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परिवहन विभाग को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, एफएफपी बिल्डिंग कार्यालय की संपत्ति अटैच करने के लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक

FFP Building office of Transport Department झारखंड हाईकोर्ट से परिवहन विभाग के लिए अच्छी खबर है. कोर्ट ने विभाग के एफएफपी बिल्डिंग कार्यालय की संपत्ति अटैच करने पर रोक लगा दी है. मामले में प्रति शपथ पत्र दायर करने का आदेश दिया गया है.

FFP Building office of Transport Department
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 6, 2023, 1:19 PM IST

रांचीः झारखंड के परिवहन विभाग को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट ने कमर्शियल कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. कमर्शियल कोर्ट ने परिवहन विभाग की एफएफपी बिल्डिंग स्थिति कार्यालय की संपत्ति को अटैच करने का आदेश दिया था. आदेश के बाद 5 दिसंबर को कार्यालय की संपत्ति को अटैच करने की कवायद की गई थी. इसके खिलाफ परिवहन विभाग ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि आज सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजय मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की खंडपीठ ने मेसर्स के. एस. सॉफ्टनेट सॉल्यूसन्स प्रा. लि. को चार सप्ताह के भीतर प्रति शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया है. परिवहन विभाग के सचिव कृपानंद झा ने बताया कि हाईकोर्ट से रिलीफ मिल गई है. उनसे पूछा गया कि आखिर ऐसी नौबत किस वजह से आई, इसपर उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

बता दें कि यह मामला 2004 का है. तब तत्कालीन राज्य सरकार ने राज्य में नौ इंटिग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने के लिए टेंडर निकाला था. चेकपोस्ट बनाने का ठेका के. एस. सॉफ्टनेट सोल्यूशन्स प्रा.लि. को मिला था. लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही के कारण कंपनी को सिर्फ पांच जगहों पर ही चेकपोस्ट बनाने का काम मिल पाया. बाकी चार जगहों पर जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया. इसकी वजह से कंपनी द्वारा खरीदी गई सामग्री बर्बाद हो गई.

सरकार ने 2013 में चेकपोस्ट के प्रपोजल को ड्रॉप कर दिया. तब कंपनी ने राज्य सरकार से अपने नुकसान का हर्जाना मांगा. राज्य सरकार ने साल 2017 में माना कि कंपनी को हर्जाने के तौर पर 11 करोड़ रु. दिए जाएंगे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बावजूद कंपनी को पैसा नहीं मिला. इसके बाद कंपनी ने सिविल कोर्ट परिसर स्थिति कमर्शियल कोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट की कार्रवाई के बावजूद कंपनी को पैसा नहीं लौटाने पर कोर्ट के आदेश से गठित जिला प्रशासन की टीम ने परिवहन विभाग कार्यालय की संपत्ति अटैच करने का आदेश दे दिया. आपको बता दें कि लोअर कोर्ट ने 13 जुलाई के बाद 24 नवंबर को संपत्ति अटैच करने का आदेश दिया था. लेकिन प्रक्रिया पूरी करने के लिए प्रशासन से सहयोग नहीं मिल रहा था.

रांचीः झारखंड के परिवहन विभाग को झारखंड हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट ने कमर्शियल कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. कमर्शियल कोर्ट ने परिवहन विभाग की एफएफपी बिल्डिंग स्थिति कार्यालय की संपत्ति को अटैच करने का आदेश दिया था. आदेश के बाद 5 दिसंबर को कार्यालय की संपत्ति को अटैच करने की कवायद की गई थी. इसके खिलाफ परिवहन विभाग ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने बताया कि आज सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजय मिश्रा और न्यायाधीश आनंद सेन की खंडपीठ ने मेसर्स के. एस. सॉफ्टनेट सॉल्यूसन्स प्रा. लि. को चार सप्ताह के भीतर प्रति शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया है. परिवहन विभाग के सचिव कृपानंद झा ने बताया कि हाईकोर्ट से रिलीफ मिल गई है. उनसे पूछा गया कि आखिर ऐसी नौबत किस वजह से आई, इसपर उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

बता दें कि यह मामला 2004 का है. तब तत्कालीन राज्य सरकार ने राज्य में नौ इंटिग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने के लिए टेंडर निकाला था. चेकपोस्ट बनाने का ठेका के. एस. सॉफ्टनेट सोल्यूशन्स प्रा.लि. को मिला था. लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही के कारण कंपनी को सिर्फ पांच जगहों पर ही चेकपोस्ट बनाने का काम मिल पाया. बाकी चार जगहों पर जमीन का अधिग्रहण नहीं हो पाया. इसकी वजह से कंपनी द्वारा खरीदी गई सामग्री बर्बाद हो गई.

सरकार ने 2013 में चेकपोस्ट के प्रपोजल को ड्रॉप कर दिया. तब कंपनी ने राज्य सरकार से अपने नुकसान का हर्जाना मांगा. राज्य सरकार ने साल 2017 में माना कि कंपनी को हर्जाने के तौर पर 11 करोड़ रु. दिए जाएंगे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बावजूद कंपनी को पैसा नहीं मिला. इसके बाद कंपनी ने सिविल कोर्ट परिसर स्थिति कमर्शियल कोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट की कार्रवाई के बावजूद कंपनी को पैसा नहीं लौटाने पर कोर्ट के आदेश से गठित जिला प्रशासन की टीम ने परिवहन विभाग कार्यालय की संपत्ति अटैच करने का आदेश दे दिया. आपको बता दें कि लोअर कोर्ट ने 13 जुलाई के बाद 24 नवंबर को संपत्ति अटैच करने का आदेश दिया था. लेकिन प्रक्रिया पूरी करने के लिए प्रशासन से सहयोग नहीं मिल रहा था.

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