रांची: भाकपा माओवादी दस्ते के खिलाफ मिली पुख्ता सूचना के बावजूद अभियान में निकली जगुआर और पुलिस की टीम नक्सलियो के ट्रैप में फंस गई. उग्रवादियों ने अपने बचाव के लिए एक ग्रामीण का भी इस्तेमाल किया है, जिसकी पुष्टि अभियान से जुड़े राज्य पुलिस के एक आला अधिकारी ने की है.
स्पेशल ब्रांच ने किया था अलर्ट
जानकारी के अनुसार राज्य पुलिस की विशेष शाखा ने कुख्यात नक्सली अमित मुंडा, बोयदा पाहन की गतिविधियों को लेकर लगातार कई अलर्ट दिए थे. इस संबंध में खुफिया विभाग द्वारा जारी किया गया पत्र ईटीवी भारत के पास भी उपलब्ध है. पत्र में अगस्त महीने में ही दस्ते के द्धारा इलाके में कैम्प लगाए जाने की सूचना दी गई थी. इसी बीच गुरुवार रात रांची पुलिस को खबर मिली थी कि रायसा से तंजू मोड़ के बीच बन रही फोर लेन सड़क निर्माण कंपनी से माओवादी दस्ते ने लेवी की मांग की है. लेवी मांगने के लिए पांच लाख के ईनामी बोयदा पाहन का दस्ता 20-25 उग्रवादियों के साथ दशम पहुंचा था. खुफिया सूचना के अनुसार, शुक्रवार को माओवादियों ने कंपनी के साइट पर जाकर आगजनी की योजना बनाई थी. अभियान में शामिल पुलिसकर्मियों के मुताबिक मौके पर सबजोनल कमांडर बोयदा पाहन ने स्वयं ही एके 47 से फायरिंग की.
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एक किलोमीटर पहले ही पुलिस को घेर लिया
राज्य पुलिस के एडीजी अभियान मुरारी लाल मीणा ने घटना के बाद मीडिया को बताया कि जिस जगह पर माओवादी दस्ते के होने की सूचना थी, पुलिस वहां के लिए निकली थी, लेकिन रास्ते में एक किलोमीटर पहले ही उग्रवादी अचानक आ धमके, जिसके बाद सुरक्षाबलों के साथ पुलिस की मुठभेड़ हो गई. एडीजी अभियान ने बताया कि अचानक हुई फायरिंग में दोनों पुलिसकर्मियों को गोली लग गई. इस दौरान नक्सलियों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ है.
कैसे पुलिस ट्रैप में फंसी
जानकारी के अनुसार सुरक्षाबलों की टीम पैदल ही सर्च अभियान चला रही थी. पुलिस जैसे ही दशम फॉल, डाकापीढ़ी और अड़की जाने के रास्ते के मुहाने पर पहुंची. एक ग्रामीण अचानक ही सामने से आता दिखा. पुलिस की टुकड़ी ने ग्रामीण को रोककर पूछताछ करनी शुरू कर दी. इसी दौरान अचानक ही झाड़ियों से छिपकर माओवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी. मौके पर सुरक्षाबलों को संभलने का मौका मिलता इसके पहले दो जवानों को गोली लग गई. इस दौरान ग्रामीण और माओवादी दोनों की भाग निकले. पुलिस सूत्रों के अनुसार, माओवादियों ने ग्रामीण का इस्तेमाल पुलिस को फंसाने के लिए किया था.
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रात में डाकापीढ़ी में ही ठहरे थे उग्रवादी
सूचना के मुताबिक, रात में बोयदा पाहन के नेतृत्व में माओवादियों का दस्ता डाकापीढ़ी गांव में ही ठहरा था. पुलिस की टीम ने घटना के बाद जब डाकापीढ़ी गांव में सर्च अभियान चलाया तो गांव से अधिक पुरूष सदस्य गांव छोड़ चुके थे. गांव में सिर्फ बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं ही मिलीं.
सुरक्षाबलों के लिए ये चूक बनी जानलेवा
- पुलिस के सूचना तंत्र की कमजोरी जानलेवा साबित हुई. पुलिस ने गुरुवार शाम माओवादी दस्ते के छिपे होने की जगह को चिन्हित किया था, लेकिन सुबह में माओवादियों के मूवमेंट की जानकारी नहीं मिली. ऐसे में एक किलोमीटर पहले ही माओवादियों ने पुलिस को घेर लिया.
- दशम फॉल इलाके में सीआरपीएफ का कैंप भी है, लेकिन अभियान में जगुआर और स्थानीय पुलिस को रखा गया था. पुलिस बलों की संख्या कम थी. सीआरपीएफ को अभियान में शामिल नहीं किया गया था.
- अभियान के दौरान सुरक्षाबलों के द्वारा बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल नहीं किया जाता. जवानों ने बुलेट प्रूफ जैकेट पहनी होती तो उनकी मौत नहीं होती. दोनों शहीद जवानों को सामने से गोली लगी थी, जिससे वो शहीद हो गए.