रांची: झारखंड सरकार के द्वारा कोर्ट फीस में की गई वृद्धि को भले ही संशोधित किया गया हो, मगर राज्य सरकार के अधिवक्ता इससे संतुष्ट नहीं हैं. दिसंबर 2021 में कैबिनेट से पास होने के बाद राज्य सरकार ने विभिन्न न्यायालयों में लगने वाले कोर्ट फी में अप्रत्याशित वृद्धि की थी जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी. इतना ही नहीं इसके खिलाफ राज्य के अधिवक्ताओं ने आंदोलन की धमकी दी थी. राज्य सरकार ने भारी विरोध को देखते हुए कोर्ट फी में की गई वृद्धि में आंशिक संशोधन करते हुए एक बार फिर हाल ही में शीतकालीन सत्र के दौरान कोर्ट फी संशोधन विधेयक (Court Fee Amendment Bill) पास किया है.
इधर, राज्य के अधिवक्ता कोर्ट फी संशोधन विधेयक से संतुष्ट नहीं है, उनका मानना है कि सरकार ने स्टेट बार काउंसिल के सलाह के बिना जबरन कोर्ट फी वृद्धि कर दी है. संशोधन बिल में भी कोई खास राहत जनता को नहीं दी गई है जिससे आम जनता को न्याय की गुहार लगाना बेहद ही मुश्किल हो जायेगा. ऐसे में राज्य के वकील नाराज होकर अनिश्चितकालीन न्यायिक कार्य से अलग रहने की धमकी दी है.
नाराज अधिवक्ताओं का मानना है कि झारखंड सरकार कोर्ट फी अधिनियम 2021 के जरिए संशोधन कर स्टांप फीस 6 से लेकर 10 गुना तक बढ़ा दी है. राज्य सरकार के इस फैसले के बाद विवाद संबंधित सूट फाइल करने में जहां 50 हजार रुपये लगते थे, अब अधिकतम 3 लाख रुपये तक की कोर्ट फीस लगेगी. जनहित याचिका दाखिल करने में पहले ढाई सौ रुपये कोर्ट फीस लगती थी, अब इसके लिए एक हजार रुपये की फीस तय की गई है. इसी तरह विभिन्न मदों में अलग अलग वृद्धि की गई है जिससे आम लोगों की परेशानी बढेगी.
सीएम राज्यपाल से मिलेगा प्रतिनिधिमंडल: राज्य सरकार के इस फैसले पर झारखंड स्टेट बार काउंसिल (Jharkhand State Bar Council) ने पिछले दिनों आपात बैठक कर सरकार तक अपनी बातों को रखने का निर्णय लिया है. स्टेट बार कॉसिल के उपाध्यक्ष राजेश शुक्ला के नेतृत्व में बनी यह कमिटी जल्द ही राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मिलकर आपत्ति दर्ज कराएगी. इसके अलावे अधिवक्ताओं के अन्य मांगों को भी सरकार के समक्ष रखने का निर्णय लिया गया है. इस शिष्टमंडल में राज्यभर के सभी बार एसोसिएशन से जुड़े पदाधिकारी रहेंगे.
सरकार के फैसले के खिलाफ लड़ेंगे लड़ाई- संजय विद्रोही: रांची जिला बार एसोसिएशन के सचिव संजय विद्रोही ने कहा है कि ये अप्रत्याशित वृद्धि अतार्किक और अव्यावहारिक है. इससे राज्य की गरीब जनता न्याय से दूर हो जाएगी. कोर्ट फीस बढ़ाने के बाद जो उसमें आंशिक संशोधन किया है वह आंख में धूल झोंकने जैसा है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में सरकार को स्टेट बार कॉउसिल से भी राय लेनी चाहिए थी पहले सरकार को एक ड्राफ्ट बनाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने इन प्रक्रियाओं को पूरा नहीं किया है. उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार कोर्ट फीस बढोतरी वापस नहीं लेती है, तो बार काउंसिल इसके खिलाफ 2 जनवरी से न्यायिक कार्य का बहिष्कार कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस फैसले से मुकदमों की संख्या में कमी होगी और स्वभाविक रुप से वकीलों की आमदनी में कमी आ जायेगी.