रांची: सरयू राय की पुस्तक 'लम्हो की खता' का लोकार्पण हो गया है. पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में हुए कथित मेनहर्ट परामर्शी नियुक्ति घोटाले के संदर्भ में जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जिसमें मांस की पोटली के रखवाली की जिम्मेदारी गिद्ध को मिली थी.
विभिन्न दस्तावेजों, विधानसभा समितियों की रिपोर्ट और सरकारी जांच रिपोर्ट के संकलित रूप 'लम्हों के खता' नाम की किताब के सोमवार को हुए विमोचन के बाद राय ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि तत्कालीन शहरी विकास मंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में एक ऐसी कंपनी को परामर्शी नियुक्त किया गया. जो न तो गुणवत्ता के आधार पर फिट बैठती थी और न ही जिस जिसका चयन नियम पूर्वक किया गया.
लोकतंत्र के तीनों स्तंभों ने पायी थी त्रुटियां
सरयू राय ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ कार्यपालिका, विधायिका और यहां तक कि न्यायपालिका ने भी मेनहर्ट की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए और त्रुटियों की ओर इशारा भी किया. उन्होंने कहा कि यह मामला विधानसभा में भी जोर शोर से उठा, लेकिन इसकी तत्कालीन विजिलेंस डिपार्टमेंट से इंक्वायरी तक नहीं हुई. इतना ही नहीं मामला हाई कोर्ट में भी गया, उसके बाद भी इस मामले पर सरकारी तवज्जो नहीं दी गई. इन सबके अलावा विधानसभा समिति ने भी जांच की और अपनी रिपोर्ट दी. बावजूद इसके अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि हैरत की बात यह है कि मेनहर्ट घोटाला नगरीय विकास विभाग से जुड़ा हुआ था और उसी विभाग के अधिकारियों को इसकी जांच का जिम्मा मिला.
लॉकडाउन के दौरान हुई किताब तैयार
उन्होंने कहा कि 2005 से लेकर 2019 तक कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. लॉकडाउन के दौरान लिखी गयी इस किताब में 20 अलग-अलग चैप्टर हैं. जिसमें सभी बातों का विस्तृत विवरण है. इस मौके पर सरयू राय ने कहा कि किताब में प्रस्तावना और उपसंहार को छोड़कर बाकी सारे दस्तावेज जोड़े गए हैं.
मकसद जेल भेजना व्यक्तिगत द्वेष नहीं
हालांकि, उन्होंने एक बात स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका मकसद किसी को जेल भेजना नहीं है. इस मामले में वे नहीं चाहते कि कोई जेल जाए, लेकिन जो जैसा कृत्य करेगा उसे उसका नतीजा भोगना पड़ेगा. इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि झारखंड में बदलाव का आधार यह किताब बनेगी.
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तत्कालीन सीएस को भी झेलनी पड़ी थी आंच
किताब के विमोचन के मौके पर तत्कालीन मुख्य सचिव अशोक कुमार सिंह ने कहा कि उन्हें भी मेनहर्ट घोटाले की आंच झेलनी पड़ी. जैसे ही जांच से जुड़ी फाइल उनके कार्यालय पहुंची उन्होंने कुछ जिज्ञासा जाहिर की और उसके 5 दिन के भीतर ही उन्हें उस पद से हटा दिया गया. हैरत की बात यह है कि तत्कालीन विजिलेंस आईजी ने कई बार विभागीय अधिकारियों को जांच के बाबत पत्र भी भेजे, लेकिन तत्कालीन सरकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ.
किसी भी बिंदु को साबित करे तथ्यहीन
विमोचन के बाद पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए राय ने स्पष्ट कहा कि इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन शहरी विकास मंत्री रघुवर दास को खुली चुनौती देते हैं कि पुस्तक में कोई भी बिंदु को तथ्यहीन साबित कर दे.