रांची: तृतीय-चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों की नितुक्ति को लेकर विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्यों ने एक बार फिर विरोध दर्ज कराया है. मामले को लेकर सिंडिकेट के सदस्यों ने सीधे तौर पर कहा है कि विश्वविद्यालय एक्ट के अनुसार कर्मचारी नियुक्ति का अधिकार कुलपति में निहित है. ऐसे में एक सरकारी आदेश से एक्ट में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. इसके लिए विधान सभा पटल पर बात रखनी होगी चर्चा होगी प्रस्ताव पारित किए जाएंगे. फिर राज्यपाल से अनुमति लेनी होगी. तब जाकर इस एक्ट में बदलाव किया जा सकता है.
सीनेट और सिंडिकेट के सदस्य
वहीं, रांची विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के सदस्यों के अलावा राज्य के कई विश्वविद्यालयों से जुड़े सीनेट और सिंडिकेट के सदस्य इस पूरे मामले को लेकर मुखर हो गए हैं. सदस्यों की मानें तो राज्य सरकार बिना किसी नियम के विश्वविद्यालयों के अधिकारों का हनन कर रही है. तृतीय और चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों की नियुक्ति विश्वविद्यालय एक्ट के अनुसार होता है और इसका पूरा अधिकार कुलपति में निहित है. ऐसे में सरकारी आदेश से एक्ट में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. इसके लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित करना होगा, फिर राज्यपाल सह विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति से निर्देश लेना होगा. तब जाकर इस नियम को बदला जा सकता है. लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. उच्च शिक्षा विभाग की ओर से एक लेटर जारी कर फरमान सुना दिया गया है. जो विश्वविद्यालय प्रशासन और सिंडिकेट- सीनेट के सदस्य हरगिज बर्दाश्त नहीं करेंगे. मामले को लेकर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को भी अवगत कराया गया है. राज्य सरकार हटधर्मिता छोड़े और विश्वविद्यालयों के अधिकारों का हनन करना बंद करें.
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एक टीम का किया गया गठन
विश्वविद्यालय की ओर से भी एक कमेटी गठित की गई है .छह सदस्तीय यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पिछले 10 वर्षों से विश्वविद्यालय में अनुबंध पर कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर और तृतीय वर्ग कर्मचारियों की सेवा समंजन के निर्णय का अध्ययन करेगी. फिर पूरा रिपोर्ट विश्वविद्यालय प्रबंधन के साथ-साथ राजभवन में भी सौंपा जाएगा.