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महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन, क्या झारखंड में भी दिखेगा असर?

माना जा रहा है कि कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद बीजेपी का पूरा फोकस अब झारखंड पर होने वाला है. यहां भी बीजेपी विपक्ष में है और महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व हेमंत सोरेन कर रहे हैं.

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Published : Jul 1, 2022, 4:59 PM IST

रांची: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सत्ता उनके करीबी रहे एकनाथ शिंदे के हाथों में आ गई है. भाजपा ने समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया है. महाराष्ट्र की सत्ता में हुए इस अप्रत्याशित उलटफेर की चर्चा झारखंड में जोर शोर से हो रही है. बेशक, भाजपा ने एकनाथ को सीएम की कुर्सी देकर यह बताने की कोशिश की है कि बगावत की प्लॉटिंग में उसकी भूमिका होती तो सीएम की कुर्सी से कॉम्प्रोमाइज नहीं किया जाता. इसके बावजूद झारखंड में आम लोगों की जुबान पर यही सवाल है कि क्या यहां भी कुछ होने वाला है. दरअसल, 2019 में 8 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे. इनमें महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भाजपा की सरकार थी. लेकिन नतीजे आने के बाद भाजपा सिर्फ हरियाणा में सरकार बना पाई.

ये भी पढ़ें- आखिर क्यों मिला एकनाथ शिंदे को सीएम का पद, क्या है भाजपा की रणनीति, जानें

सरकार गिराने की दो बार हो चुकी है साजिश: करीब ढाई साल बाद एकनाथ शिंदे के सहारे महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होकर भाजपा ने दूसरी भरपाई पूरी कर ली है. क्या अब झारखंड की बारी है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद दो बार सरकार को गिराने की साजिश का मामला थाना तक पहुंच चुका है. एक प्राथमिकी जुलाई 2021 को कोतवाली थाने में दर्ज हुई थी. सीएम के करीबी और बेरमो से कांग्रेस के विधायक जय मंगल उर्फ अनूप सिंह ने आरोप लगाया था कि रांची के होटल ली-लैक में मुंबई से आए लोग विधायकों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. हालांकि इस मामले में किसी भी विधायक को आरोपी नहीं बनाया गया. इस घटना के ठीक तीन माह बाद झामुमो के विधायक रामदास सोरेन ने जगन्नाथपुर थाने में एक शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने झामुमो से निष्कासित कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल पर प्रलोभन देकर सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाया था.

झारखंड में बहुमत का अंकगणित: महाराष्ट्र के बाद झारखंड को लेकर क्यों चर्चा हो रही है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले यहां की सत्ता का अंकगणित जानना जरूरी है. झारखंड विधानसभा में 81 विधायक चुनकर आते हैं. सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों का समर्थन जरूरी है. अभी झामुमो के 30, कांग्रेस के 18 और राजद के एक विधायक यानी कुल 49 विधायकों के समर्थन से सरकार चल रही है. भाकपा माले ने अपने एक विधायक का समर्थन बाहर से दे रखा है. कागज पर एनसीपी के इकलौते विधायक का भी बाहर से समर्थन प्राप्त है. दूसरी तरफ भाजपा के पास कुल 26 विधायक हैं. उसकी सहयोगी पार्टी आजसू के दो विधायक हैं. अगर निर्दलीय सरयू राय, एनसीपी विधायक कमलेश सिंह और बरकट्ठा विधायक अमित यादव का साथ मिल भी जाता है तो यह संख्या 31 पर सिमट जाएगी. ऐसे में भाजपा उसी सूरत में सरकार बना पाएगी, अगर कांग्रेस के 18 में से दो तिहाई यानी 12 विधायक उसके साथ आ जाएंगे. अब सवाल है कि यह अंकगणित कैसे पूरा होगा.

ये भी पढ़ें- उद्धव के इस्तीफे के बाद फडणवीस की राह में कई अड़चनें, महाराष्ट्र के बाद झारखंड पर बीजेपी की नजर

आरपीएन सिंह और कांग्रेस का आंतरिक घमासान: आरपीएन सिंह ने झारखंड के कांग्रेस प्रभारी रहते हुए 2019 के चुनाव में पार्टी को 16 सीटों पर जीत दिलाई थी. लेकिन खानदानी कांग्रेसी रहने के बावजूद उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. झारखंड कांग्रेस के विधायकों पर उनकी जबरदस्त पकड़ रही है. उनको अच्छी तरह मालूम है कि झारखंड कांग्रेस के कौन-कौन से विधायक पाला बदलने के लिए तैयार बैठे हैं क्योंकि उनके प्रभारी रहते हुए सरकार के खिलाफ कई विधायक दिल्ली की सैर लगा चुके हैं. हालांकि जेवीएम से निकलकर प्रदीप यादव और बंधु तिर्की (अब बंधु की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की) के कांग्रेस में जाने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 18 हो गई है. दलबदल से बचने के लिए 12 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. इस बीच महाराष्ट्र में शिवसेना जैसी मजबूत पार्टी में अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत ने झारखंड में तमाम संभावनाओं को जन्म दे दिया है. ऊपर से अविनाश पांडे के प्रभारी बनने के बाद राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी को लेकर झामुमो की मनमानी और निगम, बोर्ड के गठन में देरी से कांग्रेस खेमे में गुस्सा है जो कई बार पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आ चुका है.

झामुमो में भी चल रहा है अंतर्कलह: गुरूजी के शिष्य कहे जाने वाले लोबिन हेंब्रम अक्सर अपनी ही सरकार को घेरने से नहीं चूकते हैं. दूसरी तरफ गुरूजी की बहु सीता सोरेन भी सरकार पर सवाल खड़े करती रही है. इसके अलावा मथुरा महतो, दीपक बिरूआ, स्टीफन मरांडी, नलिन सोरेन सरीखे कई दिग्गज विधायक भले अभी चुप हों लेकिन उनके अंदर का गुबार कब फूट पड़े, यह नहीं कहा जा सकता. यही वजह है कि महाधिवेशन के छह माह बाद तक शीर्ष नेतृत्व कार्यकारिणी के पदाधिकारियों का चयन नहीं कर पाया है.

सीएम के अमित शाह से मुलाकात के मायने: ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और शेल कंपनियों में भागीदारी के मामले में चुनाव आयोग से लेकर कोर्ट के चक्कर काट रहे मुख्यमंत्री का पिछले दिनों दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं. यह सभी जानते हैं कि झारखंड में पूर्व में भाजपा और झामुमो के गठबंधन की सरकारें चल चुकी हैं. इसलिए कांग्रेस किसी भी बड़े मामले में मुख्यमंत्री पर दबाव नहीं बना पा रही है. क्योंकि कांग्रेस को अंदेशा बना रहता है कि कहीं ज्यादा दबाव बनाने पर हेमंत सोरेन नया समीकरण न तलाश लें.

ये भी पढ़ें- मोदी के दोबारा पीएम बनने के बाद महाराष्ट्र तीसरा बड़ा राज्य जहां भाजपा ने पलटी बाजी, 17 राज्यों में सरकार

महाराष्ट्र एपिसोड पर दलगत नजरिया: कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने कहा कि उनके तमाम विधायक एकजुट हैं. ऑपरेशन लोटस की शुरूआत उसी दिन से हो चुकी है, जिस दिन से महागठबंधन की सरकार ने शपथ ली. लेकिन महागठबंधन के विधायकों ने लोटस को कुचल दिया. महाराष्ट्र की घटना झारखंड में नहीं हो पाएगी. यहां की मिट्टी बहुत मजबूत है.

झामुमो के केंद्रीय समिति के सदस्य विनोद पांडेय ने कहा कि इस तरह की कोशिश सरकार बनने के बाद से ही हो रही है. भाजपा का राजनीतिक चरित्र उजागर हो चुका है. उसके चरित्र से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. इसी का नतीजा है कर्नाटक और महाराष्ट्र में फेरबदल. नॉर्थ इस्ट में भी भाजपा ने खरीद-फरोख्त की. भाजपा लोकतंत्र की दुहाई देती है. शिवसेना और झामुमो का नेचर बिल्कुल अलग है. झामुमो आंदोलन से निकली हुई पार्टी है. भाजपा तो केंद्रीय एजेंसियों के जरिए झारखंड में भी माहौल खराव करने की कोशिश कर रही है लेकिन झामुमो मजबूती से लड़ रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा को जो करना है वो तो करेगी लेकिन झामुमो को क्या करना है वह हमें मालूम है.

प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि महाराष्ट्र एपिसोड में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है. वहां अल्पमत में सरकार होने के नाते पार्टी राज्यपाल के पास गई थी. हमारी पार्टी ने शिवसेना के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ा था. वह बाद की बात है कि असली शिवसेना कौन है. इसलिए महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को भूमिका निभानी पड़ी. झारखंड में कांग्रेस और झामुमो के बीच कोई सामंजस्य नहीं है. एक समन्वय समिति बनाने के लिए अविनाश पांडेय को काफी जद्दोजहद करना पड़ा. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड में सत्ता परिवर्तन की परिस्थिति बनेगी तो पार्टी संवैधानिक दायित्व का पालन करते हुई आगे फैसला लेगी. उन्होंने कहा कि यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.

रांची: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सत्ता उनके करीबी रहे एकनाथ शिंदे के हाथों में आ गई है. भाजपा ने समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया है. महाराष्ट्र की सत्ता में हुए इस अप्रत्याशित उलटफेर की चर्चा झारखंड में जोर शोर से हो रही है. बेशक, भाजपा ने एकनाथ को सीएम की कुर्सी देकर यह बताने की कोशिश की है कि बगावत की प्लॉटिंग में उसकी भूमिका होती तो सीएम की कुर्सी से कॉम्प्रोमाइज नहीं किया जाता. इसके बावजूद झारखंड में आम लोगों की जुबान पर यही सवाल है कि क्या यहां भी कुछ होने वाला है. दरअसल, 2019 में 8 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे. इनमें महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भाजपा की सरकार थी. लेकिन नतीजे आने के बाद भाजपा सिर्फ हरियाणा में सरकार बना पाई.

ये भी पढ़ें- आखिर क्यों मिला एकनाथ शिंदे को सीएम का पद, क्या है भाजपा की रणनीति, जानें

सरकार गिराने की दो बार हो चुकी है साजिश: करीब ढाई साल बाद एकनाथ शिंदे के सहारे महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होकर भाजपा ने दूसरी भरपाई पूरी कर ली है. क्या अब झारखंड की बारी है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद दो बार सरकार को गिराने की साजिश का मामला थाना तक पहुंच चुका है. एक प्राथमिकी जुलाई 2021 को कोतवाली थाने में दर्ज हुई थी. सीएम के करीबी और बेरमो से कांग्रेस के विधायक जय मंगल उर्फ अनूप सिंह ने आरोप लगाया था कि रांची के होटल ली-लैक में मुंबई से आए लोग विधायकों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. हालांकि इस मामले में किसी भी विधायक को आरोपी नहीं बनाया गया. इस घटना के ठीक तीन माह बाद झामुमो के विधायक रामदास सोरेन ने जगन्नाथपुर थाने में एक शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने झामुमो से निष्कासित कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल पर प्रलोभन देकर सरकार गिराने की साजिश का आरोप लगाया था.

झारखंड में बहुमत का अंकगणित: महाराष्ट्र के बाद झारखंड को लेकर क्यों चर्चा हो रही है? इस सवाल का जवाब जानने से पहले यहां की सत्ता का अंकगणित जानना जरूरी है. झारखंड विधानसभा में 81 विधायक चुनकर आते हैं. सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों का समर्थन जरूरी है. अभी झामुमो के 30, कांग्रेस के 18 और राजद के एक विधायक यानी कुल 49 विधायकों के समर्थन से सरकार चल रही है. भाकपा माले ने अपने एक विधायक का समर्थन बाहर से दे रखा है. कागज पर एनसीपी के इकलौते विधायक का भी बाहर से समर्थन प्राप्त है. दूसरी तरफ भाजपा के पास कुल 26 विधायक हैं. उसकी सहयोगी पार्टी आजसू के दो विधायक हैं. अगर निर्दलीय सरयू राय, एनसीपी विधायक कमलेश सिंह और बरकट्ठा विधायक अमित यादव का साथ मिल भी जाता है तो यह संख्या 31 पर सिमट जाएगी. ऐसे में भाजपा उसी सूरत में सरकार बना पाएगी, अगर कांग्रेस के 18 में से दो तिहाई यानी 12 विधायक उसके साथ आ जाएंगे. अब सवाल है कि यह अंकगणित कैसे पूरा होगा.

ये भी पढ़ें- उद्धव के इस्तीफे के बाद फडणवीस की राह में कई अड़चनें, महाराष्ट्र के बाद झारखंड पर बीजेपी की नजर

आरपीएन सिंह और कांग्रेस का आंतरिक घमासान: आरपीएन सिंह ने झारखंड के कांग्रेस प्रभारी रहते हुए 2019 के चुनाव में पार्टी को 16 सीटों पर जीत दिलाई थी. लेकिन खानदानी कांग्रेसी रहने के बावजूद उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. झारखंड कांग्रेस के विधायकों पर उनकी जबरदस्त पकड़ रही है. उनको अच्छी तरह मालूम है कि झारखंड कांग्रेस के कौन-कौन से विधायक पाला बदलने के लिए तैयार बैठे हैं क्योंकि उनके प्रभारी रहते हुए सरकार के खिलाफ कई विधायक दिल्ली की सैर लगा चुके हैं. हालांकि जेवीएम से निकलकर प्रदीप यादव और बंधु तिर्की (अब बंधु की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की) के कांग्रेस में जाने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 18 हो गई है. दलबदल से बचने के लिए 12 विधायकों की जरूरत पड़ेगी. इस बीच महाराष्ट्र में शिवसेना जैसी मजबूत पार्टी में अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत ने झारखंड में तमाम संभावनाओं को जन्म दे दिया है. ऊपर से अविनाश पांडे के प्रभारी बनने के बाद राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी को लेकर झामुमो की मनमानी और निगम, बोर्ड के गठन में देरी से कांग्रेस खेमे में गुस्सा है जो कई बार पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आ चुका है.

झामुमो में भी चल रहा है अंतर्कलह: गुरूजी के शिष्य कहे जाने वाले लोबिन हेंब्रम अक्सर अपनी ही सरकार को घेरने से नहीं चूकते हैं. दूसरी तरफ गुरूजी की बहु सीता सोरेन भी सरकार पर सवाल खड़े करती रही है. इसके अलावा मथुरा महतो, दीपक बिरूआ, स्टीफन मरांडी, नलिन सोरेन सरीखे कई दिग्गज विधायक भले अभी चुप हों लेकिन उनके अंदर का गुबार कब फूट पड़े, यह नहीं कहा जा सकता. यही वजह है कि महाधिवेशन के छह माह बाद तक शीर्ष नेतृत्व कार्यकारिणी के पदाधिकारियों का चयन नहीं कर पाया है.

सीएम के अमित शाह से मुलाकात के मायने: ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और शेल कंपनियों में भागीदारी के मामले में चुनाव आयोग से लेकर कोर्ट के चक्कर काट रहे मुख्यमंत्री का पिछले दिनों दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं. यह सभी जानते हैं कि झारखंड में पूर्व में भाजपा और झामुमो के गठबंधन की सरकारें चल चुकी हैं. इसलिए कांग्रेस किसी भी बड़े मामले में मुख्यमंत्री पर दबाव नहीं बना पा रही है. क्योंकि कांग्रेस को अंदेशा बना रहता है कि कहीं ज्यादा दबाव बनाने पर हेमंत सोरेन नया समीकरण न तलाश लें.

ये भी पढ़ें- मोदी के दोबारा पीएम बनने के बाद महाराष्ट्र तीसरा बड़ा राज्य जहां भाजपा ने पलटी बाजी, 17 राज्यों में सरकार

महाराष्ट्र एपिसोड पर दलगत नजरिया: कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने कहा कि उनके तमाम विधायक एकजुट हैं. ऑपरेशन लोटस की शुरूआत उसी दिन से हो चुकी है, जिस दिन से महागठबंधन की सरकार ने शपथ ली. लेकिन महागठबंधन के विधायकों ने लोटस को कुचल दिया. महाराष्ट्र की घटना झारखंड में नहीं हो पाएगी. यहां की मिट्टी बहुत मजबूत है.

झामुमो के केंद्रीय समिति के सदस्य विनोद पांडेय ने कहा कि इस तरह की कोशिश सरकार बनने के बाद से ही हो रही है. भाजपा का राजनीतिक चरित्र उजागर हो चुका है. उसके चरित्र से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. इसी का नतीजा है कर्नाटक और महाराष्ट्र में फेरबदल. नॉर्थ इस्ट में भी भाजपा ने खरीद-फरोख्त की. भाजपा लोकतंत्र की दुहाई देती है. शिवसेना और झामुमो का नेचर बिल्कुल अलग है. झामुमो आंदोलन से निकली हुई पार्टी है. भाजपा तो केंद्रीय एजेंसियों के जरिए झारखंड में भी माहौल खराव करने की कोशिश कर रही है लेकिन झामुमो मजबूती से लड़ रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा को जो करना है वो तो करेगी लेकिन झामुमो को क्या करना है वह हमें मालूम है.

प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि महाराष्ट्र एपिसोड में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है. वहां अल्पमत में सरकार होने के नाते पार्टी राज्यपाल के पास गई थी. हमारी पार्टी ने शिवसेना के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ा था. वह बाद की बात है कि असली शिवसेना कौन है. इसलिए महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को भूमिका निभानी पड़ी. झारखंड में कांग्रेस और झामुमो के बीच कोई सामंजस्य नहीं है. एक समन्वय समिति बनाने के लिए अविनाश पांडेय को काफी जद्दोजहद करना पड़ा. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड में सत्ता परिवर्तन की परिस्थिति बनेगी तो पार्टी संवैधानिक दायित्व का पालन करते हुई आगे फैसला लेगी. उन्होंने कहा कि यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.

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