रांचीः राजधानी के बेड़ो प्रखंड के खक्साटोली में जनजातीय परिवार में सिमोन बाबा के नाम से लोकप्रिय सिमोन उरांव का जन्म हुआ था. परिवार की गरीबी का आलम यह था कि इन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन पर्यावरण के प्रति लगाव ऐसा था कि लोग इन्हें जंगल पुरुष कहने लगे. जल संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए बाबा सिमोन को पद्मश्री से नवाजा गया, लेकिन इन्होंने जंगल बचाने के लिए भी कई कार्य किए. पर्यावरण के प्रति उनके संघर्ष की शुरुआत 60 के दशक में हुई. बाबा सिमोन नहीं होते तो शायद रांची के बेड़ो में जंगल नहीं होते.
हरियाली की चादर बिछाई
फलदार वृक्ष पर कोई पत्थर न मारे, कोई फल न तोड़े और कोई पेड़ न काटे, इसे रोकने के लिए बाबा सिमोन ने एक कहानी बनाई. उन्होंने लोगों से कहा कि फल तोड़ोगे तो अगले साल पेड़ फल नहीं देगा. पद्मश्री बाबा सिमोन उरांव ने बेड़ो प्रखंड के 12 गांवों में इसी थ्योरी की बदौलत हरियाली की चादर बिछा दी.
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बाबा सिमोन ने लगाए सैकड़ों पौधे
गांव के बच्चे खेल-कूद में मशगूल रहते थे, लेकिन बाबा सिमोन आम की गुठलियों को घूम-घूम कर रोपा करते थे. उन्होंने न सिर्फ बारिश के जल को बहने से रोकने के लिए बनाए गए मेड़ पर पौधे लगाए, बल्कि जंगल में खाली पड़े जगहों पर भी फलदार वृक्ष लगाए.
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उन्होंने कहा कि लकड़ी तस्कर आते थे और हरे भरे पेड़ को काट कर ले जाते थे. तस्करों के इस कार्य में गांव के लोग भी मदद करते थे, क्योंकि उनके पास आय का कोई जरिया नहीं था. लिहाजा बाबा सिमोन ने 12 गांव के लोगों को इकट्ठा कर उन्हें पेड़ की अहमियत समझाई और जंगल की कटाई को पूरी तरह से बंद कर दिया. इस दौरान जहां भी पेड़ कटे थे, उन जगहों पर बाबा सिमोन उरांव ने फलदार वृक्ष लगाए. अपने इस कार्य के लिए वह कहते हैं कि मैंने खुद सैकड़ों पेड़ लगाए हैं.
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लोग करते हैं झुककर सलाम
क्षेत्र के लोग इनको कितनी अहमियत देते हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि होश संभालने के बाद से बाबा सिमोन उरांव 12 आदिवासी गांवों के पड़हा राजा मनोनीत होते आ रहे हैं. अब वह 85 साल के हो गए हैं, जिसकी वजह से उन्हें चलने फिरने में दिक्कत होती है.
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अब वह घर पर ही रहकर गरीबों की सेवा कर रहे हैं. जंगलों से जड़ी बूटियां लाकर गरीबों को मुफ्त में देते हैं. यह पूछे जाने पर कि आपको जड़ी बूटियों की समझ कहां से आई तो बाबा सिमोन कहते हैं कि मेरे बाबा भी जड़ी बूटी से लोगों का इलाज करते थे. कहते हैं दर्द पीड़ा में मेरी जड़ी बूटी लोगों को राहत देती है. उम्र के इस पड़ाव पर बाबा सिमोन उरांव जब भी जमटोली, बैरटोली, हरहंजी, खुरहाटोली, बोदा और भसनंदा जैसे गांवों से गुजरते हैं तो लोग उन्हें सर झुकाकर सलाम करते हैं.