रांचीः झारखंड में एनीमिया से जूझने वालों की एक बड़ी संख्या है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि राज्य में एनीमिक लोगों की संख्या कुल आबादी की 50 % से भी अधिक है. उसमें भी बड़ी संख्या में एनीमिया की वजह जेनेटिक यानि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आने वाले वंशानुगत जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह है. सीकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी बीमारियों की वजह से लोगों में खून की कमी के मामले हैं. ऐसे में रांची में सीकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया बीमारी की पहचान के लिए बड़े पैमाने पर कराई गई स्क्रीनिंग के नतीजे इस ओर इशारा करते हैं कि ये दो जेनेटिक बीमारी और इस रोग के वाहक (कैरियर ) की बड़ी संख्या राज्य में है.
रांची में 2 वर्ष में 54 हजार लोगों की हुई स्क्रीनिंगः रांची जिले में कोरोना काल 2020 और 2021 में सीकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia) और थैलेसीमिया के लिए स्क्रीनिंग अभियान नहीं चला. परंतु उससे पहले 2018 और 2019 में और इस वर्ष जून 2022 तक हुए 53 हजार 954 लोगों (जिसमें कस्तूरबा आवासीय विद्यालय की छात्राएं, अस्पताल में प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद आने वाली महिलाओं और शिशु रोग विभाग में इलाज के लिए आने वाले बच्चे शामिल हैं) की जांच में 2609 (4.83%) में सीकल सेल डिसऑर्डर पॉजिटिव जिसे Solubility +ve कहा जाता है मिले हैं.
वहीं थैलेसीमिक पॉजिटिव जिसे Nestroft +ve कहा जाता है उनकी संख्या 1526 (2.8%) है. सीकल सेल सॉल्युबिलिटी पॉजिटिव मिले 2609 मामलों में 103 (3.94%) 1426 (54.6%) सीकल सेल ट्रेट (जिसे वाहक या कैरियर भी कह सकते हैं ) थे. इसी तरह बीटा थैलेसीमिया माइनर की संख्या 333 ( 21.82%) और मेजर जिसे डिजीज भी कहते हैं उनकी संख्या 64 (4.19%) है. एक और चिंताजनक रिपोर्ट यह आई है कि जिन 53954 लोगों की स्क्रीनिंग हुई है, उसमें 156 लोग ऐसे मिले जिनमें सीकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया दोनों के डिसऑर्डर थे.
अब काउंसेलिंग से सीकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया को कमांड में लाने की है योजनाः रांची जिले में सीकल सेल एनीमिया(sickle cell anemia) और थैलेसीमिया के या तो मरीज हैं या फिर कैरियर हो सकते हैं. वैसे लोगों के लिए अब 17 अगस्त को रांची सदर अस्पताल में काउंसिलिंग कार्यक्रम की शुरुआत होगी. जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टर्स वैसे लोगों को जो सीकल सेल एनीमिया(sickle cell anemia) और थैलेसीमिया के मरीज नहीं है. लेकिन वह कैरियर बन सकते हैं यानि अगली पीढ़ी में ये रोग उनसे जा सकता है. उनमें जागरुकता फैलाई जाएगी. उन्हें बताया जाएगा कि जब वह अपनी सगे सबंधी की शादी करें तो कुंडली मिलान से ज्यादा जरूरी है कि ब्लड टेस्ट रिपोर्ट की मिलान करें और सावधानी बरतें कि किसी सीकल सेल (sickle cell anemia)या थैलसीमिया के डिजीज या करियर से शादी न हो.
सदर अस्पताल के पैथोलॉजी के हेड डॉ बिमलेश सिंह कहते हैं कि सिर्फ यह सावधानी बरतकर हम रांची जिले को कम से कम इन दो बीमारियों सीकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया से मुक्त कर सकते हैं क्योंकि ऐसा करने से अगली पीढ़ी में कैरियर तो होंगे पर डिजीज नहीं होगा.