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झारखंड में नई आपदा दे रही है दस्तक, नीचे जा रहा है जलस्तर, आने वाली पीढ़ी नहीं करेगी माफ, क्या है उपाय - Central Ground Water Board

झारखंड में पेयजल समस्या विकराल होती जा रही है. अपार्टमेंट कल्चर की वजह से धड़ल्ले से हो रही डीप बोरिंग की वजह से झारखंड का भू-गर्भ जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है. अप्रैल के महीनें में ही राजधानी समेत कई शहरों के बोरिंग सूखने लगे हैं. झारखंड में पानी की समस्या और उससे निपटने के क्या हैं उपाय जानकारी दे रहे हैं पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी.

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झारखंड में पेयजल समस्या
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Published : Apr 6, 2022, 12:26 PM IST

Updated : Apr 6, 2022, 1:37 PM IST

रांची: झारखंड का अधिकांश भू-भाग पठारी है. यह राज्य खनिज संसाधनों के साथ-साथ जल, जंगल और जमीन के लिए जाना जाता है. लेकिन कंक्रीट के जंगल के विस्तार की वजह से कई बुनियादी समस्याएं उभरने लगी हैं. इसमें सबसे बड़ी समस्या है "पेयजल " की. अपार्टमेंट कल्चर की वजह से धड़ल्ले से डीप बोरिंग किए जा रहे हैं. नतीजा है कि झारखंड का भू-गर्भ जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है.सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के मुताबिक पिछले आठ माह में रांची का जल स्तर पांच मीटर तक नीचे चला गया है. अप्रैल के महीनें में ही राजधानी समेत कई शहरों के बोरिंग सूखने लगे हैं. अब सवाल है कि इस गंभीर समस्या का समाधान क्या है. झारखंड के चर्चित पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी ने रिसर्च रिपोर्ट और अपने अनुभव के हवाले से जलस्तर को मेंटेन करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं.

ये भी पढ़ें:- गर्मी को लेकर रांची नगर निगम की तैयारी, 200 से अधिक जगहों पर टैंकर से पहुंचाया जाएगा पानी

धरती के सिस्टम को समझना जरूरी: पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि सरकार के स्तर पर सरकारी कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेसिंग सिस्टम लगाया जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है, इस बात को समझना कि रांची की धरती के नीचे का रॉक सिस्टम कैसा है. आम तौर पर झारखंड में 10 फीट के बाद पत्थर मिलना शुरू हो जाता है. इसकी वजह से बारिश का पानी रिचार्ज नहीं पाता है. जबकि बिहार और बंगाल में मिट्टी की मोटी परत वाटर रिचार्ज कराने में भूमिका निभाती हैं. इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कुआं और तालाब का निर्माण कराना.

देखिए पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी के साथ खास बातचीत

कंक्रीट के जंगल को रोकना होगा: नीतीश प्रियदर्शी ने कहा कि फौरी तौर पर हम सभी को अपने घर के आसपास की जमीन को कंक्रिट में तब्दील करने से रोकना होगा. उन्होंने कहा कि बोलने को तो कह दिया जाता है कि हर घर के स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होना चाहिए. लेकिन यह बिल्कुल व्यवहारिक नहीं है. उन्होने कहा कि इसके लिए सेप्टिक टैंक के शॉकपीट से कम से कम 30 फीट की दूरी होनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो बहुत जल्द शॉकपीट का पानी बोरिंग तक पहुंचकर जहरीला बन जाएगा.चूंकि जमीन की किल्लत है इसलिए व्यक्तिगत स्तर पर यह संभव नहीं है. इसके लिए जरूरी है कम्यूनिटी रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर फोकस करना. इसके अलावा सरकार को वाटर सप्लाई सिस्टम को दुरूस्त करना होगा. ऐसा होने से बोरिंग पर निर्भरता कम होगी.

रांची में जल संरक्षण बेहद जरूरी: रांची के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां के नगर निगम क्षेत्र की आबादी 10.56 लाख थी. इसके लिए हर दिन 60 एमजीडी जलापूर्ति की जरूरत होती है. लेकिन आज की तारीख में औसतन 50 एमजीडी जलापूर्ति हो रही है. आप समझ सकते हैं कि पिछले 11 वर्षों में रांची नगर निगम की आबादी कितनी बढ़ी होगी. लिहाजा, जल संरक्षण को लेकर अब अगर नहीं चेता गया तो आने वाला समय बेहद तकलीफदेह साबित होगा.

रांची: झारखंड का अधिकांश भू-भाग पठारी है. यह राज्य खनिज संसाधनों के साथ-साथ जल, जंगल और जमीन के लिए जाना जाता है. लेकिन कंक्रीट के जंगल के विस्तार की वजह से कई बुनियादी समस्याएं उभरने लगी हैं. इसमें सबसे बड़ी समस्या है "पेयजल " की. अपार्टमेंट कल्चर की वजह से धड़ल्ले से डीप बोरिंग किए जा रहे हैं. नतीजा है कि झारखंड का भू-गर्भ जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है.सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के मुताबिक पिछले आठ माह में रांची का जल स्तर पांच मीटर तक नीचे चला गया है. अप्रैल के महीनें में ही राजधानी समेत कई शहरों के बोरिंग सूखने लगे हैं. अब सवाल है कि इस गंभीर समस्या का समाधान क्या है. झारखंड के चर्चित पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी ने रिसर्च रिपोर्ट और अपने अनुभव के हवाले से जलस्तर को मेंटेन करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं.

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धरती के सिस्टम को समझना जरूरी: पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि सरकार के स्तर पर सरकारी कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेसिंग सिस्टम लगाया जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है, इस बात को समझना कि रांची की धरती के नीचे का रॉक सिस्टम कैसा है. आम तौर पर झारखंड में 10 फीट के बाद पत्थर मिलना शुरू हो जाता है. इसकी वजह से बारिश का पानी रिचार्ज नहीं पाता है. जबकि बिहार और बंगाल में मिट्टी की मोटी परत वाटर रिचार्ज कराने में भूमिका निभाती हैं. इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कुआं और तालाब का निर्माण कराना.

देखिए पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी के साथ खास बातचीत

कंक्रीट के जंगल को रोकना होगा: नीतीश प्रियदर्शी ने कहा कि फौरी तौर पर हम सभी को अपने घर के आसपास की जमीन को कंक्रिट में तब्दील करने से रोकना होगा. उन्होंने कहा कि बोलने को तो कह दिया जाता है कि हर घर के स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होना चाहिए. लेकिन यह बिल्कुल व्यवहारिक नहीं है. उन्होने कहा कि इसके लिए सेप्टिक टैंक के शॉकपीट से कम से कम 30 फीट की दूरी होनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो बहुत जल्द शॉकपीट का पानी बोरिंग तक पहुंचकर जहरीला बन जाएगा.चूंकि जमीन की किल्लत है इसलिए व्यक्तिगत स्तर पर यह संभव नहीं है. इसके लिए जरूरी है कम्यूनिटी रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर फोकस करना. इसके अलावा सरकार को वाटर सप्लाई सिस्टम को दुरूस्त करना होगा. ऐसा होने से बोरिंग पर निर्भरता कम होगी.

रांची में जल संरक्षण बेहद जरूरी: रांची के हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां के नगर निगम क्षेत्र की आबादी 10.56 लाख थी. इसके लिए हर दिन 60 एमजीडी जलापूर्ति की जरूरत होती है. लेकिन आज की तारीख में औसतन 50 एमजीडी जलापूर्ति हो रही है. आप समझ सकते हैं कि पिछले 11 वर्षों में रांची नगर निगम की आबादी कितनी बढ़ी होगी. लिहाजा, जल संरक्षण को लेकर अब अगर नहीं चेता गया तो आने वाला समय बेहद तकलीफदेह साबित होगा.

Last Updated : Apr 6, 2022, 1:37 PM IST
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