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झारखंड हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा-498ए के दुरुपयोग पर जताई चिंता, कहा- असंतुष्ट पत्नियां इसे बना रहीं हथियार

झारखंड हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा-498ए के दुरुपयोग पर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा कि असंतुष्ट पत्नियां इसे ढाल बनाने की बजाय हथियार बना रहीं हैं. Jharkhand High Court concern on Section 498A of IPC.

Jharkhand High Court
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 7, 2023, 10:21 PM IST

रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की है. कोर्ट ने कहा है कि कानून के इस प्रावधान का 'असंतुष्ट पत्नियों' द्वारा ढाल के बजाय एक हथियार के रूप में गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- ED अधिकारियों के खिलाफ जेल में बैठकर साजिश मामला: झारखंड हाईकोर्ट ने एजेंसी से मांगी सीलबंद रिपोर्ट

भारतीय दंड संहिता की यह धारा किसी महिला को पति और ससुराल के लोगों द्वारा प्रताड़ित करने के मामलों में लगाई जाती है, लेकिन देखा जा रहा है कि महिलाएं मामूली मुद्दों पर आवेश में आकर इस धारा के तहत मामला दर्ज करा रही हैं.

कोर्ट ने कहा, “हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और ऐसा प्रतीत होता है कि कई मामलों में आईपीसी की धारा 498-ए का दुरुपयोग किया जा रहा है. छोटी-मोटी वैवाहिक झड़पें अचानक शुरू हो जाती हैं और पत्नी द्वारा बिना उचित विचार-विमर्श के मामूली विवाद पर आवेश में आकर ऐसे मामले दायर किए जा रहे हैं."

अदालत ने धनबाद निवासी राकेश राजपूत की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बातें कही. धनबाद की रहने वाली महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ यातना का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करवाई थी. इसे रद्द करने के लिए राकेश राजपूत और उनकी पत्नी रीना राजपूत ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

अदालत में बहस के दौरान यह तथ्य स्थापित हुआ कि उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं, क्योंकि कथित घटना के दिन वे ट्रेन से सफर कर रहे थे. हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत ऐसे झूठे मामले दर्ज करने पर निराशा व्यक्त करते हुए राकेश राजपूत और उनकी पत्नी के खिलाफ धनबाद सिविल कोर्ट द्वारा लिए गए संज्ञान के आदेश सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया.

इनपुट- आईएएनएस

रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की है. कोर्ट ने कहा है कि कानून के इस प्रावधान का 'असंतुष्ट पत्नियों' द्वारा ढाल के बजाय एक हथियार के रूप में गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है.

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भारतीय दंड संहिता की यह धारा किसी महिला को पति और ससुराल के लोगों द्वारा प्रताड़ित करने के मामलों में लगाई जाती है, लेकिन देखा जा रहा है कि महिलाएं मामूली मुद्दों पर आवेश में आकर इस धारा के तहत मामला दर्ज करा रही हैं.

कोर्ट ने कहा, “हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और ऐसा प्रतीत होता है कि कई मामलों में आईपीसी की धारा 498-ए का दुरुपयोग किया जा रहा है. छोटी-मोटी वैवाहिक झड़पें अचानक शुरू हो जाती हैं और पत्नी द्वारा बिना उचित विचार-विमर्श के मामूली विवाद पर आवेश में आकर ऐसे मामले दायर किए जा रहे हैं."

अदालत ने धनबाद निवासी राकेश राजपूत की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बातें कही. धनबाद की रहने वाली महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ यातना का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करवाई थी. इसे रद्द करने के लिए राकेश राजपूत और उनकी पत्नी रीना राजपूत ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

अदालत में बहस के दौरान यह तथ्य स्थापित हुआ कि उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं, क्योंकि कथित घटना के दिन वे ट्रेन से सफर कर रहे थे. हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत ऐसे झूठे मामले दर्ज करने पर निराशा व्यक्त करते हुए राकेश राजपूत और उनकी पत्नी के खिलाफ धनबाद सिविल कोर्ट द्वारा लिए गए संज्ञान के आदेश सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया.

इनपुट- आईएएनएस

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