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कहां है डायनामिक बेड सिस्टमः रिम्स में जमीन पर मरीज का इलाज बन गई है मजबूरी - झारखंड न्यूज

झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में लापरवाही अक्सर देखी जाती है. इस बार यहां जमीन पर मरीज का इलाज करने का मामला सामने आया (patients treatment on ground) है. रिम्स में जमीन पर इलाज रिम्स जनसंपर्क पदाधिकारी सफाई देते हुए कहते हैं कि इस तरह की समस्या अत्यधिक मरीज होने की वजह से हो रही है.

patients treatment on ground at RIMS in Ranchi
रिम्स
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Published : Sep 11, 2022, 2:34 PM IST

रांचीः राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में जमीन पर मरीज को लिटाकर इलाज करवाना मानो हमेशा का शगल हो गया (Negligence in treatment in RIMS) है. ऐसा इसलिए है कि रिम्स परिसर से ऐसी तस्वीरें अक्सर निकलकर सामने आती हैं. राज्यभर से आए गरीब और मजबूर मरीज बेड की कमी की वजह से रिम्स में जमीन पर इलाज करवाने को मजबूर (patients treatment on ground) हैं. जब रिम्स में लापरवाही की तस्वीरें सामने आती हैं तो प्रबंधन कभी मरीजों की ज्यादा संख्या या कभी मेडिकल या बेड की कमी बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है.


इसे भी पढ़ें- अव्यवस्था का शिकार RIMS! कबाड़ हो रहे लाखों के बेड , जमीन पर इलाज करा रहे मरीज


अस्पताल में मरीज को बेड उपलब्ध कराने के लिए स्वास्थ्य सचिव के निर्देश पर डायनेमिक बेड सिस्टम लागू करने की बात कही गई थी लेकिन वह भी धरातल पर नहीं उतर पाई है. इस व्यवस्था के अंतर्गत जिस वार्ड में मरीज ज्यादा हैं, उस वार्ड के मरीज को वैसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है जिसमें मरीज कम हो. इसके बाद उस विभाग के डॉक्टर दूसरे वार्ड में जाकर मरीज का इलाज करेंगे. लेकिन यह भी सिर्फ कागजों पर ही रह गया है. जमीन पर मरीज का इलाज कराने की तस्वीर अमूमन न्यूरो वार्ड में देखने को मिलती (treatment on ground at RIMS) थी. लेकिन अब इस तरह की तस्वीरें मेडिसिन और सर्जरी विभाग में भी देखने को मिल रही हैं जो निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है और प्रबंधन की व्यवस्था पर सवाल उठाने के लिए काफी है.

देखें पूरी खबर

इसको लेकर मरीज के परिजनों ने बताया कि जमीन पर इलाज तो डॉक्टर आकर कर देते हैं. लेकिन जमीन की साफ-सफाई की कमी है. ऐसे में जो मरीज बीमार हैं, उन्हें जमीन पर लिटाने के बाद और भी इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन रिम्स प्रबंधन का इस पर कोई ध्यान नहीं जा रहा. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने रिम्स जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ राजीव रंजन (RIMS PRO Dr Rajeev Ranjan) से बात की. उन्होंने बताया कि इस तरह की समस्या अत्यधिक मरीज होने की वजह से हो रही है. उन्होंने कहा कि हमारे वार्ड में 200 मरीजों को भर्ती करने की व्यवस्था है लेकिन प्रतिदिन 200 से ज्यादा मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं, जिस वजह से बेड कम पड़ जाते हैं.

उन्होंने बताया कि समय-समय पर बेड की खरीदारी की जाती है लेकिन मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि नए बेड खरीदने के बाद भी कम पड़ रहे हैं. पीआरओ राजीव रंजन ने बताया कि डायनामिक बेड सिस्टम को लागू करने में समस्या आ रही है. क्योंकि दूसरे वार्ड में मरीज को शिफ्ट किया जाता है तो वहां के ट्रेंड नर्सेज या फिर स्पेशल चिकित्सकों को भी दूसरे वार्ड में भेजना पड़ेगा जो कि काफी मुश्किल काम है. उन्होंने बताया कि अभी ट्रॉमा सेंटर के सभी बेड नहीं खोले गए हैं, साथ ही रिम्स में मैन पावर की भी काफी कमी है. इसलिए मरीजों को कई बार बेड उपलब्ध नहीं हो पाता है. रिम्स पीआरओ ने आश्वासन देते हुए कहा कि प्रबंधन की तरफ से इसको लेकर प्रयास किए जा रहे हैं ताकि मरीजों को राहत मिल सके.

रांचीः राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में जमीन पर मरीज को लिटाकर इलाज करवाना मानो हमेशा का शगल हो गया (Negligence in treatment in RIMS) है. ऐसा इसलिए है कि रिम्स परिसर से ऐसी तस्वीरें अक्सर निकलकर सामने आती हैं. राज्यभर से आए गरीब और मजबूर मरीज बेड की कमी की वजह से रिम्स में जमीन पर इलाज करवाने को मजबूर (patients treatment on ground) हैं. जब रिम्स में लापरवाही की तस्वीरें सामने आती हैं तो प्रबंधन कभी मरीजों की ज्यादा संख्या या कभी मेडिकल या बेड की कमी बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है.


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अस्पताल में मरीज को बेड उपलब्ध कराने के लिए स्वास्थ्य सचिव के निर्देश पर डायनेमिक बेड सिस्टम लागू करने की बात कही गई थी लेकिन वह भी धरातल पर नहीं उतर पाई है. इस व्यवस्था के अंतर्गत जिस वार्ड में मरीज ज्यादा हैं, उस वार्ड के मरीज को वैसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है जिसमें मरीज कम हो. इसके बाद उस विभाग के डॉक्टर दूसरे वार्ड में जाकर मरीज का इलाज करेंगे. लेकिन यह भी सिर्फ कागजों पर ही रह गया है. जमीन पर मरीज का इलाज कराने की तस्वीर अमूमन न्यूरो वार्ड में देखने को मिलती (treatment on ground at RIMS) थी. लेकिन अब इस तरह की तस्वीरें मेडिसिन और सर्जरी विभाग में भी देखने को मिल रही हैं जो निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है और प्रबंधन की व्यवस्था पर सवाल उठाने के लिए काफी है.

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इसको लेकर मरीज के परिजनों ने बताया कि जमीन पर इलाज तो डॉक्टर आकर कर देते हैं. लेकिन जमीन की साफ-सफाई की कमी है. ऐसे में जो मरीज बीमार हैं, उन्हें जमीन पर लिटाने के बाद और भी इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन रिम्स प्रबंधन का इस पर कोई ध्यान नहीं जा रहा. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने रिम्स जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ राजीव रंजन (RIMS PRO Dr Rajeev Ranjan) से बात की. उन्होंने बताया कि इस तरह की समस्या अत्यधिक मरीज होने की वजह से हो रही है. उन्होंने कहा कि हमारे वार्ड में 200 मरीजों को भर्ती करने की व्यवस्था है लेकिन प्रतिदिन 200 से ज्यादा मरीज अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं, जिस वजह से बेड कम पड़ जाते हैं.

उन्होंने बताया कि समय-समय पर बेड की खरीदारी की जाती है लेकिन मरीजों की संख्या इतनी अधिक है कि नए बेड खरीदने के बाद भी कम पड़ रहे हैं. पीआरओ राजीव रंजन ने बताया कि डायनामिक बेड सिस्टम को लागू करने में समस्या आ रही है. क्योंकि दूसरे वार्ड में मरीज को शिफ्ट किया जाता है तो वहां के ट्रेंड नर्सेज या फिर स्पेशल चिकित्सकों को भी दूसरे वार्ड में भेजना पड़ेगा जो कि काफी मुश्किल काम है. उन्होंने बताया कि अभी ट्रॉमा सेंटर के सभी बेड नहीं खोले गए हैं, साथ ही रिम्स में मैन पावर की भी काफी कमी है. इसलिए मरीजों को कई बार बेड उपलब्ध नहीं हो पाता है. रिम्स पीआरओ ने आश्वासन देते हुए कहा कि प्रबंधन की तरफ से इसको लेकर प्रयास किए जा रहे हैं ताकि मरीजों को राहत मिल सके.

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