रांची: कोरोना वायरस को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की तारीख 3 मई तक के लिए बढ़ा दी गई है, ताकि इस वैश्विक महामारी से देश को बचाया जा सके. लेकिन इस वैश्विक महामारी के कारण पूरे देश में आपात की स्थिति बनी हुई है. लोगों को खाने-पीने की दिक्कतों का काफी सामना करना पड़ रहा है. सरकार और सामाजिक संगठनों की ओर गरीब तबके के लोगों तक भोजन मुहैया कराने के लिए हर संभव प्रयास की जा रही है, लेकिन यह प्रयास सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित रह जा रही है.
नहीं पहुंच पा रही है सरकार की योजनाएं
ग्रामीण सुदूरवर्ती इलाकों की बात करें तो यहां न ही सरकार की योजनाएं पहुंच पाती हैं और न ही सामाजिक संगठनों का कोई लाभ लोगों को मिल पाता है. सुदूरवर्ती इलाका होने के कारण शायद इन लोगों तक किसी की निगाहें नहीं पहुंच पाती हैं. खासतौर पर हम बात कर रहे हैं रांची से लगभग 45 किलोमीटर दूर सिमलबेड़ा टीओपी के मौनाजरा गांव की, जो चारों ओर से पहाड़ों से गिरा हुआ है और कल तक यह जगह नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में मशहूर था. शायद यही कारण है कि सरकार की योजनाएं या फिर सामाजिक संगठनों की निगाहें इस गांव तक नहीं पहुंच पाती है.
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लोगों को हो रही है काफी दिक्कत
लॉकडाउन के कारण इस गांव के लोगों की स्थिति काफी मुश्किल भरी है. यहां के लोगों तक शायद सामाजिक संगठनों या सरकार की ओर से राशन पहुंचाने का काम नहीं किया जा रहा है, जिससे यहां के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हालत यह है कि लोग महुआ खाकर अपनी भूख मिटा रहे हैं. इन लोगों को यह भी पता नहीं है कि इसे खाने से इन्हें फायदा होगा या नुकसान. इनका कहना है कि वो गरीब है और अपनी भूख मिटाने के लिए इसे खा रहे हैं.
महुआ खाने को मजबूर हैं लोग
इन इलाकों में पेट की भूख को शांत करने के लिए लोग पेड़ों से महुआ तोड़कर लाते हैं और फिर उसे पानी में उबालकर खाते हैं. एक महिला का कहना है कि वे लोग लकड़ी बेचकर अपना जीवन-यापन कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन होने से बाजार बंद हो गया. इस वजह से अब उनलोगों के पास कोई काम नहीं है, जिससे उन्हें बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. मजबूरन पेट भरने के लिए वो पेड़ से महुआ तोड़कर खुद भी खा रहे हैं और अपने बाल-बच्चों को भी खिला रहे हैं. एक बूढ़ी महिला से जब पूछा गया तो वो सिर्फ एक ही बात कह रही है कि कुछ खाने को दो, खाने को दो. इस महिला को ना तो वृद्धा पेंशन का लाभ मिल रहा है और ना ही राशन मिल रहा है.
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भोजन सामग्री का वितरण
इस संकट की स्थिति को देखते हुए सरकार से लेकर सामाजिक संगठन भी अपने-अपने तरीके से गरीब तबके के लोगों की समस्या को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन शायद सुदूरवर्ती इलाका होने के कारण इन गरीबों तक कोई लाभ नहीं पहुंच पाता है. हालांकि न्यूज कवरेज के दौरान ईटीवी भारत की टीम ने इन लोगों के बीच भोजन सामग्री का वितरण किया था, लेकिन जरूरत है कि सरकार और सामाजिक संगठनों को भी ऐसे सुदूरवर्ती इलाकों को चिन्हित कर राशन और जरूरत के सामान मुहैया कराने की.