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झारखंड हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी से बढ़ सकती है वन अधिकारियों की मुश्किल,  हो सकती है संपत्ति की जांच

झारखंड के वन अधिकारियों पर झारखंड हाई कोर्ट से सख्त टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि राज्य के वन अधिकारी जमीन पर नहीं बल्कि कागजों पर काम कर रहे हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार से पूछा है कि वन अधिकारियों ने संपत्तियों का ब्योरा दिया है या नहीं. जरूरत पड़ेगी तो संपत्तियों का विजिलेंस से जांच कराने का आदेश भी दे सकते हैं.

Jharkhand High Court
झारखंड हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी बढ़ सकती है वन अधिकारी की मुश्किलें
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Published : Jan 22, 2022, 1:09 PM IST

Updated : Jan 22, 2022, 1:19 PM IST

रांचीः झारखंड के जंगल से घटते वन्य जीव के मामले पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने सुनवाई के दौरान वन विभाग के उच्च पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य के वन अधिकारियों के पास विजन नहीं है. वन अधिकारी धरातल पर काम करने के बदले सिर्फ कागजों पर काम कर रहे हैं. अधिकारियों के पास यह दृष्टि होनी चाहिए कि जंगल में वन्य जीव की संख्या में कैसे बढ़ाई जाए. अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि वन विभाग के उच्च अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा दिया है या नहीं. अगर संपत्ति का ब्योरा दिया है तो विजिलेंस से जांच करवाई है या नहीं. इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें. अदालत ने कहा कि आवश्यकता हुई तो विजिलेंस से संपत्ति की जांच कराने का आदेश देंगे.

यह भी पढ़ेंःLalji Yadav Death Case: मंत्री मिथिलेश ठाकुर पर लगा आरोप, सीबीआई जांच की मांग

झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजित नारायण प्रसाद की अदालत में लातेहार में हाथी के बच्चे की मौत मामले में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार की ओर से दाखिल रिपोर्ट पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि सिर्फ कागजों में नहीं बल्कि जमीन पर भी काम होना चाहिए. अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि वन विभाग मेंनये पद बढ़ते गए हैं. लेकिन राज्य के जंगल और जानवर गायब होते जा रहे हैं. अदालत ने पूछा कि जब वर्ष 2018 में पलामू टाइगर रिजर्व एरिया में 5 बाघ दिखे थे, तो विभागीय अधिकारियों ने उन्हें ट्रैक क्यों नहीं किया. इस बात का पता क्यों नहीं लगाया कि पीटीआर में कितने मेल बाघ थे और कितने फीमेल.

देखें वीडियो

झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि अदालत ने मामले में सिर्फ मौखिक टिप्पणी की है. अधिवक्ता के आग्रह पर अदालत ने इसपर कोई आदेश पारित नहीं किया है. इस दौरान पीसीसीएफ की ओर से बाघों सहित अन्य जानवरों के संरक्षण के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में पेश करने के लिए समय की मांग की गई. इस पर अदालत ने 15 दिन का समय देते हुए मामले में अगली सुनवाई 4 फरवरी को निर्धारित की गई है.

अदालत ने कहा कि जंगलों में क्या हो रहा है. यह कोट को पता है. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से चलाए गए पौधरोपण कार्यक्रम में भी गड़बड़ी है. इसकी वजह है कि पौधरोपण से पहले विभागीय अधिकारियों ने कोई सर्वे नहीं किया है कि लगाए जाने वाले पौधों का जंगल के जीव जंतुओं पर क्या असर पड़ेगा.

रांचीः झारखंड के जंगल से घटते वन्य जीव के मामले पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने सुनवाई के दौरान वन विभाग के उच्च पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य के वन अधिकारियों के पास विजन नहीं है. वन अधिकारी धरातल पर काम करने के बदले सिर्फ कागजों पर काम कर रहे हैं. अधिकारियों के पास यह दृष्टि होनी चाहिए कि जंगल में वन्य जीव की संख्या में कैसे बढ़ाई जाए. अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि वन विभाग के उच्च अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा दिया है या नहीं. अगर संपत्ति का ब्योरा दिया है तो विजिलेंस से जांच करवाई है या नहीं. इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें. अदालत ने कहा कि आवश्यकता हुई तो विजिलेंस से संपत्ति की जांच कराने का आदेश देंगे.

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झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजित नारायण प्रसाद की अदालत में लातेहार में हाथी के बच्चे की मौत मामले में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार की ओर से दाखिल रिपोर्ट पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि सिर्फ कागजों में नहीं बल्कि जमीन पर भी काम होना चाहिए. अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि वन विभाग मेंनये पद बढ़ते गए हैं. लेकिन राज्य के जंगल और जानवर गायब होते जा रहे हैं. अदालत ने पूछा कि जब वर्ष 2018 में पलामू टाइगर रिजर्व एरिया में 5 बाघ दिखे थे, तो विभागीय अधिकारियों ने उन्हें ट्रैक क्यों नहीं किया. इस बात का पता क्यों नहीं लगाया कि पीटीआर में कितने मेल बाघ थे और कितने फीमेल.

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झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि अदालत ने मामले में सिर्फ मौखिक टिप्पणी की है. अधिवक्ता के आग्रह पर अदालत ने इसपर कोई आदेश पारित नहीं किया है. इस दौरान पीसीसीएफ की ओर से बाघों सहित अन्य जानवरों के संरक्षण के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में पेश करने के लिए समय की मांग की गई. इस पर अदालत ने 15 दिन का समय देते हुए मामले में अगली सुनवाई 4 फरवरी को निर्धारित की गई है.

अदालत ने कहा कि जंगलों में क्या हो रहा है. यह कोट को पता है. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से चलाए गए पौधरोपण कार्यक्रम में भी गड़बड़ी है. इसकी वजह है कि पौधरोपण से पहले विभागीय अधिकारियों ने कोई सर्वे नहीं किया है कि लगाए जाने वाले पौधों का जंगल के जीव जंतुओं पर क्या असर पड़ेगा.

Last Updated : Jan 22, 2022, 1:19 PM IST
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