रांची: झारखंड हाई कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. हाई कोर्ट के 3 जजों की पीठ ने बाहरी को आरक्षण का लाभ दिए जाने के बिंदु पर अपना फैसला सुनाया. झारखंड हाई कोर्ट के पूर्ण पीठ के एक न्यायाधीश एससी मिश्रा ने कहा कि बाहरी आदिवासी, अनुसूचित जाति, और पिछड़ी जाति को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. जबकि पूर्ण पीठ के दो जज न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह न्यायाधीश बीवी मंगल मूर्ति ने फैसला सुनाते हुए कहा कि झारखंड से बाहर के आदिवासी, अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.
सरकार का एलपीए हुआ खारिज
झारखंड हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों के पूर्ण पीठ में झारखंड से बाहर के आदिवासी, अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति को आरक्षण दिए जाने के बिंदु पर फैसला सुनाया है. सरकार की तरफ से दायर एलपीए और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के बाद पूर्ण पीठ के वरिष्ठ न्यायाधीश हरीश चंद्र मिश्रा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अखंड बिहार के आदिवासी, अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति को झारखंड में आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह फैसला करते हुए सरकार के एलपीए को खारिज कर दिया है, इसके साथ ही उन्होंने आरक्षण का लाभ नहीं देने को लेकर सेवा से बर्खास्त किए गए कर्मी को वापस सेवा में लाने का आदेश सरकार को दिया है. यानी तत्काल बर्खास्त कर्मी को बहाल करने का आदेश दिया है. वहीं, पूर्ण पीठ के न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह और न्यायाधीश बीवी मंगल मूर्ति ने अपना फैसला सुनाते हुए सरकार के एलपीए को स्वीकृत करते हुए अन्य प्रतिवादी के एलपीए को खारिज कर दिया है.
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बर्खास्त लोगों की सेवा बहाल करने का आदेश
अदालत ने कहा कि झारखंड राज्य सीमा से बाहर के चाहे वह बिहार के हो या किसी अन्य राज्य के आदिवासी अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि( स्टेट ऑफ ऑरिजन) जिनके पूर्वज झारखंड के वर्तमान क्षेत्र के हैं सिर्फ उन्हीं को झारखंड में आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है. दरअसल, बंटवारे के बाद राज्य के बाहर के कुछ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जाति को आरक्षण का लाभ देकर नौकरी दी गई थी. बाद में राज्य सरकार ने उन्हें गलती से यह लाभ दिए जाने की बात कहते हुए उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया. सेवा से बर्खास्त किए गए कर्मियों ने झारखंड हाई कोर्ट में राज्य सरकार के आदेश को एकल पीठ में चुनौती दी थी. एकल पीठ ने उन्हें आरक्षण का लाभ देते हुए फिर से सेवा में बहाल करने का आदेश दिया.
सुनवाई में दो मत आए सामने
एकल पीठ के आदेश को झारखंड सरकार ने युगल पीठ में चुनौती दी. सरकार की ओर से युगल पीठ में सुनवाई के दौरान पूर्व में झारखंड हाई कोर्ट के कविता कुमारी कांधल के मामले में झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसजे मुखोपाध्याय की बेंच की तरफ से दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि बाहरी व्यक्ति को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है. युगल पीठ पर उसी सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पूर्व में हाई कोर्ट की तरफ से मधु बनाम झारखंड सरकार के मामले में न्यायाधीश भगवती प्रसाद के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया कि इन्हें भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए. दोनों अलग-अलग आदेश को देखने के बाद युगल पीठ ने मामले को पूर्ण पीठ में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था. उसी निर्देश के आलोक में पूर्ण पीठ का गठन कर मामले की सुनवाई की गई. सुनवाई पूर्ण होने के बाद आदेश सुरक्षित रखा गया था, उसी आदेश को झारखंड हाई कोर्ट के पूर्ण पीठ में सोमवार को सुनाया गया जिसमें दो मत सामने आए.
स्टेट ऑफ ओरिजिन हो आधार
बता दें कि झारखंड हाई कोर्ट में इस तरह के आरक्षण से संबंधित कई मामले लंबित थे. जिसमें समय-समय पर अलग-अलग आदेश दिए गए थे. सभी मामलों में एलपीए भी लंबित थे, उन सभी लंबित एलपीए की एकसाथ पूर्ण पीठ में सुनवाई की गई. सुनवाई पूरी होने के बाद सोमवार को फैसला सुनाया गया. झारखंड सरकार की तरफ से एलपीए याचिका दायर की गई थी. वही रंजीत कुमार, छोटेलाल, राम कुमार पासवान एवं अन्य की याचिका पर पूर्ण पीठ में सुनवाई पूरी हुई थी. आदेश सुरक्षित रख लिया गया था, वही आदेश सोमवार को सुनाया गया. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया था कि एकीकृत बिहार में हमें आरक्षण का लाभ मिल रहा था. मेरी जाति को झारखंड में भी जाति का लाभ मिल रहा है. इसलिए हमें भी आरक्षण दिया जाना चाहिए. सुनवाई के दौरान सरकार का कहना है कि जिस राज्य में (स्टेट ऑफ ओरिजिन) आप के पूर्वज हैं. उसी राज्य में आपको आरक्षण का लाभ मिलेगा.