रांची: कहते हैं राजनीति में कोई दोस्त और कोई दुश्मन नहीं होता, समय और परिस्थिति के साथ राजनीति बदलती रहती है. कुछ ऐसी ही सियासत इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एंटी बीजेपी मुहिम के बाद चल पड़ी है. नीतीश कुमार के मित्र माने जाने वाले सरयू राय ने इस मुहिम पर तंज कसते हुए कहा है कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की बात करना बेमानी होगी ऐसे में एक राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस का यह मांग करना कि प्रधानमंत्री उनके दल से हो तो अनुचित नहीं है.
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उन्होंने कहा कि विपक्षी एकता में यदि प्रधानमंत्री के उम्मीदवारों का चयन होने लगेगा तो मतभेद होगा. यह विरोधाभासों का प्रबंधन कैसे होगा इसे नीतीश कुमार कैसे करा पाते हैं यह देखना होगा. इसलिए यह कवायद मेंढक को तौलने जैसा है. उन्होंने चिर परिचित अंदाज में कहा कि नीतीश कुमार जी ने बड़ा कदम उठाया है, ईश्वर उन्हें सफलता दे. मगर यह काम जितना आसान समझा जा रहा है उतना आसान नहीं है.
देश की जनता को एक बार फिर मौका मोदीजी को देना चाहिए: सरयू राय ने एंटी बीजेपी मुहिम की आलोचना करते हुए कहा है कि 3-5 का खेला के बजाय देश की जनता को एक बार फिर मोदी जी को मौका देना चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा विपक्षी एकता की चल रही कवायद पर सरयू राय ने कहा कि 1964 में दिग्गज नेता राममनोहर लोहिया और जनसंघ के पं. दीनदयाल उपाध्याय ने मिलकर कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी एकता का आह्वान किया इसका परिणाम यह हुआ कि केन्द्र में सरकार नहीं बदली मगर उत्तर भारत के राज्यों में पंजाब से लेकर बंगाल तक में सरकारें 1966 में बदल गई और बाद में जयप्रकाश जी ने कवायद की तो केन्द्र की सरकार बदल गई. ऐसे में यदि एक साथ कई कारक साथ होंगी तो एकता होगी मगर छोटे मन से नहीं होगी. नीतीश कुमार जिस तरह से बड़ा मन दिखा रहे हैं वैसा ही यदि अन्य लोग भी दिखायें तो शायद विपक्षी एकता हो जाय. मगर यह तीन -पांच का जो खेला है वह सामान्य नहीं है.