रांची: रांची नगर निगम की ओर से स्वच्छोत्सव कार्यक्रम 2023 के तहत बुधवार (29 मार्च) को "मशाल जुलूस" निकाला गया. इसका उदेश्य रांची शहर को सुंदर और स्वच्छ रखने के प्रति लोगों को जागरूक करना था. लेकिन इस जुलूस के माध्यम से निगम खुद प्रदूषण फैला रहा था. जिस पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है. निगम ने प्रदूषण फैलाकर रांची के लोगों के बीच स्वच्छता का संदेश दिया.
मशाल जुलूस पर ये है पर्यावरण विद की राय: रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भ शास्त्र के प्रोफेसर और पर्यावरण विद डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने कहा कि पहले से ही रांची में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है. ऐसे में स्वच्छता जागरूकता के नाम मशाल जुलूस निकालने की जगह निगम को कुछ और सोचना चाहिए था. नुक्कड़ नाटक, बिना प्रदूषण वाले LED लाइट या कोई अन्य प्रदूषण फ्री संसाधनों का इस्तेमाल किया जा सकता था. डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने कहा कि नेक और बढ़िया काम के लिए मशाल जुलूस निकालने की अवधारणा पर्यावरण के लिए तो नुकसानदेह है.
निगम की हेल्थ ऑफिसर ने सफाई में ये कहा: मशाल से निकलते काले और गंदे धुएं की गुबार के बीच स्वच्छ रांची के नारे लगाए गए. निगम की हेल्थ ऑफिसर डॉ किरण चंदेल ने कहा कि रांची को स्वच्छ बनाने के संदेश को घर-घर पहुंचाने के लिए यह मशाल जुलूस निकाला गया. रांची को स्वच्छ और सुंदर शहर बनाने के लिए "स्वच्छोत्सव कार्यक्रम 2023" के आयोजन को रांची नगर निगम का बेहतर प्रयास कहा जा सकता है. लेकिन मशाल जुलूस के रूप में जागरूकता अभियान में मशाल के धुएं से होने वाले वायु प्रदूषण पर निगम के अधिकारियों का ध्यान नहीं गया. ईटीवी भारत ने यह सवाल जब रांची नगर निगम के हेल्थ अफसर डॉ किरण चंदेल से किया तो उन्होंने कहा कि काफी कम संख्या में मशाल को शामिल किया गया है ताकि प्रदूषण कम से कम हो. उन्होंने कहा कि मशाल जलाकर जुलूस निकालना, एक प्रतीकात्मक आयोजन है ताकि राजधानीवासी स्वच्छता के प्रति जागरूक हों.