रांची: कोरोना महामारी का कहर हर क्षेत्र पड़ा है. धार्मिक स्थलों पर भी इसका व्यापक स्तर पर असर देखा जा रहा है. ऐतिहासिक जगन्नाथ मेले पर भी इस महामारी ने ग्रहण लगा दिया है. जगन्नाथ पूजा समिति ने जानकारी दी है की 329 साल के इतिहास में पहली बार रांची में मेला का आयोजन नहीं किया जा रहा है, पूजा अर्चना और अनुष्ठान भी मुख्य पुजारियों के माध्यम से सोशल डिस्टेंस मेंटेन करते हुए संपन्न कराया जा रहा है. शुक्रवार को ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर महाप्रभु के तीनों विग्रह को गर्भ गृह से स्नान मंडप में स्थापित कर महा औषधि से स्नान कराया गया.
रांची के धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. पूरी के तर्ज पर हर साल यहां रथ मेला का आयोजन किया जाता है, जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. राज्य के अलावा बाहर से भी इस आयोजन में व्यवसायी पहुंचते हैं और दुकान लगाते हैं, लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण 329 वर्ष में पहली बार इस साल यहां ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ मेला का आयोजन नहीं होगा. जानकारी के मुताबिक सीमित दायरे में इस बार सभी कार्यक्रम विधि विधान से पूरे किए जाएंगे .
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1691 से हो रही है पूजा अर्चना
1691 से लगातार जगन्नाथपुर मेला का आयोजन किया जा रहा है, लेकिन इस साल यह मेला नहीं लगाया जाएगा. रथ खींचने की परंपरा इस साल होगी या नहीं यह भी अभी तक संशय बना हुआ है. समिति के सदस्यों ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को इस संबंध में पत्र भी लिखा है, लेकिन अब तक सरकार की ओर से इस मामले को लेकर कोई जवाब नहीं दिया गया है. ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर महाप्रभु के तीनों विद्रोह का गर्भ गृह से स्नान मंडप में स्थापित किया गया और महा औषधि से शुक्रवार को स्नान कराया गया. उसके बाद विग्रह को 51-51 मिट्टी के घड़ों के पानी से स्नान कराया गया. स्नान यात्रा के बाद प्रभु 15 दिनों के लिए अज्ञातवास में चले गए. 15 दिनों बाद नेत्रदान का महा अनुष्ठान किया जाएगा, जो कि 22 जून को होगी. 23 जून को महाप्रभु मौसी बाड़ी के लिए प्रस्थान करेंगे.