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Jharkhand News: रामगढ़ उपचुनाव में नहीं चला 1932 का खतियानी फार्मूला, सरकार की नीयत पर सदन में भी उठे सवाल

रामगढ़ उपचुनाव में 1932 खतियान का फार्मूला नहीं चला. वहीं सरकार के अपनों ने भी कई सवाल उठाए हैं. सदन में भी खतियानी नीति पर सरकार की नीयत को लेकर सवाल उठे. जिसका जवाब देने में सरकार पूरी तरह से असमर्थ दिखी.

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Published : Mar 2, 2023, 10:23 PM IST

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रांचीः रामगढ़ उपचुनाव में 23 में 32 वाले फार्मूले से सीएम हेमंत सोरेन कांग्रेस को फतह दिलाना चाहते थे लेकिन 2023 में उनका 32 वाला पूरा फार्मूला ही फेल हो गया. बात सड़क पर उठी थी 1932 वाले खतियान से हमने झारखंड की जनता को बहुत कुछ दिया है. लेकिन जब बात सदन में पहुंची तो सरकार को जवाब देना भारी पड़ गया. क्योंकि लंबोदर महतो ने जिस तरीके से बात उठाई और साफ तौर पर सरकार पर आरोप लगा दिया कि राज्यपाल के अभिभाषण में 1932 आधारित खतियान की तो चर्चा ही नहीं की गई तो आखिर हेमंत सोरेन किसको ठगना चाह रहे हैं.

रामगढ़ के उपचुनाव में हुई हार के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि रामगढ़ की जनता ने यह मान लिया कि 1932 आधारित खतियान में कोई दम नहीं है. नियोजन नीति की भी बात जोरों पर थी. युवा सड़क के किनारे खड़ा होकर सरकार की निगेहबानी की टकटकी लगाए हुए हैं कि साहब का कोई पैगाम आएगा तो शायद घर पर दो रोटी कमाने का पैसा मिल जाए. यह नीतियां भी जमीन पर नहीं दिखी तो शायद युवा भी नाराज हो गए, लेकिन अब राजनीति है वह तो होगी सवाल यही तक नहीं रुका.

रामगढ़ में लगातार बढ़ते क्राइम को लेकर कांग्रेस विधायक ने सवाल उठाए. अपने विधायक प्रतिनिधि की हत्या बड़कागांव विधायक अंबा प्रसाद ने अपनी ही सरकार पर कानून व्यवस्था का भी आरोप लगाया था, उन्होंने कहा कि झारखंड में तो 60 40 का का खेल चल रहा है.

चुनौती एक नहीं कई थी हेमंत सोरेन मंच से बात को जरूर कह रहे थे लेकिन उनके लोगों को यह भरोसा नहीं हो रहा था कि क्या सचमुच यह काम होगा भी, क्योंकि उनके विधायक ने कहा कि खेल 60- 40 है, 1932 आधारित खतियान सदन में रखा नहीं गया. राज्यपाल के अभिभाषण में कुछ दिखा नहीं. अब जो रिजल्ट आया है उससे एक बात तो साफ है कि बहुत साफगोई से राजनीति करने की बात करने वाले लोग भी जनता के बीच ईमानदारी से गए नहीं थे और शायद यही वजह है कि रामगढ़ की जनता ने उस दावे पर भरोसा नहीं किया.

सोचना झारखंड मुक्ति मोर्चा को है जोड़ना बीजेपी को है इसमें क्या चीजें ऐसी जोड़ी जाएं. यह 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है, वह फाइनल में अपनों के साथ उनकी झोली में आकर गिर जाए. ताकि सरकार बनाने और विकास करने का हर दावा उनके अनुसार सही हो जाए. लेकिन जनता कितना मानेगी यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा कि वादों का क्या असर होता है. वह 2023 के चुनाव में फेल हुए 32 वाले खतियान का एक फार्मूला तो जरूर सभी राजनीतिक दलों को मिल गया है.

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रांचीः रामगढ़ उपचुनाव में 23 में 32 वाले फार्मूले से सीएम हेमंत सोरेन कांग्रेस को फतह दिलाना चाहते थे लेकिन 2023 में उनका 32 वाला पूरा फार्मूला ही फेल हो गया. बात सड़क पर उठी थी 1932 वाले खतियान से हमने झारखंड की जनता को बहुत कुछ दिया है. लेकिन जब बात सदन में पहुंची तो सरकार को जवाब देना भारी पड़ गया. क्योंकि लंबोदर महतो ने जिस तरीके से बात उठाई और साफ तौर पर सरकार पर आरोप लगा दिया कि राज्यपाल के अभिभाषण में 1932 आधारित खतियान की तो चर्चा ही नहीं की गई तो आखिर हेमंत सोरेन किसको ठगना चाह रहे हैं.

रामगढ़ के उपचुनाव में हुई हार के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि रामगढ़ की जनता ने यह मान लिया कि 1932 आधारित खतियान में कोई दम नहीं है. नियोजन नीति की भी बात जोरों पर थी. युवा सड़क के किनारे खड़ा होकर सरकार की निगेहबानी की टकटकी लगाए हुए हैं कि साहब का कोई पैगाम आएगा तो शायद घर पर दो रोटी कमाने का पैसा मिल जाए. यह नीतियां भी जमीन पर नहीं दिखी तो शायद युवा भी नाराज हो गए, लेकिन अब राजनीति है वह तो होगी सवाल यही तक नहीं रुका.

रामगढ़ में लगातार बढ़ते क्राइम को लेकर कांग्रेस विधायक ने सवाल उठाए. अपने विधायक प्रतिनिधि की हत्या बड़कागांव विधायक अंबा प्रसाद ने अपनी ही सरकार पर कानून व्यवस्था का भी आरोप लगाया था, उन्होंने कहा कि झारखंड में तो 60 40 का का खेल चल रहा है.

चुनौती एक नहीं कई थी हेमंत सोरेन मंच से बात को जरूर कह रहे थे लेकिन उनके लोगों को यह भरोसा नहीं हो रहा था कि क्या सचमुच यह काम होगा भी, क्योंकि उनके विधायक ने कहा कि खेल 60- 40 है, 1932 आधारित खतियान सदन में रखा नहीं गया. राज्यपाल के अभिभाषण में कुछ दिखा नहीं. अब जो रिजल्ट आया है उससे एक बात तो साफ है कि बहुत साफगोई से राजनीति करने की बात करने वाले लोग भी जनता के बीच ईमानदारी से गए नहीं थे और शायद यही वजह है कि रामगढ़ की जनता ने उस दावे पर भरोसा नहीं किया.

सोचना झारखंड मुक्ति मोर्चा को है जोड़ना बीजेपी को है इसमें क्या चीजें ऐसी जोड़ी जाएं. यह 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है, वह फाइनल में अपनों के साथ उनकी झोली में आकर गिर जाए. ताकि सरकार बनाने और विकास करने का हर दावा उनके अनुसार सही हो जाए. लेकिन जनता कितना मानेगी यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा कि वादों का क्या असर होता है. वह 2023 के चुनाव में फेल हुए 32 वाले खतियान का एक फार्मूला तो जरूर सभी राजनीतिक दलों को मिल गया है.

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