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रांची के बेड़ो प्रखंड में पद्मश्री सिमोन उरांव ने बिछाई हरियाली की चादर, लगाए फलदार वृक्ष - रांची में पद्मश्री सिमोन उरांव ने पौधे लगाए

रांची के लोकप्रिय सिमोन उरांव ने 60 के दशक में पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत की और ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने जहां भी पेड़ कटे हुए थे, उन जगहों पर फलदार वृक्ष लगाए. वहीं, जल संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए बाबा सिमोन को पद्मश्री से भी नवाजा गया है.

padma shri simon oraon
पद्मश्री सिमोन उरांव
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Published : Aug 13, 2020, 5:07 PM IST

Updated : Aug 13, 2020, 8:45 PM IST

रांचीः राजधानी के बेड़ो प्रखंड के खक्साटोली में जनजातीय परिवार में सिमोन बाबा के नाम से लोकप्रिय सिमोन उरांव का जन्म हुआ था. परिवार की गरीबी का आलम यह था कि इन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन पर्यावरण के प्रति लगाव ऐसा था कि लोग इन्हें जंगल पुरुष कहने लगे. जल संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए बाबा सिमोन को पद्मश्री से नवाजा गया, लेकिन इन्होंने जंगल बचाने के लिए भी कई कार्य किए. पर्यावरण के प्रति उनके संघर्ष की शुरुआत 60 के दशक में हुई. बाबा सिमोन नहीं होते तो शायद रांची के बेड़ो में जंगल नहीं होते.

देखें स्पेशल स्टोरी

हरियाली की चादर बिछाई
फलदार वृक्ष पर कोई पत्थर न मारे, कोई फल न तोड़े और कोई पेड़ न काटे, इसे रोकने के लिए बाबा सिमोन ने एक कहानी बनाई. उन्होंने लोगों से कहा कि फल तोड़ोगे तो अगले साल पेड़ फल नहीं देगा. पद्मश्री बाबा सिमोन उरांव ने बेड़ो प्रखंड के 12 गांवों में इसी थ्योरी की बदौलत हरियाली की चादर बिछा दी.

padma shri simon oraon
पड़हा राजा पद्मश्री सिमोन उरांव.

इसे भी पढ़ें- रांची की सब्जियों का विदेशी भी लेंगे जायका, कृषि मंत्री ने पहली वैन को दिखाई हरि झंडी

बाबा सिमोन ने लगाए सैकड़ों पौधे
गांव के बच्चे खेल-कूद में मशगूल रहते थे, लेकिन बाबा सिमोन आम की गुठलियों को घूम-घूम कर रोपा करते थे. उन्होंने न सिर्फ बारिश के जल को बहने से रोकने के लिए बनाए गए मेड़ पर पौधे लगाए, बल्कि जंगल में खाली पड़े जगहों पर भी फलदार वृक्ष लगाए.

padma shri simon oraon
पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत

उन्होंने कहा कि लकड़ी तस्कर आते थे और हरे भरे पेड़ को काट कर ले जाते थे. तस्करों के इस कार्य में गांव के लोग भी मदद करते थे, क्योंकि उनके पास आय का कोई जरिया नहीं था. लिहाजा बाबा सिमोन ने 12 गांव के लोगों को इकट्ठा कर उन्हें पेड़ की अहमियत समझाई और जंगल की कटाई को पूरी तरह से बंद कर दिया. इस दौरान जहां भी पेड़ कटे थे, उन जगहों पर बाबा सिमोन उरांव ने फलदार वृक्ष लगाए. अपने इस कार्य के लिए वह कहते हैं कि मैंने खुद सैकड़ों पेड़ लगाए हैं.

padma shri simon oraon
जंगल पुरुष सिमोन उरांव.

लोग करते हैं झुककर सलाम
क्षेत्र के लोग इनको कितनी अहमियत देते हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि होश संभालने के बाद से बाबा सिमोन उरांव 12 आदिवासी गांवों के पड़हा राजा मनोनीत होते आ रहे हैं. अब वह 85 साल के हो गए हैं, जिसकी वजह से उन्हें चलने फिरने में दिक्कत होती है.

padma shri simon oraon
सिमोन उरांव को मिला पद्मश्री

अब वह घर पर ही रहकर गरीबों की सेवा कर रहे हैं. जंगलों से जड़ी बूटियां लाकर गरीबों को मुफ्त में देते हैं. यह पूछे जाने पर कि आपको जड़ी बूटियों की समझ कहां से आई तो बाबा सिमोन कहते हैं कि मेरे बाबा भी जड़ी बूटी से लोगों का इलाज करते थे. कहते हैं दर्द पीड़ा में मेरी जड़ी बूटी लोगों को राहत देती है. उम्र के इस पड़ाव पर बाबा सिमोन उरांव जब भी जमटोली, बैरटोली, हरहंजी, खुरहाटोली, बोदा और भसनंदा जैसे गांवों से गुजरते हैं तो लोग उन्हें सर झुकाकर सलाम करते हैं.

रांचीः राजधानी के बेड़ो प्रखंड के खक्साटोली में जनजातीय परिवार में सिमोन बाबा के नाम से लोकप्रिय सिमोन उरांव का जन्म हुआ था. परिवार की गरीबी का आलम यह था कि इन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन पर्यावरण के प्रति लगाव ऐसा था कि लोग इन्हें जंगल पुरुष कहने लगे. जल संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिए बाबा सिमोन को पद्मश्री से नवाजा गया, लेकिन इन्होंने जंगल बचाने के लिए भी कई कार्य किए. पर्यावरण के प्रति उनके संघर्ष की शुरुआत 60 के दशक में हुई. बाबा सिमोन नहीं होते तो शायद रांची के बेड़ो में जंगल नहीं होते.

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हरियाली की चादर बिछाई
फलदार वृक्ष पर कोई पत्थर न मारे, कोई फल न तोड़े और कोई पेड़ न काटे, इसे रोकने के लिए बाबा सिमोन ने एक कहानी बनाई. उन्होंने लोगों से कहा कि फल तोड़ोगे तो अगले साल पेड़ फल नहीं देगा. पद्मश्री बाबा सिमोन उरांव ने बेड़ो प्रखंड के 12 गांवों में इसी थ्योरी की बदौलत हरियाली की चादर बिछा दी.

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पड़हा राजा पद्मश्री सिमोन उरांव.

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बाबा सिमोन ने लगाए सैकड़ों पौधे
गांव के बच्चे खेल-कूद में मशगूल रहते थे, लेकिन बाबा सिमोन आम की गुठलियों को घूम-घूम कर रोपा करते थे. उन्होंने न सिर्फ बारिश के जल को बहने से रोकने के लिए बनाए गए मेड़ पर पौधे लगाए, बल्कि जंगल में खाली पड़े जगहों पर भी फलदार वृक्ष लगाए.

padma shri simon oraon
पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत

उन्होंने कहा कि लकड़ी तस्कर आते थे और हरे भरे पेड़ को काट कर ले जाते थे. तस्करों के इस कार्य में गांव के लोग भी मदद करते थे, क्योंकि उनके पास आय का कोई जरिया नहीं था. लिहाजा बाबा सिमोन ने 12 गांव के लोगों को इकट्ठा कर उन्हें पेड़ की अहमियत समझाई और जंगल की कटाई को पूरी तरह से बंद कर दिया. इस दौरान जहां भी पेड़ कटे थे, उन जगहों पर बाबा सिमोन उरांव ने फलदार वृक्ष लगाए. अपने इस कार्य के लिए वह कहते हैं कि मैंने खुद सैकड़ों पेड़ लगाए हैं.

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जंगल पुरुष सिमोन उरांव.

लोग करते हैं झुककर सलाम
क्षेत्र के लोग इनको कितनी अहमियत देते हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि होश संभालने के बाद से बाबा सिमोन उरांव 12 आदिवासी गांवों के पड़हा राजा मनोनीत होते आ रहे हैं. अब वह 85 साल के हो गए हैं, जिसकी वजह से उन्हें चलने फिरने में दिक्कत होती है.

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सिमोन उरांव को मिला पद्मश्री

अब वह घर पर ही रहकर गरीबों की सेवा कर रहे हैं. जंगलों से जड़ी बूटियां लाकर गरीबों को मुफ्त में देते हैं. यह पूछे जाने पर कि आपको जड़ी बूटियों की समझ कहां से आई तो बाबा सिमोन कहते हैं कि मेरे बाबा भी जड़ी बूटी से लोगों का इलाज करते थे. कहते हैं दर्द पीड़ा में मेरी जड़ी बूटी लोगों को राहत देती है. उम्र के इस पड़ाव पर बाबा सिमोन उरांव जब भी जमटोली, बैरटोली, हरहंजी, खुरहाटोली, बोदा और भसनंदा जैसे गांवों से गुजरते हैं तो लोग उन्हें सर झुकाकर सलाम करते हैं.

Last Updated : Aug 13, 2020, 8:45 PM IST
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