रांची: देश की आजादी में योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को 26 जनवरी और 15 अगस्त को याद किया जाता है. ऐसे में राजधानी रांची का शहीद स्मारक भी आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का पवित्र स्थल है, जहां स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पांडे गणपत राय को अंग्रेजों ने फांसी दी थी, साथ ही सैकड़ों स्वतंत्र सेनानियों को भी अंग्रेजों ने समय-समय पर फांसी दी.
16 अप्रैल 1858 को ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव हुई फांसी
शहीद स्थल के पास ही 16 अप्रैल 1858 को शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को कदंब के पेड़ से लटका कर फांसी दी गई, जबकि 5 दिन बाद 21 अप्रैल 1858 को पांडेय गणपत राय को यहीं पर फांसी दे दी गई, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. इनके शहादत के पीछे की वजह कुछ लोगों का गद्दारी माना जाता है, जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया और स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़वाने में मदद की.
स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों ने मारी गोली
शहीद स्मारक समिति के सेक्रेटरी डॉ राम प्रवेश बताते हैं कि अगस्त विद्रोह के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने रामगढ़ से अंग्रेजों को खदेड़ा और फिर रांची आ गए, चूंकि वह जानते थे कि यह लड़ाई लंबी चलेगी, इसलिए ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को नेता चुना गया, साथ ही पांडे गणपत राय को कमांडेंट ऑफ चीज बनाया गया, जिसके बाद वह अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्र सेनानियों को इकट्ठा करने में लग गए, हालांकि कुछ लोगों ने गद्दारी करते हुए उन्हें अंग्रेजों से पकड़वा दिया, जिसके बाद शहीद स्मारक स्थल पर ही कदम के पेड़ पर इन्हें फांसी दी गई. उन्होंने बताया कि शहीद चौक भी एक पवित्र स्थल है, क्योंकि वहां पर कई स्वतंत्र सेनानियों को अंग्रेजों ने गोली मारी थी.
पुराना कुआं में फेंका जाता था स्वतंत्रता सेनानियों का शव
वहीं शहीद स्मारक के बगल में स्थित एक पुराना कुआं भी है, जिसको लेकर कहा जाता है कि फांसी देने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के शव को उस कुएं में डाल दिया जाता था. समिति के सेक्रेटरी डॉ राम प्रवेश ने बताया कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को विशेष रूप से यहां शहीदों को याद किया जाता है, यह परंपरा 1957 से चली आ रही है, 26 जनवरी को राज्यपाल यहां शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं, जबकि 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पुष्प अर्पित करते हैं. उन्होंने बताया कि 40 स्वतंत्र सेनानी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित की जाती है.
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26 जनवरी और 15 अगस्त को अंग्रेजों को किया जाता है याद
हालांकि विडंबना यह है कि 26 जनवरी और 15 अगस्त को शहीदों को याद तो किया जाता है, लेकिन सीमित स्थल में सिमटे शहीद स्थल को विकसित करने को लेकर सरकार की ओर से पहल नहीं की गई है. समिति सेक्रेटरी डॉ राम प्रवेश ने बताया कि भले यह शहीदों के नाम पर जाना जाता है, लेकिन सीमित जगह पर यह सिमटा हुआ है, जबकि इसमें जिला स्कूल कैंपस भी शामिल है, जहां जाने पर शहीदों की यादें ताजा होती है. उन्होंने कहा कि पूरे कैंपस को शहीद पार्क के रूप में डेवलप किया जाना चाहिए था, साथ ही शहीद लाइब्रेरी बनाई जानी चाहिए, ताकि लोग यहां आते और शहीदों के बारे में जानकारी ले पाते. उन्होंने कहा कि इससे युवा पीढ़ी को भी स्वतंत्रता सेनानियों ने किस तरह से कुर्बानियां देकर देश को आजाद कराया था, इसकी जानकारी और प्रेरणा मिलती. उन्होंने उम्मीद जताई कि भविष्य में शहीद स्मारक को विकसित जरूर किया जाएगा.