रांचीः लंबे समय तक झारखंड की पहचान खान और खनिजों के लिए रही है लेकिन 15 नवम्बर 2000 को अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए प्रदेश (Jharkhand Foundation Day) ने कई और क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल की है. पिछले 22 वर्षों में झारखंड ने पशुपालन और दुग्ध उत्पादन में खूब तरक्की की है (Self Reliance In Milk Production). जिस झारखंड में वर्ष 2001 में महज 9.4 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन होता था और प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता महज 96 ग्राम था, उस प्रदेश में दुग्ध उत्पादन 31.17 लाख मीट्रिक टन है और दूध की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 220 ग्राम हो गई है.
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झारखंड गव्य विकास निदेशालय में एडिशनल डाइरेक्टर चौधरी रत्नेश कुमार ने बताया कि राज्य ने पिछले 22 वर्षों में पशुपालन और खासकर गव्य विकास में लंबी छलांग लगाई है. राज्य निर्माण के समय की स्थिति और आज की स्थिति में जमीन आसमान का अंतर है. आज राज्य के किसान और पशुपालक मिल्क फेडरेशन से जुड़कर दूध उत्पादन से आमदनी का एक और स्रोत पा चुके हैं. सरकार भी पशुधन विकास योजना के सहारे पशुपालकों को सशक्त बना रही है.
झारखंड गव्य विकास निदेशालय में एडिशनल डाइरेक्टर चौधरी रत्नेश कुमार ने बताया कि दो दुधारू गाय योजना, 05 से 10 गाय की कामधेनु डेयरी फार्मिंग, तकनीकी इनपुट और वित्तीय सहायता, चारा काटने की सब्सिडी पर उपलब्ध मशीनें और अन्य लाभकारी योजनाओं का ही असर है कि राज्य में दूध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है.
राज्य में 1.11 करोड़ गाय और 13.5 लाख भैंसः 20 वीं पशुगणना के अनुसार राज्य में गौवंशीय पशुओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. राज्य में 20 वीं गणना के अनुसार 01 करोड़ 11 लाख 88 हजार 770 गाय हैं तो भैंस 13 लाख 50 हजार 313 हैं.
दूध उत्पादन में झारखंड को अभी और आगे जाना हैः पशुपालन और गव्य विकास में बेहतरीन प्रगति के बावजूद एक सच्चाई यह भी है कि आज भी राज्य अपनी दूध की जरूरतों को पूरा नहीं करता और हर दिन लगभग 30 से 40 हजार लीटर दूध बिहार और अन्य राज्यों से मंगाना पड़ता है. ऐसे में गव्य विकास और डेयरी डेवलपमेंट के लिए सरकार ने NDDB के साथ MOU कर राज्य में दूध उत्पादन बढ़ाने, मेधा नाम से मिल्क फेडरेशन बनाकर कोऑपरेटिव की तर्ज पर किसानों को पशु पालन से जोड़ कर उनकी आय बढ़ाने की कोशिशें की जा रहीं हैं.
राज्य में गौ-पालन के साथ साथ चारा उत्पादन के लिए सरकार की मदद से कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं ताकि राज्य के किसान और पशुपालकों की आर्थिक स्थिति तो सुधरे ही, वे राज्य के विकास में भी ज्यादा से ज्यादा योगदान दे सकें. इसके लिए हर जिले में दूध स्टोरेज के लिए कोल्ड मिल्क स्टोरेज सेंटर बनाने की कवायद की जा रही है. वहीं भ्रमणशील पशु चिकित्सक, पशुओं को अलग अलग तरह की बीमारी से बचाने के लिए निःशुल्क टीकाकरण और अन्य कार्यक्रम चलाया जा रहा है.