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झारखंड सरकार को हाई कोर्ट से झटका, जेएसएससी नियुक्ति नियमावली को किया रद्द

झारखंड हाई कोर्ट ने संशोधित जेएसएससी नियुक्ति नियमावली (JSSC Recruitment Rules) को रद्द कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने माना कि हेमंत सरकार के द्वारा नियोजन नीति में किया गया संशोधन गलत और असंवैधानिक है.

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Jharkhand High Court quashes JSSC Recruitment Rules
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Published : Dec 16, 2022, 3:34 PM IST

Updated : Dec 16, 2022, 6:53 PM IST

अधिवक्ता कुमार हर्ष

रांची: झारखंड सरकार के संशोधित जेएसएससी नियुक्ति नियमावल को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अदालत ने यह माना कि हेमंत सरकार के द्वारा नियोजन नीति (JSSC Recruitment Rules) में किया गया संशोधन गलत और असंवैधानिक है, इसलिए इसे रद्द किया जाता है. नई नियमावली के तहत झारखंड से 10वीं और 12वीं पास अभ्यर्थी ही परीक्षा में बैठ सकते थे. वहीं इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया था. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया था.

ये भी पढ़ें- जेएसएससी नियुक्ति नियमावली मामला: झारखंड हाई कोर्ट से आ सकता है अहम फैसला

प्रार्थी का कहना था कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नई नियमावाली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है. अदालत ने प्रार्थी रमेश हांसदा की दलील को माना कि हेमंत सरकार के द्वार नियुक्ति नियमावली में किया गया संशोधन गलत और असंवैधानिक है.

अधिवक्ता कुमार हर्ष ने जानकारी देते हुए कहा कि झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने इस मामले पर 16 दिसंबर को अहम फैसला सुनाया है. पूर्व में अदालत ने मामले की सुनवाई पूर्ण करने के उपरांत आदेश सुरक्षित रख लिया था. पूर्व में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता परमजीत पटालिया ने याचिका की सुनवाई पर ही प्रश्न उठाया. जिस पर प्रार्थी की ओर से पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने विरोध किया. अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद सुनवाई की प्रक्रिया पूर्ण करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पक्ष रखा. राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जेएसएससी नियुक्ति नियमावली में संशोधन कर जो शर्तें लागू की गई हैं. उससे फिलहाल प्रार्थी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. इसलिए इस याचका कि फिलहाल सुनवाई नहीं होनी चाहिए.

याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के अधिवक्ता द्वारा दी गई दलील का विरोध किया गया. कहा गया कि सरकार का जवाब गलत है. संशोधन में जो शर्तें लागू की गई है. वह असंवैधानिक है. इससे मौलिक अधिकार का हनन होता है इसलिए इस संशोधित नियमावली को रद्द कर दिया जाए. असंवैधानिक घोषित किया जाए. उन्होंने अदालत को यह बताया था कि नियुक्ति नियमावली में सिर्फ झारखंड से 10वीं और 12वीं करने वाले अभ्यर्थियों को ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने की अनुमति होगी. झारखंड के वैसे निवासी जिसे आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है. सिर्फ उन पर ही यह नियम लागू होगा. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हें यहां आरक्षण का लाभ दिया जाता है. उस पर यह नियम शिथिल रहेगा. यह गलत है. राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाया जाता है. सर्वाधिक लोगों की भाषा हिंदी है. लेकिन इस संशोधित नियमावली हिंदी को ही हटा दिया गया. जो भाषा एक खास वर्ग के लिए है. उर्दू उसे जोड़ दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम एक खास वर्ग के लिए बनाया गया है. इसलिए यह नियम असंवैधानिक है. इसे निरस्त कर दिया जाए.

अधिवक्ता कुमार हर्ष

रांची: झारखंड सरकार के संशोधित जेएसएससी नियुक्ति नियमावल को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अदालत ने यह माना कि हेमंत सरकार के द्वारा नियोजन नीति (JSSC Recruitment Rules) में किया गया संशोधन गलत और असंवैधानिक है, इसलिए इसे रद्द किया जाता है. नई नियमावली के तहत झारखंड से 10वीं और 12वीं पास अभ्यर्थी ही परीक्षा में बैठ सकते थे. वहीं इसके अलावा 14 स्थानीय भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया था. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया सहित 12 अन्य स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया था.

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प्रार्थी का कहना था कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया जाना संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. क्योंकि वैसे अभ्यर्थी जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नई नियमावाली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है. अदालत ने प्रार्थी रमेश हांसदा की दलील को माना कि हेमंत सरकार के द्वार नियुक्ति नियमावली में किया गया संशोधन गलत और असंवैधानिक है.

अधिवक्ता कुमार हर्ष ने जानकारी देते हुए कहा कि झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने इस मामले पर 16 दिसंबर को अहम फैसला सुनाया है. पूर्व में अदालत ने मामले की सुनवाई पूर्ण करने के उपरांत आदेश सुरक्षित रख लिया था. पूर्व में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता परमजीत पटालिया ने याचिका की सुनवाई पर ही प्रश्न उठाया. जिस पर प्रार्थी की ओर से पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने विरोध किया. अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद सुनवाई की प्रक्रिया पूर्ण करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पक्ष रखा. राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जेएसएससी नियुक्ति नियमावली में संशोधन कर जो शर्तें लागू की गई हैं. उससे फिलहाल प्रार्थी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. इसलिए इस याचका कि फिलहाल सुनवाई नहीं होनी चाहिए.

याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के अधिवक्ता द्वारा दी गई दलील का विरोध किया गया. कहा गया कि सरकार का जवाब गलत है. संशोधन में जो शर्तें लागू की गई है. वह असंवैधानिक है. इससे मौलिक अधिकार का हनन होता है इसलिए इस संशोधित नियमावली को रद्द कर दिया जाए. असंवैधानिक घोषित किया जाए. उन्होंने अदालत को यह बताया था कि नियुक्ति नियमावली में सिर्फ झारखंड से 10वीं और 12वीं करने वाले अभ्यर्थियों को ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने की अनुमति होगी. झारखंड के वैसे निवासी जिसे आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है. सिर्फ उन पर ही यह नियम लागू होगा. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हें यहां आरक्षण का लाभ दिया जाता है. उस पर यह नियम शिथिल रहेगा. यह गलत है. राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाया जाता है. सर्वाधिक लोगों की भाषा हिंदी है. लेकिन इस संशोधित नियमावली हिंदी को ही हटा दिया गया. जो भाषा एक खास वर्ग के लिए है. उर्दू उसे जोड़ दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम एक खास वर्ग के लिए बनाया गया है. इसलिए यह नियम असंवैधानिक है. इसे निरस्त कर दिया जाए.

Last Updated : Dec 16, 2022, 6:53 PM IST
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