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वेटलैंड की घटती संख्या पर राज्यसभा सांसद ने जताई चिंता, कहा- जलाशयों को संरक्षित करना पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण - वेटलैंड

झारखंड में वेटलैंड की घटती संख्या पर राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने चिंता जताई है और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के जरिये बुधवार को यह मामला उठाया है.

Rajya Sabha MP expressed concern over dwindling Wetland number
राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार
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Published : Feb 5, 2020, 9:45 PM IST

रांची: झारखंड में जलाशयों, ताल- तलैयों, जलस्रोतों आदि की लगातार घटती संख्या पर राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने चिंता जतायी है और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के जरिये बुधवार को यह मामला उठाते हुए, जलाशयों के संरक्षण एवं उनका अतिक्रमण रोके जाने की मांग की है.

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क्या है मामला
स्पेस अप्लीकेशन सेंटर की मदद से झारखड सरकार द्वारा 2018 में करायी गयी गणना के आधार झारखंड में 'वेटलैंड' की कुल संख्या 5649 है. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में ऐसी भूमि लगभग 25 प्रतिशत है. इनमें से 10 से 12 प्रतिशत पर अतिक्रमण है, जो पारिस्थितिकीय संतुलन को चुनौती दे रही है. इन्हें संरक्षित रखने का प्रयास नहीं के बराबर हो रहा है, जिससे दिन- प्रतिदिन इनकी संख्या कम होती जा रही है.

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क्या है राज्यसभा सांसद का कहना
मीडीया से बातचीत के दौरान सांसद ने कहा कि राजधानी रांची वेटलैंड की बदहाली का सबसे बड़ा उदाहरण है. शहर की लगभग आधी आबादी को जलापूर्ति करने वाले गोंदा तथा हटिया डैम के इर्द-गिर्द जहां आबादी का फैलाव होता जा रहा है, वहीं हरमू और स्वर्णरेखा नदी के बड़े हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है. विकास के नाम पर दर्जनों तालाब भर दिए गए. इन वेटलैंड को भरकर भवन आदि बनाये जा चुके हैं. इनमें से कई सरकारी भवन हैं. तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में भू माफियाओं के अलावा सरकारी विभागों की भी भूमिका है. उन्होंने सरकार से तुरंत इस बिंदु पर विचार करने और राज्य सरकार को ऐसे वेटलैंड्स को चिन्हित करने का आदेश देने का आग्रह किया है. जहाँ अतिक्रमण हो रहा है. साथ ही उन्होंने ऐसे वेटलैंड्स को संरक्षित करने के लिए एक मास्टर प्लान बनाने का अनुरोध भी किया है.

रांची: झारखंड में जलाशयों, ताल- तलैयों, जलस्रोतों आदि की लगातार घटती संख्या पर राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने चिंता जतायी है और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के जरिये बुधवार को यह मामला उठाते हुए, जलाशयों के संरक्षण एवं उनका अतिक्रमण रोके जाने की मांग की है.

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क्या है मामला
स्पेस अप्लीकेशन सेंटर की मदद से झारखड सरकार द्वारा 2018 में करायी गयी गणना के आधार झारखंड में 'वेटलैंड' की कुल संख्या 5649 है. पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में ऐसी भूमि लगभग 25 प्रतिशत है. इनमें से 10 से 12 प्रतिशत पर अतिक्रमण है, जो पारिस्थितिकीय संतुलन को चुनौती दे रही है. इन्हें संरक्षित रखने का प्रयास नहीं के बराबर हो रहा है, जिससे दिन- प्रतिदिन इनकी संख्या कम होती जा रही है.

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क्या है राज्यसभा सांसद का कहना
मीडीया से बातचीत के दौरान सांसद ने कहा कि राजधानी रांची वेटलैंड की बदहाली का सबसे बड़ा उदाहरण है. शहर की लगभग आधी आबादी को जलापूर्ति करने वाले गोंदा तथा हटिया डैम के इर्द-गिर्द जहां आबादी का फैलाव होता जा रहा है, वहीं हरमू और स्वर्णरेखा नदी के बड़े हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है. विकास के नाम पर दर्जनों तालाब भर दिए गए. इन वेटलैंड को भरकर भवन आदि बनाये जा चुके हैं. इनमें से कई सरकारी भवन हैं. तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में भू माफियाओं के अलावा सरकारी विभागों की भी भूमिका है. उन्होंने सरकार से तुरंत इस बिंदु पर विचार करने और राज्य सरकार को ऐसे वेटलैंड्स को चिन्हित करने का आदेश देने का आग्रह किया है. जहाँ अतिक्रमण हो रहा है. साथ ही उन्होंने ऐसे वेटलैंड्स को संरक्षित करने के लिए एक मास्टर प्लान बनाने का अनुरोध भी किया है.

Intro:रांची। प्रदेश से राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने झारखण्ड में वेटलैंड्स यानि जलाशयों, ताल – तलैयों, जलस्रोतों आदि की लगातार घटती संख्या पर चिंता जतायी है। राज्यसभा में विशेष उल्लेख के जरिये बुधवार को यह मामला उठाते हुए उन्होंने जलाशयों के संरक्षण एवं उनका अतिक्रमण रोके जाने की मांग की है।
पोद्दार ने कहा कि वेटलैंड्स यानि जलाशयों को संरक्षित करना पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये 'वेटलैंड' सूखे की स्थिति में जहां पानी को बचाने में मदद करते हैं, वहीं बाढ़ के हालात में यह जलस्तर को कम करने व सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में मददगार होते हैं। 'वेटलैंड' वन्य प्राणियों के लिए फीडिंग (भोजन), ब्रीडिंग (प्रजनन) ड्रिंकिंग (पेय) के स्रोत भी हैं।


Body:उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर स्पेस अप्लीकेशन सेंटर की मदद से झारखण्ड सरकार द्वारा 2018 में करायी गयी गणना के आधार पर झारखंड में 'वेटलैंड' की कुल संख्या 5649 है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में ऐसी भूमि लगभग 25 प्रतिशत है। इनमें से 10 से 12 प्रतिशत पर अतिक्रमण है, जो पारिस्थितिकीय संतुलन को चुनौती दे रही है। इन्हें संरक्षित रखने का प्रयास नहीं के बराबर हो रहा है।
।Conclusion:सांसद ने कहा कि राजधानी रांची वेटलैंड की बदहाली का सबसे बड़ा उदाहरण है। शहर की लगभग आधी आबादी को जलापूर्ति करने वाले गोंदा तथा हटिया डैम के इर्द-गिर्द जहां आबादी का फैलाव होता जा रहा है, वहीं हरमू और स्वर्णरेखा नदी के बड़े हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है। विकास के नाम पर दर्जनों तालाब भर दिए गए। इन वेटलैंड को भरकर भवन आदि बनाये जा चुके हैं| इनमें से कई सरकारी भवन हैं| यानी तालाबों का अस्तित्व समाप्त करने में भूमाफियाओं के अलावा सरकारी विभागों की भी भूमिका है| यह स्थिति तब है, जबकि 'वेटलैंड' (आ‌र्द्र भूमि) एरिया के अंतिम छोर से कम से कम 200 मीटर की परिधि में किसी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबंध है, ऐसे में जैव विविधता का हश्र क्या होगा, इसकी कल्पना भी भयावह है|
उन्होंने सरकार से तुरंत इस बिंदु पर विचार करने और राज्य सरकार को ऐसे वेटलैंड्स को चिन्हित करने का आदेश देने का आग्रह किया है जहाँ अतिक्रमण हो रहा है। साथ ही, उन्होंने ऐसे वेटलैंड्स को संरक्षित करने के लिए एक मास्टर प्लान बनाने का अनुरोध भी किया है
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