रांची: झारखंड की राजधानी रांची कभी बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में जानी जाती थी. गर्मी के मौसम में लोग झारखंड में छुट्टी बिताने आया करते थे. क्योंकि यहां की हवा स्वच्छ होती थी और लोग स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए यहां आते थे. लेकिन वर्तमान समय में यहां के बाशिंदे प्रदूषण के घुटन में जीने को मजबूर है.
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रांची का मौसम, क्या बात है, वो पहाड़ी और हरियाली के बीच से आती शुद्ध हवा. जिसकी गोद में थोड़ी देर रहने पर ही तरावट आ जाती थी. ये बात आज की नहीं, 20-25 साल पुरानी है. आज तो आलम ऐसा है कि ग्रीष्मकालीन राजधानी रांची अब देश के प्रदूषित शहरों में शुमार होने लगी है. यहां का वातावरण दिन-प्रतिदिन प्रदूषित हो रहा है. इसका मुख्य कारण है अनियमितता के साथ शहरीकरण का विस्तार.
राजधानी रांची के पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि आज से लगभग 20 से 25 साल पहले रांची के मौसम की चर्चा पूरे देश में हुआ करती थी. देश के कोने-कोने से बड़े-बड़े लोग रांची आकर गर्मी की छुट्टियां बिताते थे, अब राजधानी के बाशिंदे ही शहर की गर्मी से परेशान हैं.
पर्यावरणविद की मानें तो झारखंड का एयर क्वालिटी इंडेक्स आज की तारीख में 100 से 150 के आंकड़े को पार कर गया है, जबकि एयर क्वालिटी इंडेक्स का बेहतर मानक 70 से 80 तक ही माना जाता है. झारखंड के साथ-साथ राजधानी रांची में लॉकडाउन के वक्त हवा काफी साफ हो गई थी. शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 30 से 40 के करीब था, जो एक अच्छा संकेत था. लेकिन जैसे-जैसे अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई, हालात दोबारा खराब होते गए.
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शहर के बढ़ते प्रदूषण को लेकर उन्होंने बताया कि रांची में जिस तरह से कायदे कानून को ताक पर रखकर शहरीकरण का विस्तार किया जा रहा है. इससे पर्यावरण को सीधा नुकसान पहुंच रहा है. लगातार बढ़ रही ट्रैफिक से वायू और ध्वनि प्रदूषण में भी बढ़ोतरी हो रही है.
इसके अलावा राजधानी रांची की ट्रैफिक व्यवस्था भी बेहतर नहीं है. कई ऐसे सिग्नल हैं जहां पर लंबे समय तक गाड़ियों का ठहराव होता है. गाड़ियों के ज्यादा देर तक खड़े रहने से उससे निकलने वाली जहरीली गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड शहर की हवा में जहर घोल रहे हैं.
आज से कुछ वर्ष पहले तक रांची में सैकड़ों तालाब हुआ करते थे, जो जलचक्र के माध्यम से शहर के तापमान को नियंत्रित रखने में सहायक सिद्ध होते थे. लेकिन वर्तमान समय में शहर के लगभग सारे तालाब को भर दिया गया है, वहां पर ऊंची-ऊंची इमारतें बना दी गई हैं. इस वजह से शहर में गर्मी तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है.
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पर्यावरण पर काम कर रहे कार्यकर्ता रवि कुमार बताते हैं कि झारखंड में पर्यावरण के दूषित होने की मुख्य वजह बेतरतीब शहरीकरण. राजधानी में शहरीकरण के विस्तार के लिए पेड़ों का कटाव बड़े स्तर पर किया जा रहा है, जो अमानवीय है. इसके अलावा जो भवन निर्माण कराए जा रहे हैं, उनमें जल संरक्षण के मानदंड की अनदेखी की जा रही है. साथ ही साथ बिल्डिंग्स में जल संरक्षण और वाटर पासिंग की भी कोई सुविधा नहीं है. जिस वजह से लोग दूषित वातावरण में जीने को मजबूर और विवश हैं.
मौसम विभाग के निदेशक अभिषेक आनंद बताते हैं कि वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण की वजह से ही मौसम में भी बदलाव आया है. आज से कुछ वर्ष पहले रांची में प्रतिदिन नियमित रूप से बारिश होती थी. लेकिन आज की तारीख में बारिश तो होती है, पर नियमित रूप से नहीं हो पाती. जिससे वातावरण को दूषित करने वाले डस्ट समाप्त नहीं हो पाते हैं. वो धूल-कण हवा में ही घूमते रहते हैं जो लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डालता है.
इसको लेकर राज्य के पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक सरयू राय बताते हैं कि सरकार की लापरवाही से शहर में अनियमितता के साथ इमारतें बन रही हैं. बड़े-बड़े बिल्डर नियमों को ताक पर रखकर तालाब, पेड़ और जल संरक्षण को नजरअंदाज करते हुए भवन निर्माण कर रहे हैं. इसका सीधा असर राजधानी के वातावरण पर पढ़ रहा है. कंक्रीट का जंगल खड़ा करने के लिए शहर की हरियाली को खत्म किया जा रहा है. उन्होंने सरकार से अपील करते हुए कहा कि ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई करें ताकि पर्यावरण को दूषित करने से लोग डरें और वातावरण का संरक्षण हो सके.
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वर्ष 2018 में एक संस्था की ओर से रांची को देश के प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया. धनबाद, झरिया, जमशेदपुर के बाद रांची का नाम प्रदूषित शहरों में शामिल रहा. जिस तरह पिछले 10 साल में राजधानी की आबादी बढ़ी है, इससे पर्यावरण पर भी खासा असर देखने को मिल रहा है. पिछले 10 साल में लगभग सात लाख की आबादी बढ़ गयी है. इस वजह से प्राकृतिक संसाधन कम होते गए है जो खतरे को सीधा दावत दे रहा है. जरूरत है पर्यावरण को दूषित करने वाले लोगों पर सरकार नकेल कसे ताकि राजधानी रांची फिर से अपने बेहतरीन मौसम और हरियाली के नाम से जाना जा सके.