रांची: झारखंड देश के उन राज्यों में से एक है जहां बच्चों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है और सरकार इसे चुनौती के रूप में लेते हुए राज्य को कुपोषण मुक्त करने के लिए वर्ष 2021 से कुपोषण मुक्त झारखंड का अभियान चला रही है. लेकिन इस अभियान को लेकर सरकार कितना गंभीर है और इसमें लगे कर्मचारी कितने संतुष्ट हैं. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महंगाई के इस दौर में राज्य के 100 से ज्यादा कुपोषण उपचार केंद्र पर सेवा दे रही कर्मियों को 4 महीने से वेतन नहीं मिल रहा है. ऐसे में ये अभियान कितना सफल होगा इस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
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300 नर्सों को नहीं मिल रहा है वेतन
रांची के डोरंडा कुपोषण उपचार केंद्र पर कुपोषित बच्चों की सेवा में लगी नर्से ममता और सुगंधित जैसी करीब 300 नर्से ऐसी हैं जिन्हें पिछले चार महीने से वेतन नहीं मिला है. ममता कहती हैं कि वर्तमान समय में बिना पैसा का एक दिन भी काटना मुश्किल होता है तो सुगंधित की चिंता इस बात की है कि उनके बच्चों का फरवरी के पहले सप्ताह तक स्कूल का बकाया फीस भी भरना है. बच्चों के ऑनलाइन क्लास के लिए डाटा से लेकर घर का आटा तक सभी खरीदना होता है. ऐसे में बिना वेतन के घर कैसे चलेगा.
सिस्टम के जाल में पिस रही हैं नर्सें
ईटीवी भारत ने जब इन नर्सो को वेतन नहीं मिलने के पीछे की वजह जानने की कोशिश की तो पता चला कि ज्यादातर नर्सें जो एमटीसी (Malnutrition Treatment center) सेवा दे रही है वे आसपास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से डेपुटेशन पर हैं और उनकी हाजिरी उनके मूल सीएचसी से जाता है. अब वहां एक बैंक में सभी का खाता खुलने के नए सिस्टम के पेंच से उनका वेतन रूक गया है.
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प्रभारी इनकी समस्या से अंजान
कुपोषित बच्चों को कुपोषण मुक्त करने के काम मे लगी इन नर्सो को चार महीने से वेतन नहीं मिला है. इसकी वजह क्या है.क्यों नहीं वेतन मिला. समस्या कैसे दूर होगी यह जानने की जगह इनके प्रभारी अधिकारी नर्सो की समस्या से ही अनजान हैं. डोरंडा CHC के कुपोषण उपचार केंद्र की प्रभारी डॉक्टर मीता सिन्हा कहती हैं कि ईटीवी भारत के माध्यम से अब जानकारी मिली है. सोमवार को अपने वरीय अधिकारियों को लिख कर इनके समस्या का समाधान किया जाएगा.
झारखंड में कुपोषण की समस्या
झारखंड में जहां कुपोषण को लेकर सरकार और अधिकारी गंभीर नहीं दिख रहे हैं वहीं यहां ये समस्या काफी बृहत पैमाने पर है. आंकड़ों को देखें तो इसकी गंभीरता का एहसास होता है. जारी आकंड़ों के मुताबिक झारखंड में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 48 फीसदी है. जिसमें बड़ी संख्या अति गंभीर कुपोषित बच्चों की है. वहीं 15 से 20 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिन्हें एमटीसी में इलाज की जरूरत है. NFHS 4 के अनुसार 0 से 6 वर्ष के बीच का हर दूसरा बच्चा झारखंड में कुपोषित है. अब जब राज्य में कुपोषण की समस्या इतना विकराल है तो ऐसे में इसके खात्मे में लगे नर्सो को जहां सम्मानित किया जाना चाहिए था. लेकिन इसके उलट इन्हें वेतन के ही लाले पड़े हैं.