रांची: 2013 में दिल्ली-आगरा हाइवे पर एक महिला डॉक्टर सड़क दुर्घटना की शिकार हो जाती हैं. हादसा इतना जबरदस्त कि स्पाइनल कॉर्ड बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और गर्दन के नीचे किसी अंग पर नियंत्रण नहीं रहा. ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग यही सोचेंगे कि महिला डॉक्टर की जिंदगी किसी के भरोसे कट रही होगी. लेकिन, किसी ने ठीक लिखा है जो डर जाता है वह बिखर जाता है और जो डट जाता है वह संवर जाता है. महिला डॉक्टर ने जिंदगी को चैलेंज की तरह लिया और डटकर मुकाबला किया. आजकल लोग जहां छोटी-छोटी बातों में डिप्रेशन में चले जाते हैं, ऐसी स्थिति में महिला ने वो कर दिखाया जिस पर सब यही कहेंगे ये महिला डॉक्टर के हौसले और जज्बे की जीत है.
बच्चों के इलाज के लिए समर्पित कर दी जिंदगी
रांची की रहने वाली डॉ. दिव्या सिंह जब सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हो गई तब व्हीलचेयर ही उनका साथी बन गया. जिंदगी ने ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहां हर तरफ अंधेरा ही दिख रहा था. लेकिन, इस मोर्चे पर डॉ. दिव्या ने टूटने की बजाय बच्चों के इलाज के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी. डॉ. दिव्या पीडियाट्रिशियन हैं. पीडियाट्रिशियन एक स्पेशलाइज्ड डॉक्टर होता है जो बच्चों की सेहत का पूरा ध्यान रखता है. डॉ. दिव्या तब से ही व्हील चेयर पर बैठकर बच्चों का न सिर्फ इलाज करती हैं बल्कि पूरा ध्यान रखती हैं. डॉ. दिव्या जैसे ही बच्चों के पास पहुंचती हैं, बच्चे देखते ही खिलखिला उठते हैं. कोरोना काल में जब ओपीडी सेवा बंद हो गई तब डॉ. दिव्या ई संजीवनी के माध्यम से ऑनलाइन बच्चों का इलाज करने लगी. आज डॉ. दिव्या राज्य की एकमात्र ऐसी डॉक्टर हैं जो ई-संजीवनी के माध्यम से ऑनलाइन 43% मरीजों का इलाज करती हैं.
क्वाड्रिप्लेजिया(Quadriplegia) जैसी बीमारी से ग्रस्त हैं डॉ. दिव्या
दिसंबर 2013 से पहले बिल्कुल आम लोगों की तरह जीवन बिताने वाली डॉ. दिव्या शुरू से ही काफी मेधावी थी. MBBS और MD की डिग्री के बाद उच्चस्थ डिग्री DM में नामांकन के लिए डॉ दिव्या दिल्ली गई थीं. इसी दौरान दिल्ली-हाइवे पर भीषण सड़क हादसा हुआ और डॉ. दिव्या की जिंदगी पूरी तरह बदल गई. उन दिनों को याद कर डॉ. दिव्या कहती हैं कि पहले तो लगा कि सब कुछ समाप्त हो गया लेकिन फिर एम्स से डिस्चार्ज होने के समय काउंसलिंग के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह उस मुकाम को हासिल करेंगी जो वह करना चाहती थीं. डॉ. दिव्या ने बताया कि हादसे में स्पाइनल कॉर्ड बुरी तरह डैमेज हुआ था. डॉक्टरी भाषा मे इसे क्वाड्रिप्लेजिया(Quadriplegia) कहते हैं. इसमें गर्दन के नीचे किसी अंग पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है यानि पूरा शरीर अपंग हो जाता है.
बच्चों में ही ढूंढ ली अपनी खुशियां
डॉ. दिव्या बताती हैं कि मेडिकल अफसर के रूप में जब वह रिम्स से जुड़ी तो काम में इतना व्यस्त हो गई कि बच्चों की खुशियों में ही अपनी खुशियां दिखने लगी. कोलकाता से बैटरी चलित व्हील चेयर मंगवाई और हर दिन रिम्स में बीमार बच्चों का इलाज करने लगी. जब कोरोना संक्रमण बढ़ा और केंद्र सरकार ने दिव्यांग डॉक्टरों को घर पर रहने की छूट दे दी तब भी डॉ दिव्या बैठी नहीं, बल्कि ई-संजीवनी से जुड़ गई और ई-संजीवनी के माध्यम से होने वाले कुल इलाज का 43% इलाज कर रिकॉर्ड बना दिया. डॉ. दिव्या अभी तक ई-संजीवनी के माध्यम से 4200 बच्चों का इलाज कर चुकी हैं.
ट्रस्ट बनाया, दिव्यांग बच्चों के इलाज के लिए सुविधा संपन्न अस्पताल खोलना लक्ष्य
दिव्यांग होकर भी कई अच्छे भले लोगों से बेहतर काम करने वाली डॉ. दिव्या ने जनसेवा में ही अपनी खुशी खोज ली है. उनकी तमन्ना दिव्यांग बच्चों के लिए अस्पताल खोलने की है. डॉ. दिव्या ने अपने संघर्ष की कहानी पर एक किताब लिखी है- गर्ल्स विथ विंग्स ऑन फायर(Girls With Wings On Fire) जो दूसरों को प्रेरणा दे सके. डॉ. दिव्या कहती हैं कि कई लोग इसे हिंदी में लिखने का आग्रह कर रहे हैं. इसलिए जल्द ही वह इसे हिंदी में भी प्रकाशित करेंगी.
पिता को भी अपनी बेटी पर गर्व
कहते हैं कि जब बच्चों पर विपदा का पहाड़ टूटता है तो माता-पिता हौसलों की दीवार बनकर उनका संबल बनते हैं. डॉ. दिव्या पर जब अचानक दुखों का पहाड़ टूटा तो उनके पिता जो रिटायर्ड बैंक कर्मी हैं, बेटी का सहारा बने. आज उनके पिता एमपी सिंह को गर्व है कि उनकी पहचान बेटी से है.
रिम्स के डॉक्टर भी करते हैं डॉ. दिव्या के जज्बे को सलाम
डॉ. दिव्या के मरीजों के इलाज के प्रति समर्पण के भाव और दिव्यांग होने के बावजूद सुबह से लेकर शाम तक की जा रही सेवाभाव की दाद रिम्स के वरीय डॉक्टर भी देते हैं. रिम्स के PRO डॉ. डीके सिन्हा कहते हैं कि दिव्यांग होकर भी जितना समर्पण डॉ. दिव्या में है उतना कई अच्छे भले डॉक्टरों में नहीं होती.