रांचीः छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है. सूर्योपासना का यह लोक पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में रहने वाले लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं.
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मान्यताओं के अनुसार बिहार छठ पूजा वैदिक काल से मनाया जा रहा है जो अब बिहार की संस्कृति बन चुका है. इस पूजा को महिलाओं के साथ साथ पुरुष भी करते हैं. पंडितों की मानें तो छठ महापर्व 4 दिनों का होता है. दीपावली के छठे दिन से शुरू होने इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इस दिन छठ व्रत करने वाली महिलाएं और पुरूष अरवा चावल, सेंधा नमक और घी से बने कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. दूसरे दिन व्रती दिनभर अन्न-जल त्याग कर सूर्यास्त के बाद खीर बनाकर पूजा करते है और प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहा जाता है. तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस महापर्व का समापन होता है.
आदिकाल से छठ पूजा की परंपरा
छठ पूजा की कई पौराणिक कथा है. रांची स्थित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी अभिषेक शास्त्री बताते हैं कि छठ पर्व की शुरुआत आदिकाल में शुरू हुई है. प्राचीन कथाओं के अनुसार भगवान सूर्य की पूजा सबसे पहले राजा सत्राजित ने संतान प्राप्ति के लिए किया था. इसके बाद उनकी पत्नी मालवती को पुत्र की प्राप्ति हुई थी. दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार प्रियवद नाम के राजा को भी कोई संतान नहीं था, तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञ के लिए बनाई गई खीर दी थी. इसके बाद उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन राजा प्रियवद की पत्नी मालनी को मृत पुत्र पैदा हुआ. राजा प्रियवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे. इसी दौरान ब्रह्मा की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और राजा प्रियवद से कहा कि यदि तुम मेरी पूजा करोंगे और लोगों को भी पूजा करने के लिए प्रेरित करोगे, तो तुम्हारा पुत्र जीवित होगा. इसके बाद राजा प्रियवद ने भी देवी षष्ठी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को यह व्रत किया.
सूर्य देव की पूजा से पूरी होती है इच्छा
पंडित जितेंद्र जी महाराज बताते हैं कि छठ पर्व का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है. इसकी वजह है कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब अपने धनबल का दुरुपयोग कर स्त्रियों के साथ गलत व्यवहार करता था. एक दिन सांब ने एक ऋषि का अपमानित किया. इसके बाद ऋषि ने उन्हें श्राप दिया, जिससे वह कुष्ठ बीमारी से ग्रस्त हो गया. सांब को जब अपनी गलतियों का एहसास हुआ, तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को क्षमा करते हुए सूर्य की आराधना करने का सुझाव दिया. इसके बाद शाकलदीपी ब्राह्मण से अनुष्ठान कराया.
भगवान सूर्य के उपासक थे कर्ण
डोरंडा मंदिर के पुजारी पंडित अरविंद पांडेय बताते हैं कि लंका से माता सीता को आजाद कराने के बाद रामराज्य की स्थापना कार्तिक शुक्ल पक्ष में ही हुई थी. इस दौरान सूर्य देव की आराधना की गई थी. वहीं, शास्त्रों के जानकार बताते हैं कि सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी. कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था, जिससे वह महान योद्धा बना और आज भी छठ पूजा में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है. उन्होंने कहा कि छठ व्रति ॐ घृणिं सूर्याय नमः, ॐ घृणिं सूर्य: आदित्य: और ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय आदि मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं.