रांची: छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाने के बाद झारखंड कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग तेज हो गयी है. पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री और कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने राज्य में कांग्रेस संगठन की खराब होती स्थिति और आदिवासियों की भावनाओं का हवाला देते हुए नेतृत्व परिवर्तन और किसी योग्य आदिवासी नेता को राज्य की कमान सौंपने की मांग की है.
"माइक्रो लेवल पर कमजोर पकड़ के कारण हारी कांग्रेस": ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पार्टी की हार का मुख्य कारण पार्टी का माइक्रो लेवल तक नहीं पहुंच पाना है. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे बड़े नेताओं के कार्यक्रम हुए लेकिन हम जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच सके. उन्होंने कहा कि एक तरफ झारखंड के भाजपा नेता और विधायक को छत्तीसगढ़ में कार्यकर्ता के रूप में तैनात किया गया, वहीं कांग्रेस ने झारखंड जैसे पड़ोसी और आदिवासी बहुल राज्य के नेताओं को तैनात नहीं किया. उन्होंने कहा कि वह खुद कुछ विधानसभा चुनावों में अपने दम पर प्रचार करने गये थे.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड में कांग्रेस संगठन खस्ताहाल है. यहां ऐसे नेता को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जानी चाहिए जो आदिवासियों की भावनाओं के अनुरूप हो और उसका जनाधार हो.
दिल्ली जानती है प्रदेश कांग्रेस की हकीकत: बंधु तिर्की ने कहा कि दिल्ली राज्य की जनता की भावनाओं और कांग्रेस की खराब सांगठनिक स्थिति से वाकिफ है. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की चिंता है कि सब कुछ जानते हुए भी आलाकमान राज्य की जनता की भावनाओं के अनुरूप काम करने में देरी क्यों कर रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य में 28 अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटें हैं, लेकिन अनुसूचित जाति आरक्षित और सामान्य सीटों पर भी आदिवासी मतदाता जीत-हार तय करते हैं.
आरक्षित सीटों पर हार के कारण गंवानी पड़ी सत्ता: पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी उन आदिवासी आरक्षित सीटों पर हार गई जहां उसने 2018 में जीत हासिल की थी. वर्ष 2018 में, छत्तीसगढ़ की 29 अनुसूचित जनजाति आरक्षित विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 27 और भाजपा ने 02 सीटें जीतीं, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में यह परिणाम पूरी तरह से बदल गया. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज ने कांग्रेस को किस हद तक नकार दिया है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बार 29 में से कांग्रेस सिर्फ 12 सीटें ही जीत सकी और बीजेपी ने 16 सीटें जीतीं. 01 सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिली.
चुनाव परिणाम से क्यों डरे कांग्रेस नेता: कांग्रेस के कई नेता छत्तीसगढ़ के हालिया चुनाव नतीजों से इसलिए भी ज्यादा परेशान हैं क्योंकि 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के नतीजों की तरह ही 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति रिजर्व सीट पर महागठबंधन ने बीजेपी का सफाया कर दिया था. उस समय राज्य की 28 एसटी सीटों में से बीजेपी सिर्फ 02 सीटें ही जीत पाई थी, बाकी सीटों पर जेएमएम (19), कांग्रेस 06 और बाबूलाल मरांडी की जेवीएम पार्टी 01 सीट जीती थी. अब जब कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज ने खारिज कर दिया है तो झारखंड में भी पार्टी नेताओं को लग रहा है कि अगर यही सिलसिला जारी रहा तो कांग्रेस का क्या होगा.
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