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National Archer Deepti Kumari Selling Tea: एक बेटी को धनुष का लोन चुकाने के लिए बेचना पड़ रहा है चाय, मिले ऑफर के लिए ईटीवी भारत को दिया धन्यवाद - इंटरनेशनल आर्चर दीपिका कुमारी

नेशनल तीरंदाज दीप्ति कुमारी धनुष का लोन चुकाने के लिए चाय बेच रही है. उसके आंखों में देश के लिए पदक जीतने का सपना है, लेकिन गरीबी उसके सपने की राह का रोड़ा है. उसे मदद की दरकार है, ताकि वो चाय की दुकान से निकलकर खेल के मैदान पहुंच सके. ईटीवी भारत की पहल पर अब उसके लिए मदद के हाथ बढ़ने लगे हैं. कौन है मददगार जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

National Archer Deepti Kumari Selling Tea
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Published : Jan 11, 2023, 6:47 PM IST

Updated : Jan 11, 2023, 7:22 PM IST

ब्यूरो चीफ राजेश सिंह की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

रांची: झारखंड की एक बेटी सिर्फ इसलिए चाय बेच रही है कि उसे लोन लेकर खरीदे गये धनुष के पैसे चुकाने हैं. तीरंदाजी में नेशनल स्तर पर मेडल जीत चुकी दीप्ति कुमारी आज भी इस उम्मीद में जी रही है कि कोई फरिश्ता उसके लिए धनुष खरीद देगा. थोड़ी सी आर्थिक मदद तीरंदाजी में अधूरे पड़े उसके सपने को पूरा कर सकती है. दीप्ति कुमारी के संघर्ष की खबर ईटीवी भारत पर प्रकाशित होने के बाद उत्तराखंड तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष सुरजीत सिंह के प्रतिनिधि भूपेंद्र सिंह कुशवाहा ने उनसे फोन पर संपर्क किया.

ये भी पढ़ें- ईटीवी भारत की खबर का असर, दीप्ति को मिला मददगार, जानिए मिले कौन-कौन से ऑफर्स

दीप्ति ने इसके लिए ईटीवी भारत को धन्यवाद देते हुए कहा कि आप लोगों की बदौलत सहयोग का भरोसा मिला है. उन्हें उत्तराखंड के एक स्कूल में तीरंदाजी प्रशिक्षक का ऑफर मिला है. साथ ही नेशनल आर्चरी की तैयारी की तमाम सुविधाओं का भी भरोसा मिला है. ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश कुमार से दीप्ति कुमारी, उनके पिता बजरंग प्रजापति और मां सीता देवी ने अपने तकलीफें बयां की.

मूल रूप से लोहरदगा की रहने वाली दीप्ति की चार बहनें और तीन भाई हैं. पिता ऑटो चलाते हैं. मां किडनी की बीमारी से ग्रसित हैं. एक भाई ऑटो चलाता है. दीप्ति कक्षा छह में पढ़ाई के दौरान ही तीरंदाजी में दिलचस्पी की वजह से सरायकेला स्थित आर्चरी एकेडमी पहुंच गई. वहां से संघर्ष करते हुए उसने सब जूनियर नेशनल, जूनियर और सीनियर स्तर पर कई मेडल जीते.

ये भी पढ़ें- धनुष के साथ टूट गया तीरंदाज दीप्ति का सपना, आज सड़क पर चाय बेच रहीं नेशनल प्लेयर

एक वक्त आया जब स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के कोलकाता में हुए ट्रायल से बाद अमेरिका में आयोजित एक चैंपियनशिप में जाने का मौका मिला. लेकिन उस ट्रायल के दौरान कर्ज लेकर खरीदा गया दीप्ति का धनुष टूट गया. धनुष क्या टूटा, दीप्ति का सपना ही टूट गया. यह कहानी उस दीप्ति की है जिसने आज की इंटरनेशनल आर्चर दीपिका कुमारी को तीरंदाज बनने का सपना दिखाया था.

राज्य स्तरीय तीरंदाजी चैंपियनशीप में दीप्ति कई बार गोल्ड मेडल जीत चुकी है. उनके मुताबिक दिल्ली में आयोजित सीनियर नेशनल आर्चरी के 60 मीटर वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था. उनके पास तगमों की भरमार है. सर्टिफिकेट भरे पड़े हैं. लेकिन आर्थिक और सरकारी सहयोग वाले कॉलम में जीरो बैठा हुआ है. उनके पिता ने बताया कि कई साल पहले जब बेटी ने एक मेडल जीता था तब लोहरदगा के तत्कालीन एसपी ने पुरस्कार में साइकिल दी थी. उसके बाद सिर्फ आश्वासन मिला. नतीजा यह है कि दीप्ति चाय बेच रही है. धनुष का कर्ज चुका रही है. लेकिन राज्य सरकार का खेल विभाग अपना फर्ज तक नहीं निभा पा रहा है. जब हमारी टीम दीप्ति से बात कर रही थी तो चाय पीने आए कुछ लोगों ने कहा कि क्यों सरकार दावा करती है कि झारखंड के खिलाड़ियों को उनका वाजिब हक मिलेगा.

ब्यूरो चीफ राजेश सिंह की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

रांची: झारखंड की एक बेटी सिर्फ इसलिए चाय बेच रही है कि उसे लोन लेकर खरीदे गये धनुष के पैसे चुकाने हैं. तीरंदाजी में नेशनल स्तर पर मेडल जीत चुकी दीप्ति कुमारी आज भी इस उम्मीद में जी रही है कि कोई फरिश्ता उसके लिए धनुष खरीद देगा. थोड़ी सी आर्थिक मदद तीरंदाजी में अधूरे पड़े उसके सपने को पूरा कर सकती है. दीप्ति कुमारी के संघर्ष की खबर ईटीवी भारत पर प्रकाशित होने के बाद उत्तराखंड तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष सुरजीत सिंह के प्रतिनिधि भूपेंद्र सिंह कुशवाहा ने उनसे फोन पर संपर्क किया.

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दीप्ति ने इसके लिए ईटीवी भारत को धन्यवाद देते हुए कहा कि आप लोगों की बदौलत सहयोग का भरोसा मिला है. उन्हें उत्तराखंड के एक स्कूल में तीरंदाजी प्रशिक्षक का ऑफर मिला है. साथ ही नेशनल आर्चरी की तैयारी की तमाम सुविधाओं का भी भरोसा मिला है. ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश कुमार से दीप्ति कुमारी, उनके पिता बजरंग प्रजापति और मां सीता देवी ने अपने तकलीफें बयां की.

मूल रूप से लोहरदगा की रहने वाली दीप्ति की चार बहनें और तीन भाई हैं. पिता ऑटो चलाते हैं. मां किडनी की बीमारी से ग्रसित हैं. एक भाई ऑटो चलाता है. दीप्ति कक्षा छह में पढ़ाई के दौरान ही तीरंदाजी में दिलचस्पी की वजह से सरायकेला स्थित आर्चरी एकेडमी पहुंच गई. वहां से संघर्ष करते हुए उसने सब जूनियर नेशनल, जूनियर और सीनियर स्तर पर कई मेडल जीते.

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एक वक्त आया जब स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के कोलकाता में हुए ट्रायल से बाद अमेरिका में आयोजित एक चैंपियनशिप में जाने का मौका मिला. लेकिन उस ट्रायल के दौरान कर्ज लेकर खरीदा गया दीप्ति का धनुष टूट गया. धनुष क्या टूटा, दीप्ति का सपना ही टूट गया. यह कहानी उस दीप्ति की है जिसने आज की इंटरनेशनल आर्चर दीपिका कुमारी को तीरंदाज बनने का सपना दिखाया था.

राज्य स्तरीय तीरंदाजी चैंपियनशीप में दीप्ति कई बार गोल्ड मेडल जीत चुकी है. उनके मुताबिक दिल्ली में आयोजित सीनियर नेशनल आर्चरी के 60 मीटर वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था. उनके पास तगमों की भरमार है. सर्टिफिकेट भरे पड़े हैं. लेकिन आर्थिक और सरकारी सहयोग वाले कॉलम में जीरो बैठा हुआ है. उनके पिता ने बताया कि कई साल पहले जब बेटी ने एक मेडल जीता था तब लोहरदगा के तत्कालीन एसपी ने पुरस्कार में साइकिल दी थी. उसके बाद सिर्फ आश्वासन मिला. नतीजा यह है कि दीप्ति चाय बेच रही है. धनुष का कर्ज चुका रही है. लेकिन राज्य सरकार का खेल विभाग अपना फर्ज तक नहीं निभा पा रहा है. जब हमारी टीम दीप्ति से बात कर रही थी तो चाय पीने आए कुछ लोगों ने कहा कि क्यों सरकार दावा करती है कि झारखंड के खिलाड़ियों को उनका वाजिब हक मिलेगा.

Last Updated : Jan 11, 2023, 7:22 PM IST
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