रांचीः अमूमन सॉफ्टवेयर इंजीनियर नाम से नजर के सामने एक ऐसे व्यक्ति की तस्वीर सामने आती है जिसकी अंगुलियों की-बोर्ड पर तेजी से चलता जा रहा हो. लेकिन जब कोई आपको एक ऐसे युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर से मिलवाएं जिसकी पहचान हाइड्रोपोनिक खेती यानी एक ऐसी खेती जिसमें बिना मिट्टी के पालक, चेरी, टमाटर, सलाद, स्ट्रॉबेरी, चाइनीज खीरा, तीखी मिर्ची, तुलसी, थाई तुलसी, धनिया उगाने वाले किसान के रूप में बन रही हो तो आपकी भी इच्छा ऐसे शख्स से मिलने की होगी. ईटीवी भारत आपको मिलवाता है, रांची के बरियातू इलाके में अपार्टमेंट की छत पर करीब 5000 वर्ग फीट में बिना मिट्टी के सिर्फ पानी से हरियाली बिखेर देने वाले युवा चंदन उपाध्याय से.
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सॉफ्टवेयर इंजीनियर चंदन उपाध्याय रांची में हाइड्रोपोनिक फार्मिग कर रहे हैं. युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर चंदन उपाध्याय कहते हैं कि उन्होंने मास्टर इन कंप्यूटर एप्लिकेशन (MCA) की डिग्री JNU से ली उसके बाद मार्केटिंग में भी उच्च डिग्री हासिल की. सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में लंदन, केपटाउन और दुबई में जॉब किया. वहां उन्होंने देखा कि हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके कई लाभ हैं, एक तो कंक्रीट के ढांचे में तब्दील शहर में हर छत पर हरियाली लायी जा सकती है, जिससे शहर में भी पर्यावरण को और एयर इंडेक्स को बेहतर किया जा सकता है. दूसरा यह कि वास्तविक जैविक आहार के रूप में सब्जियां, सलाद, साग, खीरा, चेरी, टमाटर, स्ट्रॉबेरी जैसे ना जाने कितने उत्पाद बिल्कुल ताजे और रसायन फ्री आपके किचन को उपलब्ध हो सकते हैं.
हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती में मिट्टी का बिल्कुल ही प्रयोग नहीं होता बल्कि पानी में फसल उगाई जाती है. इसके बावजूद इसके परंपरागत खेती में जितना पानी की आवयश्कता होती है, उससे 90% कम पानी में इस विधि से उपज लेना संभव है. वह भी बिना किसी कीटनाशक या घातक रसायन का इस्तेमाल किए. ऐसे में स्वास्थ्य के लिए भी हाइड्रोपोनिक फार्मिंग के उत्पाद सर्वश्रेष्ठ होते हैं. चंदन उपाध्याय कहते हैं कि शुरू में घर की छत पर 1000 वर्ग फीट में हाइड्रोपोनिक खेती का सेटअप लगाने में 7 से 8 लाख रुपये लगते हैं. लेकिन इसके बाद का रनिंग कॉस्ट इतना कम है कि कुछ वर्षों में ही लागत निकल जाता है और शुद्ध और हानिरहित खाने का लाभ भी है.
फार्म पोड (Farm pod) नाम का स्टार्टअप बनायाः हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में शुरुआती लागत कुछ अधिक है. इसलिए अपने सपने को पूरा करने के लिए भारत लौटने के बाद चंदन अपना मूल काम यानी सॉफ्टवेयर का भी कर रहे हैं और उस काम से मिल रही राशि से पानी से खेती के सपने को पूरा करने में लगे हैं. अब तो राजधानी रांची के सभी घरों, अपार्टमेंट के रूफ यानी छतों पर हाइड्रोपोनिक तकनीक से हरियाली हो इसके लिए चंदन ने बिजनेस का कमर्शियल मॉडल भी शुरू किया है. जिससे यह तकनीक हर घर तक पहुंचे और जो लोग इसमें इन्वेस्ट करते हैं, उन्हें इस बात की चिंता ना रहे कि अगर ज्यादा उपज हो गयी तो क्या करेंगे.
दक्षिणी भारत में हाइड्रोपोनिक फार्मिंग का चलन बढ़ रहाः कंप्यूटर से किसानी की ओर कदम बढ़ा चुके चंदन कहते हैं कि देश मे ही कर्नाटक, केरल जैसे प्रदेशों में हाइड्रोपोनिक फार्मिंग हो रही है. नॉर्थ ईस्ट जहां के बारे में कहा जाता है कि वहां सब्जियां मटन से महंगी होती है उस इलाके में इस तकनीक से खेती को बढ़ावा मिल रहा है. लेकिन झारखंड सहित देश के पूर्वी राज्य हो या उत्तरी राज्य, वहां यह तकनीक अभी लोगों ने नहीं अपनाया है.
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चंदन उपाध्याय के साथ हाइड्रोपोनिक तकनीक के रांची में प्रयोग के रिसर्च के दिनों से ही जुड़ीं कंवलदीप कौर कहती हैं कि खाया पीया ही साथ रहता है इसलिए शुद्ध और स्वच्छ खाना जरूरी है. वहीं अपनी छत पर भी इसी तरह के हाइड्रोपोनिक फार्मिंग का मॉडल लगाने से पहले चंदन के फार्म को देखने आईं रश्मि श्रीवास्तव कहती हैं कि यह कांसेप्ट बेहतरीन है. 90 फीसदी तक कम पानी में 40% से ज्यादा फास्टर ग्रोथ वाले हाइड्रोपोनिक तकनीक का प्रचलन अभी ना के बराबर है तो इसकी वजह यह है कि एक तो इसमें शुरुआती लागत अधिक है. पॉली हाउस, टैंक, आधुनिक सेंसर युक्त वाटर सप्लाई पंप, ग्रो लाइट्स सहित कई खर्च लगते हैं. ऐसे में चंदन कहते हैं कि अगर सरकार जिस तरह सामान्य खेतों में लगने वाले पॉली हाउस की लागत पर सब्सिडी देती है उसी तरह अगर घरों के छतों पर लगने वाले पॉली हाउस के लिए भी अनुदान दे तो हाइड्रोपोनिक तकनीक को बढ़ावा मिलेगा.
वास्तविक ऑर्गेनिक उत्पाद की गारंटी है हाइड्रोपोनिक तकनीकः इन दिनों कई स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ने की वजह खाने पीने की फसल, फल और सब्जियों में रसायन और उर्वरक के इस्तेमाल को बताया जा रहा है. ऐसे में आर्गेनिक खेती खूब चर्चा में है पर चंदन और उनके स्टार्टअप में जूनियर साइंटिस्ट का काम कर रहे यश, कंवलजीत जैसे युवा कहते हैं कि परंपरागत खेती से 100% ऑर्गेनिक उत्पाद की कल्पना तब तक नहीं की जा सकती जबतक एक बहुत बड़े भू-भाग में ऑर्गेनिक खेती नहीं की जाती हो. क्योंकि भले ही आप अपने खेत में रसायन, केमिकल युक्त खाद का इस्तेमाल ना करते हों पर अगल बगल के खेतों में उसका इस्तेमाल होगा तो कभी बारिश की पानी के साथ तो कभी छिड़काव के समय हवा के साथ रसायन के दुष्प्रभाव आपके खेत तक पहुँंच ही जाता है. ऐसे में आपके छत पर ग्रीन हाउस या पॉली हाउस में हाइड्रोपोनिक विधि से उपजायी साग, सब्जियां, फल शत-प्रतिशत ऑर्गेनिक होने की गारंटी देता है.
पानी में मिला न्यूट्रियंट्स ही है पौधों का भोजनः अब तक हम यह जानते थे कि मिट्टी से पौधों को पोषक तत्व मिलता हैं और इसलिए यह बेहद जरूरी होता है. अब वहीं न्यूट्रियंट्स पानी में डाल कर इस विधि से उगाया जाता है. बीज से पौधा तैयार करने में भी मिट्टी की जगह नारियल के फल से निकलने वाले रेशे के बुरादे का इस्तेमाल किया जाता है. आने वाले दिनों में जिस तरह खेत कम होते जा रहे हैं. शहरों में तो खाली जगह नहीं दिखती ऐसे में घर की छतों पर किचन फार्मिंग का यह स्वरूप भविष्य की तकनीक हो सकता है. ऐसा इसलिए कि इसका एक फायदा और है कि छतों पर सोलर प्लेट के साथ भी इसे लगाया जा सकता है यानी छतों का दोहरा लाभ. इसके अलावा एक्वापोनिक यानी पानी के जार में नीचे मछली पालन और ऊपर साग, सब्जी या फल सुंदरता के साथ साथ रसायन मुक्त आहार मिलेगा.