रांची: झारखंड के किसान इन दिनों बेहद परेशान हैं. परेशानी की वजह सरकार के पास बकाया राशि है. यह बकाया राशि इस साल धान बेचने के मद में सरकार के पास किसानों का करीब 160 करोड़ है. वर्ष 2022-23 खरीफ के लिए सरकार ने 15 दिसंबर से राज्य में किसानों से धान खरीदना शुरू किया था, जो आज तक जारी है. सरकार ने पहले लक्ष्य आठ लाख क्विंटल रखा. जिसे बाद में घटा कर 3630000 क्विंटल कर दिया गया. प्रावधान के अनुरूप किसानों को धान बेचने के वक्त 50 प्रतिशत और उसके बाद तीन महीने के अंदर शेष 50 प्रतिशत राशि का भुगतान करना था, लेकिन हालात यह है कि राज्य में एक तो धान खरीद देर से शुरू हुई, वहीं दूसरी ओर जो भी धान खरीद की गई है उसके पैसे का अभी तक पूरी तरह से किसानों को भुगतान नहीं हुआ है.
सरकार के पास किसानों का 160 करोड़ बकायाः आंकड़ों के मुताबिक 12 अप्रैल तक राज्यभर के 31138 किसानों ने 1679354.57 क्विंटल धान खरीद की थी. खरीदे गए धान के एवज में किसानों को पहली किस्त मिल चुकी है, दूसरी किस्त का एक भी पैसा अभी तक नहीं मिला है. इस तरह से किसानों का करीब 160 करोड़ सरकार के पास बकाया है.
दुमका और साहिबगंज में नहीं शुरू हुई धान की खरीदः राज्य में 15 दिसंबर से जारी धान खरीद की स्थिति यह है कि दुमका और साहिबगंज में अभी तक धान खरीद की शुरूआत नहीं हो पाई है. खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की ओर से साहिबगंज में दो और दुमका में 25 एमएसपी खोले गए हैं. जहां पर साहिबगंज में 1972 और दुमका में 4046 किसान विभाग के पास सूचीबद्ध हैं. इन दोनों जिलों में अब तक एक भी क्विंटल धान किसानों ने नहीं भेजी है. इधर, राज्य के अन्य जिलों में जिन किसानों ने सरकार के लैंपस के माध्यम से धान बेचा है वे एमएसपी केंद्रों पर पैसा लेने के लिए चक्कर लगा रहे हैं.
मिलर के धान उठाव करने के बाद किसानों को मिलेगी दूसरी किस्तः जानकारी के मुताबिक दूसरी किस्त के पैसे नहीं मिलने के पीछे सरकारी अड़चन बताई जा रही है. विभाग के एक बड़े अधिकारी के अनुसार समर्थन मूल्य की दूसरी किस्त किसानों का तब मिलेगी, जब मिलर के द्वारा धान का उठाव किया जाएगा और उसके बदले चावल मिलर द्वारा दी जाएगी. इस संबंध में केंद्र सरकार ने राज्य फूड कॉरपोरेशन को चिट्ठी भेज कर यह कहा है कि जो भी धान खरीद की गई है, उसका चावल स्टेट के द्वारा यूज किया जाए. ऐसे में जब तक चावल मिल मालिक धान का उठाव नहीं करते हैं और उसके बदले चावल उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तब तक इन किसानों के दूसरी किस्त का भुगतान का मसला लटका रहेगा.
सरकार के उदासीन रवैये से किसानों की उम्मीदों पर फिरा पानीः बहरहाल, सुखाड़ के बीच एक तरफ धान की पैदावार कम हुई है, वहीं दूसरी ओर धान की जो उपज हुई थी उसे किसानों ने इस उम्मीद के साथ बेचा था कि इसके जरिए लागत मिल जाएगी. लेकिन सरकार के उदासीन रवैया ने इन किसानों के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.