रांचीः झारखंड में सियासी संकट गहराता जा रहा है. सीएम पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के अलावा भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. सरकार तमाम विकल्पों पर मंथन कर रही है. सरकार के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं. लेकिन सवाल है कि सरकार और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के बीच किन मसलों पर मतभेद हुए जो समय के साथ मनभेद में बदलते चले गए. ऐसा क्या कुछ होता गया, जिसकी वजह से विवादों की तलवार और धारदार होती चली गई.
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विवाद की शुरुआतः 2019 के चुनावी नतीजे झामुमो नेतृत्व वाले गठबंधन के पक्ष में आए. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले खुद हेमंत सोरेन आशीर्वाद लेने बाबूलाल मरांडी के घर गए. लेकिन सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही बाबूलाल मरांडी ने अपनी जेवीएम पार्टी की भाजपा में विलय की घोषणा कर दी. उन्हें पार्टी ने विधायक दल का नेता भी घोषित कर दिया. लेकिन यह मामला कोर्ट से लेकर स्पीकर के न्यायाधीकरण तक जा पहुंचा. उस समय से दलबदल मामले में सुनवाई चल रही है. लेकिन सदन के भीतर अभी भी बाबूलाल मरांडी एक जेवीएम विधायक की हैसियत में हैं.
इस मामले को सदन के हर सेशन के दौरान भाजपा विधायक उठाते रहते हैं. आलम यह है कि आज तक सदन की कार्यवाही बिना नेता प्रतिपक्ष के ही चल रही है. इसकी वजह से मुख्य सूचना आयुक्त का पद रिक्त पड़ा हुआ है. सदन में बाबूलाल मरांडी लाचार नजर आते हैं. जब भी नेता प्रतिपक्ष की मान्यता की बात होती है तो विपक्ष किसी और को नेता विधायक दल बनाने का सुझाव देकर चुटकी लेता है. लाजमी है कि यह बात भाजपा को सुई की तरह चुभती है.
दूसरा बड़ा विवादः हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के साथ ही डीवीसी के बकाया भुगतान को लेकर विवाद की शुरू हो गया. केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2020 में डीवीसी की बकाया राशि का हवाला देकर झारखंड सरकार के आरबीआई खाते से 1417.50 करोड़ की राशि निकाल ली. इसके लिए पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के एग्रीमेंट का हवाला दिया गया. यह झटका तब लगा जब राज्य सरकार कोविड के पहले लॉक डाउन से उबरने की कोशिश कर रही थी. लिहाजा, मामला इस कदर गरमाया कि मुख्यमंत्री ने भी चेतावनी दे डाली कि ऐसे ही चलता रहा तो कोयले की ढुलाई रोक दी जाएगी. हालांकि राज्य सरकार की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए केंद्र सरकार समय-समय पर राज्य के आरबीआई खाते से किस्त निकालती रही. इस घटना से राज्य सरकार को लोगों की सहानुभूति भी मिली.
तीसरा विवादः टीएसी के अधिकार क्षेत्र में दखल-झारखंड सरकार ने ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल यानी टीएसी में सदस्यों के मनोनयन में राज्यपाल के अधिकार को छीन लिया. टीएसी नियमावली 2021 को लागू कर मुख्यमंत्री को पदेन अध्यक्ष का अधिकार दे दिया गया. इसको लेकर भाजपा की नाराजगी अभी तक कम नहीं हुई है. हालांकि यह व्यवस्था पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के समय लागू हुई थी. इसके राजनीतिक जख्म अभी तक गहरे हैं. हालांकि झामुमो की दलील आई कि टीएसी का गठन करना कैबिनेट का काम है. टीएसी राज्यपाल की एक एडवाइजरी कमेटी है. टीएसी के सभी निर्णय राज्यपाल को ही जाएंगे. उनके अधिकार क्षेत्र में कोई कटौती नहीं हुई है.
चौथा विवाद - मेयर के अधिकार में कटौती - रांची नगर निगम की मेयर और नगर आयुक्त के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर लगातार हो रहे टकराव के बीच सरकार ने महाधिवक्ता के मंतव्य के हवाले से मेयर के अधिकार क्षेत्र में कटौती कर दी. एजेंडा तय करने का अधिकार मेयर की बजाए नगर आयुक्त को दे दिया गया. पार्षदों की बैठक बुलाने का अधिकार भी नगर आयुक्त को दे दिया गया. इसे भाजपा ने नगरपालिका अधिनियम और संविधान के खिलाफ बताया. यह मामला हाईकोर्ट में है. बाद में वर्तमान सरकार ने मेयर के चुनाव को पार्टी सिंबल के दायरे से बाहर कर दिया. इसको लेकर आज भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच खींचतान चल रही है.
पांचवा विवाद - मॉब लिंचिंग बिल को लेकर - इस बिल ने झारखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया. हेमंत सरकार ने 2021 के शीतकालीन सत्र में इस बिल को पेश किया. इसके कई बिंदुओं पर भाजपा विधायकों ने सवाल खड़े किए. राजभवन ने भीड़ की परिभाषा पर सवाल उठाए. गवाह संरक्षण का जिक्र हिंदी संस्करण में नहीं होने को घोर लापरवाही बताया. भाजपा ने सरकार पर आदिवासी-मूलवासी विरोधी और तुष्टिकरण का आरोप लगाया. लेकिन सरकार ने दलील दी कि इस कानून के लागू होने से शांति और भाईचारा कायम होगा.
सत्ता पक्ष और मुख्य विपक्षी दल के बीच खींचतान आगे भी जारी रही. 28 माह के कार्यकाल में हेमंत सरकार ने अक्टूबर 2020 में मेनहर्ट घोटाले की जांच का जिम्मा एसीबी को सौंप दिया. यह मामला साल 2005 का है. तब रांची में सिवरेज ड्रेनेज सिस्टम के निर्माण के लिए मेनहर्ट कंपनी को परामर्शी बनाया गया था. उस समय रघुवर दास नगर विकास मंत्री थे. इसलिए मामले की एसीबी जांच का आदेश देकर हेमंत सरकार ने भाजपा को और आक्रामक बना दिया. इन प्रमुख घटनाओं से पहले और बाद में कई मौके ऐसे आए, जब सरकार और भाजपा में खींचतान चली. दो-दो बार सरकार गिराने की साजिश के आरोप और जाति प्रमाण पत्र के फॉर्म से धर्म का कॉलम हटाने का मामला भी गरमाता रहा. महिलाओं के नाम 1 रुपये में जमीन की रजिस्ट्री की पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की व्यवस्था बंद किए जाने पर भी सवाल उठे.
लेकिन असली टकराव का दौर शुरू हुआ 10 फरवरी 2022 से. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आरोप लगाया कि सीएम ने खुद माइंस मिनिस्टर रहते अपने नाम से पत्थर खदान ले ली है. इस मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि आज झारखंड की सियासत पर अस्थिरता के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं. भाजपा के तमाम नेताओं का कहना है कि अब हेमंत सोरेन का सीएम पद पर रहना मुश्किल है. वहीं, सत्ताधारी दल झामुमो और कांग्रेस को विश्वास है कि सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी.