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PFI पर राष्ट्रव्यापी नकेल, झारखंड में 2018 में ही तत्कालीन रघुवर सरकार ने लगाया था बैन

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई राष्ट्रीय स्तर पर बैन कर दिया गया है (PFI banned for 5 years). लेकिन तत्कालीन रघुवर सरकार ने फरवरी 2018 में ही झारखंड में पीएफआई बैन कर दिया था (PFI banned in Jharkhand). हालांकि, तत्कालीन रघुवर सरकार के इस फैसले को झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

PFI banned in Jharkhand
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Published : Sep 28, 2022, 8:50 PM IST

रांची: कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर पांच साल का राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लग गया है (PFI banned for 5 years). केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिसूचना भी जारी कर दी है. आतंकी गतिविधि और अन्य देश विरोधी साजिश के कारण कार्रवाई हुई है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, असम, मध्यप्रदेश में पीएफआई के ठिकानों पर एनआईए की छापेमारी के दौरान कई संवेदनशील दस्तावेज हाथ लगने के बाद यह कार्रवाई हुई है.

ये भी पढ़ें- PFI बैन पर लालू ने उठाए सवाल, कहा- RSS पर भी लगना चाहिए प्रतिबंध

लेकिन क्या आप जानते हैं कि पीएफआई की साजिश की बू को तत्कालीन रघुवर सरकार ने साल 2017 में ही भांप लिया था. तत्कालीन डीजीपी ने दिसंबर 2017 में ही गृह विभाग को पत्र लिखकर प्रतिबंधित करने की अनुशंसा की थी. इस अनुशंसा के आलोक में झारखंड सरकार ने फरवरी 2018 में पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया था (PFI banned in Jharkhand). झारखंड के संथाल परगना में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को देखते हुए प्रतिबंध लगाया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को इस संगठन की साजिश की खुफिया सूचना से अवगत कराया गया था. इस संगठन के सदस्यों का संबंध आईएसआईएस से था. साथ ही संथाल के कई जिलों में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश चल रही थी. केरल से उपजा यह संगठन संथाल प्रमंडल के पाकुड़, साहिबगंज, जामताड़ा जिले में पांव पसार रहा था.

झारखंड में प्रतिबंध लगने पर पीएफआई की ओर से झारखंड चैप्टर के महासचिव अब्दुल वदूद ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. कोर्ट को बताया गया था कि जिस आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1908 की धारा 16 के तहत प्रतिबंध लगाया गया था, वह 1932 से ही अस्तित्व में नहीं था. इसे संविधान की धारा 19 के तहत बोलने और लिखने के लिए मिली आजादी का उल्लंघन बताया गया था. शो-कॉज दिए बगैर प्रतिबंध को गैरकानूनी बताया गया था. इसपर झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने पीएफआई पर लगे बैन को 27 अगस्त 2018 को हटा दिया था. राजपत्र में बैन का प्रकाशन नहीं किए जाने को भी कोर्ट ने आधार बनाया था.

बाद में रघुवर सरकार ने प्रतिबंध से जुड़ी तथ्यात्मक त्रुटियों को दूर कर फरवरी 2019 में दोबारा बैन लगाया था. लेकिन बैन के बावजूद इस संगठन के सदस्य सक्रीय थे. उन्हें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से मदद मिल रही थी. इसी साल मई माह में हुए पंचायत चुनाव के दौरान पीएफआई के तीन दर्जन से ज्यादा सदस्यों ने साहिबगंज जिला के बड़हरवा और पतना पंचायत के कई पदों पर जीत हासिल की थी. इसी साल 10 जून को राजधानी रांची में हुए उपद्रव के पीछे इसी संगठन की साजिश की चर्चा जोर शोर से हुई थी. बहरहाल, एनआईए की सक्रियता के कारण इस संगठन की पोल खुल चुकी है. अब राष्ट्रीय स्तर पर पीएफआई पर प्रतिबंध लग चुका है.

रांची: कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर पांच साल का राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लग गया है (PFI banned for 5 years). केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिसूचना भी जारी कर दी है. आतंकी गतिविधि और अन्य देश विरोधी साजिश के कारण कार्रवाई हुई है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, असम, मध्यप्रदेश में पीएफआई के ठिकानों पर एनआईए की छापेमारी के दौरान कई संवेदनशील दस्तावेज हाथ लगने के बाद यह कार्रवाई हुई है.

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि पीएफआई की साजिश की बू को तत्कालीन रघुवर सरकार ने साल 2017 में ही भांप लिया था. तत्कालीन डीजीपी ने दिसंबर 2017 में ही गृह विभाग को पत्र लिखकर प्रतिबंधित करने की अनुशंसा की थी. इस अनुशंसा के आलोक में झारखंड सरकार ने फरवरी 2018 में पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया था (PFI banned in Jharkhand). झारखंड के संथाल परगना में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को देखते हुए प्रतिबंध लगाया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को इस संगठन की साजिश की खुफिया सूचना से अवगत कराया गया था. इस संगठन के सदस्यों का संबंध आईएसआईएस से था. साथ ही संथाल के कई जिलों में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश चल रही थी. केरल से उपजा यह संगठन संथाल प्रमंडल के पाकुड़, साहिबगंज, जामताड़ा जिले में पांव पसार रहा था.

झारखंड में प्रतिबंध लगने पर पीएफआई की ओर से झारखंड चैप्टर के महासचिव अब्दुल वदूद ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. कोर्ट को बताया गया था कि जिस आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1908 की धारा 16 के तहत प्रतिबंध लगाया गया था, वह 1932 से ही अस्तित्व में नहीं था. इसे संविधान की धारा 19 के तहत बोलने और लिखने के लिए मिली आजादी का उल्लंघन बताया गया था. शो-कॉज दिए बगैर प्रतिबंध को गैरकानूनी बताया गया था. इसपर झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय की अदालत ने पीएफआई पर लगे बैन को 27 अगस्त 2018 को हटा दिया था. राजपत्र में बैन का प्रकाशन नहीं किए जाने को भी कोर्ट ने आधार बनाया था.

बाद में रघुवर सरकार ने प्रतिबंध से जुड़ी तथ्यात्मक त्रुटियों को दूर कर फरवरी 2019 में दोबारा बैन लगाया था. लेकिन बैन के बावजूद इस संगठन के सदस्य सक्रीय थे. उन्हें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से मदद मिल रही थी. इसी साल मई माह में हुए पंचायत चुनाव के दौरान पीएफआई के तीन दर्जन से ज्यादा सदस्यों ने साहिबगंज जिला के बड़हरवा और पतना पंचायत के कई पदों पर जीत हासिल की थी. इसी साल 10 जून को राजधानी रांची में हुए उपद्रव के पीछे इसी संगठन की साजिश की चर्चा जोर शोर से हुई थी. बहरहाल, एनआईए की सक्रियता के कारण इस संगठन की पोल खुल चुकी है. अब राष्ट्रीय स्तर पर पीएफआई पर प्रतिबंध लग चुका है.

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