रांचीः राजधानी के हिनू में नाले का पानी घर में घुस जाने को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर शुक्रवार को झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. मुख्य नयायाधीश डॉ. रवि रंजन व नयायाधीश एसएन प्रसाद की डबल बेंच ने सुनवाई के दौरान अदालत ने रांची नगर निगम को फटकार लगाई है.
इस पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि आप लोगों की प्लानिंग ठीक नहीं है, शहर में ट्रैफिक, नाली और नालों की स्थिति ठीक नहीं है, कई जगह नाले खुले हुए हैं, नगर निगम की कोई योजना सफल नहीं होती है, जमीन के उतार-चढ़ाव को देखते हुए नाले के निर्माण की योजना बनानी चाहिए, बिना रिसर्च के ही नालों का निर्माण कर देने से लोगों के घरों में पानी घुस रहा है. अदालत ने इस बात को लेकर भी निगम के कार्यपालक अभियंता को फटकार लगाई कि उनकी ओर से अदालत में कैजुअल तरीके रिपोर्ट दाखिल कर दी जाती है, ऐसा करना ठीक नहीं है.
इसके बाद अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट के आदेश पर रांची नगर निगम के सहायक नगर आयुक्त कुंवर पाहन, मुख्य अभियंता और कार्यपालक अभियंता कोर्ट में पेश हुए. नगर आयुक्त के कोर्ट में उपस्थित नहीं होने पर अदालत ने नाराजगी जताई और पूछा कि वो क्यों नहीं आए. इस पर बताया गया कि नगर आयुक्त शैक्षणिक टूर पर इटली गए हैं. इस दौरान नगर निगम की ओर से बताया गया कि इंद्रा पैलेस से लेकर भुसूर नदी और वहां से हिनू नदी तक पहले नाला था. लेकिन वर्तमान में वह गायब हो गया है.
अब उस नाले को फिर से चालू करने की योजना है. पीडब्ल्यूडी कार्यालय, ओल्ड पीएचडी कालोनी और शिवपूरी कालोनी से हुए नाले का पानी की निकासी की जाएगी. ऐसा होने पर कहीं पर भी जल जमाव की समस्या नहीं होगी. उस योजना पर 2.25 करोड़ रुपये खर्च होने हैं. तकनीकी स्वीकृति के बाद 22 जून को नगर विकास विभाग को अनुमति के लिए भेज दिया गया है. अदालत ने कहा कि पीडब्ल्यूडी कोड के अनुसार नया सड़क बनाने के पहले पुरानी सड़क को उखाड़ देना है. लेकिन सड़क पर नई लेयर बनाई जाती है. इसके कुछ दिनों बाद मकान सड़क के नीचे नजर आने लगते हैं. इस पर भी निगम को ध्यान देना चाहिए. बरसात में नाले का पानी उनके घर में आने को लेकर जनार्दन दुबे की ओर से याचिका दाखिल की गई है.
तालाब निर्माण में गड़बड़ी के मामले में सुनवाईः तालाब निर्माण में गड़बड़ी को लेकर दायर याचिका पर शुक्रवार को झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. हाई कोर्ट ने इस पर महालेखागार (एजी) से मंतव्य मांगा है. जेना टुडू की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन व न्यायाधीश एसएन प्रसाद की युगल पीठ ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया है कि वे एजी को पार्टी बनाते हुए याचिका की प्रति सौंपी जाए.
याचिकाकर्ता के वकील राजीव कुमार ने बताया कि वर्ष 2016-17 से लेकर 2018-19 के बीच राज्य में छह हजार तालाबों का निर्माण कराया गया है. सरकार ने सभी को पूर्ण बताया है. चाईबासा में डीआरडीए के निदेशक व कार्यपालक अभियंता ने इस संबंध में जांच रिपोर्ट सौंपी है. इसमें सात दिनों के अंदर 181 तालाबों को सत्यापित करने की बात कही है. कहा गया कि तालाब निर्माण में 1000 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी हुई. तालाबों का भौतिक सत्यापन होना चाहिए. इसके बाद अदालत ने एजी को पार्टी बनाने का निर्देश देते हुए मंतव्य मांगा. साथ ही मामले की अगली सुनवाई की तारीख 8 जुलाई निर्धारित की गई.
बीएयू के चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के नियमितकरण का मामलाः बिरसा कृषि विवि (बीएयू) के चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के नियमितकरण मामले में शुक्रवार को हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में बीएयू के वीसी ओंकार नाथ सिंह व्यक्तितगत रूप से कोर्ट में हाजिर होकर समय की मांग की. अदालत ने छह माह में चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के नियमितकरण करने का आदेश दिया. मामले की सुनवाई हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में हुई.
पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बीएयू के वीसी को सशरीर उपस्थित होने का आदेश दिया था. इस संबंध में हुमांयू समेत अन्य ने अवमानना याचिका दायर की है. कहा गया है कि वर्ष 2019 में अदालत ने इनकी सेवा चतुर्थ वर्ग में नियमित करने का आदेश दिया था बावजूद इनकी सेवा आज तक नियमित नहीं की गई है. याचिकाकर्ता 20 वर्षों से अधिक समेय से दैनिक वेतन पर चतुर्थवर्ग में कार्यरत हैं. वहीं राज्य सरकार ने कहा बीएयू एक स्वायत्त संस्था है और खुद से इस पर फैसले ले सकती है.
ढेंगा गोलीकांड से जुड़े मामले की सुनवाईः झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी की अदालत में हजारीबाग के ढेंगा गोलीकांड से जुड़े मामले की सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि ढेंगा गोलीकांड मामले की जांच अब सीआईडी करेगी. इस मामले की जांच का जिम्मा सीआईडी को सौंपा गया है. याचिका मंटू सोनी की ओर से दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि 14 अगस्त 2015 को हजारीबाग के ढेंगा में किसान अधिकार महारैली के दौरान पुलिस ने गोली चलायी थी.
याचिका में मंटू सोनी ने कहा है कि वह ढेंगा गोलीकांड का पीड़ित है लेकिन पुलिस ने उसे अभियुक्त बनाकर जेल भेज दिया था. इसके लिए पुलिस ने सबूत छुपाकर फर्जी आरोप लगाए हैं. पुलिस ने उसके घायल होने और सदर अस्पताल में दिए बयान को छुपाते हुए अभियुक्त बना दिया है. जेल से कोर्ट को पत्र लिखकर मंटू सोनी ने अधिकारियों पर केस दर्ज करने का आग्रह किया था. कोर्ट ने मामला दर्ज करने का आदेश दिया लेकिन 11 महीने बाद मंटू सोनी के आवेदन पर मामला दर्ज किया गया.