तक की बात होती है. वैसे अब इसके कोई मायने नहीं है. ज्यादा जरूरी है यह जानना कि पलायन को रोका कैसे जाए.
रोजगार दिलाने में फिसड्डी रहा श्रम विभाग: कोविड के दौर से निकलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी रोजगार का सृजन करना. अकुशल श्रमिकों को अलग-अलग माध्यम से काम तो मिलने लगा लेकिन तबतक पढ़े-लिखे नौजवान बेरोजगारी के भंवर में फंस चुके थे. वित्तीय वर्ष 2020-21 में श्रम विभाग ने 64 भर्ती कैंप लगवाए. इसके जरिए 1,839 युवाओं को रोजगार के लिए चयनित किया गया. दूसरे साल यानी वित्तीय वर्ष 2021-22 में 102 भर्ती कैंप लगवाए. इसके जरिए 2,119 युवाओं को रोजगार के लिए चयनित किया गया. आंकड़े बताते हैं कि विभाग ने रोजगार कैंप की संख्या तो बढ़ा दी लेकिन पिछले साल के अनुपात में रोजगार के लिए युवा नहीं पहुंचे. इसकी सबसे बड़ी वजह रही कम वेतन.
बेरोजगार और नियोजक के आंकड़ों की पहेली: झारखंड के श्रम विभाग ने बेरोजगारों को ऑनलाइन निबंधन के लिए rojgar.jharkhand.gov.in पोर्टल की व्यवस्था दी है. इस पोर्टल पर वित्तीय वर्ष 2020-21 में 1,796 नियोजक और 7,43,680 बेरोजगार निबंधित थे. लेकिन अगले साल यानी 2021-22 में नियोजकों की संख्या मामूली रूप से बढ़कर 1,801 हो गई. जबकि बेरोजगारों की संख्या 34,183 घटकर 7,09,497 हो गई. यह आंकड़ा समझ से परे है. इस बाबत श्रम विभाग के अफसरों से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया.