रांची: पुलिस ने राजधानी के ग्रामीण इलाकों से बाइक चुराने वाले एक बड़े गिरोह का खुलासा किया है. इस गिरोह के तीन सदस्यों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है और उनकी निशानदेही पर चोरी किए गए 20 बाइक भी बरामद हुए हैं. पिछले 5 सालों के दौरान यह पहली बार है जब रांची पुलिस ने 20 चोरी हुई बाइक बरामद किया गया है.
यह भी पढ़ें: Crime News Ranchi: रांची में पुलिसवाले के घर में चोरी, चोरों ने गहने और नगदी समेत लाखों की संपत्ति पर किया हाथ साफ
क्या है पूरा मामला: रांची पुलिस ने एक बड़े संगठित वाहन चोर गिरोह का भंडाफोड़ किया है. इस गिरोह के सदस्य के काम बंटे हुए थे. एक वाहन की चोरी करता था तो दूसरा उसे छिपाने का काम किया करता था, वहीं तीसरा उसे खपाने के लिए ग्राहकों की खोज किया करता था. पुलिस ने इस संगठित गिरोह के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार आरोपियों में राकेश अहीर, नीलांबर महतो उर्फ सांगा और अनुज महतो शामिल हैं. तीनों आरोपी रांची के बुंडू थाना क्षेत्र के रहने वाले हैं.
मामले का खुलासा करते हुए ग्रामीण एसपी नौशाद आलम ने बताया कि 25 मई को तमाड़ थाना क्षेत्र के भुइयांडीह चौक के पास पुलिस की ओर से वाहन चेकिंग अभियान चलाया जा रहा था. इस बीच तमाड़ की ओर से आ रहे एक बाइक सवार को मौजूद पुलिसकर्मियों ने रोकना चाहा, लेकिन पुलिस को देखकर बाइक सवार दो व्यक्ति भागने लगे. पुलिस के जवानों ने उसे खदेड़कर कुछ ही दूरी पर दबोच लिया. पूछताछ में दोनों आरोपियों ने पुलिस के सामने खुलासा किया कि वे जिस बाइक से जा रहे थे, वह चोरी का वाहन है, वे लोग उसे बेचने के लिए जा रहे थे. आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उनका गिरोह है, जिसमें सात सदस्य हैं. सभी सदस्यों के बीच काम बंटा हुआ है.
पश्चिम बंगाल और ओडिशा में खपाते थे चोरी के वाहन: गिरफ्तार अपराधियों ने पुलिस के सामने खुलासा किया है कि उनका गिरोह रांची और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों से बाइक की चोरी कर उसे पश्चिम बंगाल और ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में बेच देते हैं. चोरी के बाइक को बंगाल के पुरुलिया और ओडिशा के छोटे-छोटे गांव में घूम कर पांच से दस हजार रुपए में बेच देते हैं. आरोपियों ने पुलिस को यह भी जानकारी दी है कि वे चोरी के दर्जनों वाहनों को बंगाल और ओडिशा में खपा चुके हैं.
चोरी के दस दिन बाद करते हैं बिक्री: आरोपियों ने पुलिस को बताया कि बाइक चोरी करने के बाद गिरोह के अन्य दो सदस्यों को थमा देते हैं. वे दोनों सदस्य वाहन को अपने पास दस दिनों तक छिपाकर रखते थे. इस दौरान वे नंबर प्लेट बदल देते थे, फिर मौका पाकर उसे बेच देते थे. गिरोह के सदस्य वाहन चोरी से प्राप्त रुपए आपस में बराबर बांट लेते थे.