रांची: जब मोती की बात होती है तो एक शेर याद आता है कि "उतरना पड़ता है काफी गहराई में, सच्चे मोती किनारे नहीं मिला करते". लेकिन अब जमाना बदल गया है. कुछ ऐसी टेक्नोलॉजी आ गयी है, जिसकी बदौलत आप घर में भी मोती तैयार कर सकते हैं. कम लागत में मोटी कमाई की गारंटी है. बाजार भी पहले से तैयार है. रेट भी पहले से फिक्स है. इन तमाम सवालों का जवाब जानने के बाद रांची के ललगुटवा की प्रगतिशील किसान संजू देवी ने मोती पालन (Pearl Farming) का काम शुरू किया है. उन्होंने ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश कुमार सिंह से अपना बिजनेस प्लान साझा किया.
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संजू देवी ने जामताड़ा में चल रहे एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी से मोती पालन की ट्रेनिंग ली. उसके बाद स्वयं सहायता समूह और जेएसएलपीएस की मदद से 50 हजार का लोन उठाया और घर में मोती पालन का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर दिया. एक वाटर टैंक में बांस के डंडों के सहारे नेट में सीपों को झूलाकर पर्ल कल्चर कर रही हैं. उनके मुताबिक 14 माह बाद सभी सीप में मोती तैयार हो जाएगा. वाटर टैंक के पानी को दिन में दो बार थोड़ा थोड़ा बदलना पड़ता है. इसके लिए एक ऑटोमेटिक सिस्टम लगा हुआ है. एक हजार सीप पालने के लिए करीब 50 हजार की लागत आती है. 14 माह बाद तमाम खर्च काटने के बाद भी करीब ढाई लाख का मुनाफा होना तय है.
कितनी तरह की होती हैं मोतियां: मुख्य रूप से मोतियां तीन तरह की होती हैं. समुद्र की गहराई में पाई जाने वाली मोती को नेचुरल पर्ल यानी प्राकृतिक मोती कहते हैं. एक आर्टिफिसियल पर्ल होता है जो मानव निर्मित होता है. यह सिर्फ देखने में असली मोती जैसा दिखता है. मोती के तीसरे प्रकार को कहते हैं कल्चर्ड पर्ल यानी एक विधि से तैयार की गई मोती. यह नेचुरल मोती की ही तरह होती है. इसकी खासियत है कि सीप में अलग-अलग सेप के सांचे आधारित मोती तैयार की जा सकती है.
मोती पालन की ट्रेनिंग: अगर आप मोती पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको ट्रेनिंग लेनी होगी. रांची में शालीमार बाग स्थित कृषि विभाग में आत्मा यानी एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी इसकी ट्रेनिंग देती है. झारखंड के किसान सीप को कोलकाता या आसनसोन से मंगवाते हैं. दरअसल, सीप यानी घोंघा जब भोजन के लिए सीप से बाहर मुंह निकालता है, तब कुछ अनचाहे परजीवी भी उसके साथ चिपककर सीप के अंदर प्रवेश कर जाते हैं, जिनसे छुटकारा पाने के लिए घोंघा अपने ऊपर रक्षा कवच बनाना शुरू कर देता है जो आगे चलकर मोती का रूप धारण करता है. इस प्राकृतिक प्रक्रिया को अब कृत्रिम तरीके से कराया जा रहा है.
मोती का बाजार: जाहिर सी बात है कि मोती पालन को तभी बढ़ावा मिलेगा, जब किसान को बाजार मिलेगा. इस कारोबार में सबकुछ पहले से फिक्स हो जाता है. संस्था के लोग ट्रेनिंग के साथ-साथ उत्पादन के लिए लोन मुहैया कराते हैं. इसके बाद करीब 14 माह की देखरेख होती है. फिर सीप से मोतियां निकाली जाती हैं, जिसे संस्था के लोग प्रति मोती 150 से 300 रुपए तक की दर से खरीद लेते हैं. संजू देवी ने बताया कि उनका एक्सपेरिंट सार्थक साबित हुआ तो वह व्यपाक स्तर पर इसका उत्पादन करेंगी और अपने स्तर से बाजार में बेचेंगी.
संजू देवी का मानना है कि बाजार के रिटेल मार्केट में एक सामान्य मोती की कीमत एक हजार रुपए के आसपास होती है. उन्होंने बताया कि जब से उन्होने मोती पालन शुरू किया है, तब से आसपास की कई महिलाएं उनसे मिलकर खुद का कारोबार शुरू करने की तैयारी में जुटी हुई हैं. औडेसिया ई कॉमर्स प्रा.लि. ने आत्मा के साथ मिलकर झारखंड के 60 किसानों को मोती पालन के व्यवसाय से जोड़ा है. कंपनी से जुड़े नदीम ने बताया कि 14 माह बाद सभी किसानों के यहां तैयार मोतियां खरीद ली जाएंगी. उन्होंने कहा कि कम लागत में अच्छी कमाई का यह एक अच्छा जरिया बन सकता है. फिलहाल इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है. पहली खेप निकलने के बाद झारखंड में मोती पालन कारोबार का भविष्य तय हो जाएगा.